इरादा मजबूत कर बदलें बुरी आदतें

रेनू सैनी

दिमाग हमारे पूरे शरीर को नियंत्रित करता है। यह स्नायु तंत्र के जरिए काम करता है। स्नायु तंत्र नर्व सेल्स से बना होता है। ये नर्व सेल्स करोड़ों सूचनाओं को एक साथ इधर से उधर पहुंचाती हैं। इन समाचारों को इधर-उधर पहुंचाने में जब एक ही प्रकार की सूचना बार-बार दोहराई जाती है, तो एक खास व्यवहार का ढंग बनता जाता है। यह ढंग ही आदत कहलाता है।

व्यक्ति कई बातों का आदी होने के कारण स्वयं को कठिनाई से बदल पाता है। ये आदतें अच्छी व बुरी दोनों ही हो सकती हैं। अच्छी आदतों को जीवन में उतारना कठिन है जबकि बुरी आदतें स्वत: ही लोगों के जीवन का अंग बन जाती हैं। एच.डी. थोरो कहते हैं कि वस्तुएं नहीं बदलतीं, हम ही बदलते हैं।’ आदतों की जड़ें व्यक्ति के अवचेतन मन में घर कर जाती हैं। बुरी आदतें पहले मकड़ी के जाले की तरह हल्की होती हैं लेकिन फिर धीरे-धीरे वही लोहे के तार की तरह मजबूत बन जाती हैं। आदत अच्छी हो या बुरी, वे व्यक्ति के दिमाग में रास्ते बना लेती हैं। जब दिमाग में रास्ते बन जाते हैं तो व्यक्ति उन्हीं के अनुसार चलते हैं।

यदि आदतें अच्छी हैं तो दिमाग के बने रास्ते पर चलकर व्यक्ति कामयाबी प्राप्त करता है। जैसे कि दृष्टिहीन एन एल बेनो जेफाइन अपनी पढऩे की आदत के कारण भारत की पहली आईएफएस अधिकारी बन गयी और स्कोलियोसिस नाम की बीमारी से पीडि़त इरा सिंघल ने बचपन से ही अपनी बीमारी को हराने की आदत के कारण प्रशासनिक सेवा में संपूर्ण भारत में प्रथम स्थान प्राप्त कर विजय प्राप्त की। बुरी आदतों को कार्य में लगे रहने के कारण दूर किया जा सकता है।

बाबा सदानंद लोगों की बुरी आदतें सुधारते थे। विनय नामक एक युवक को नशे की बुरी आदत थी। सदानंद ने युवक की नशे की आदत छुड़ाने की ठान ली। वह उससे बोले, ‘बेटा, यदि तुम मेहनत से दिन-रात एक कर मेरे यहां कुछ काम करो तो मैं तुम्हें छह महीने में छह हजार स्वर्ण मुद्राएं दूंगा।’ छह हजार स्वर्ण मुद्राओं का नाम सुनते ही विनय खुशी से झूम उठा और सोचने लगा कि इतनी मुद्राएं मिलने पर उसे किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा और वह जब चाहे नशा कर सकेगा।

बाबा युवक के हृदय की बात समझ गए और बोले, ‘पुत्र, किंतु इस दौरान तुम्हें काम मेहनत से करना होगा। तुम्हें केवल खाना खाने का वक्त मिलेगा। खाना भी यहीं से दिया जाएगा। छह महीने लगातार शर्त के मुताबिक काम करने पर ही तुम उन मोहरों के हकदार बनोगे।’ मोहरों के लालच ने विनय को हर शर्त स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया।

अब विनय पूरे आश्रम की सफाई करता, खाना बनवाता, पशुओं की देखभाल करता और आश्रम में बाबा से मिलने वाले लोगों की जानकारी रखता। बीच-बीच में उसे नशे की तलब लगती किंतु इसका उसे समय ही नहीं मिलता था। वह कई बार तड़पता किंतु काम के बोझ में कुछ देर बाद तड़प को भूल जाता। एक महीने में युवक को काम करने में आनंद आने लगा और धीरे-धीरे उसने अपनी नशे की मनोवृत्ति पर लगाम लगा ली।

छह महीने बाद बाबा सदानंद ने विनय को अपने पास बुलाया और उसे स्वर्ण मुद्राओं की थैली देते हुए बोले, ‘यह लो बेटा, तुम मेरी शर्तों पर खरे उतरे और इसलिए मैं तुम्हें छह हजार की जगह दस हजार मुद्राएं दे रहा हूं।’ बाबा की बात सुनकर विनय रोते हुए बोला, ‘बाबा, अब मेरी इन मुद्राओं को पाने की कोई इच्छा नहीं है क्योंकि मुद्राएं मैं नशा करने के लिए पाना चाहता था। नशे की आदत पर काबू पाना आसान नहीं था, किंतु आपने मुझे लगातार काम में लगाए रखा और मैं नशे की बुरी आदत से मुक्त हो गया।’

अमेरिका के डॉ. रिचार्ड बैंडलर आदत बदलने के लिए ‘न्यूरोलिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग’ नामक तकनीक का प्रयोग करने के लिए कहते हैं। उन्होंने इस तकनीक को ईजाद किया है। इस तकनीक में व्यक्ति को अपनी बुरी आदत पर काबू पाने के लिए निम्न तरीकों के अनुसार चलना होता है। बुरी आदत से मुक्त होने के लिए जरूरी है कि अपना लक्ष्य तय करें, बुरी आदतें न छोड़ पाने के कारणों को जानें, बुरी आदतों को छोडऩे पर मिलने वाले आनंद को महसूस करें, बुरी आदत के स्थान पर अच्छी आदत को अपने जीवन में शामिल करने का प्रयास करें।

व्यक्ति बुरी आदतों को स्वयं बनाता है। इसलिए उन्हें सिर्फ वह ही अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रयास से बदल सकता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने कहा है कि, ‘हम स्वयं अपने मित्र हैं, स्वयं अपने शत्रु, स्वयं अपने स्वामी और स्वयं अपने लक्ष्य हैं।’ इसलिए बुरी आदतों के दास बनकर अपने जीवन को दासों सा व्यतीत मत कीजिए बल्कि अच्छी आदतों को अपनाकर जीवन में सफलता प्राप्त कर मालिक बन कर रहिए और दूसरों को भी अच्छी आदतें अपनाने की राय दीजिए।

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