भाजपा नेतृत्व की बढ़ती जा रहीं मुश्किल चुनौतियां
मोदी सरकार का पहला चरण पूरा हो चुका है। इस एक साल में प्रधानमंत्री को गौरवान्वित करने वाली सफलता मिली है जब उन्होंने यूपीए-2 की मनमोहन सरकार में लगी घोटालों की झड़ी के विपरीत देश का रुख विकास की ओर मोड़ दिया है। हालांकि अब एक साल से कुछ ज्यादा का सफर तय होने के बाद मोदी सरकार के रास्ते में कुछ कठिन मोड़ आया है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के नाना प्रकार के घोटाले राजनीतिक पटल पर उभरने लगे हैं।
सबसे पहला मामला वह है, जिसमें भाजपा की दो वरिष्ठ नेत्रियों, केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, ने ऐसा कार्य किया है जो देशहित में न होकर निजी स्वार्थों का पोषण करता है। इन दोनों ने सिद्धांतों से समझौता करते हुए अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग कर क्रिकेट के सुल्तान कहे जाने वाले ललित मोदी के हितों के लिए ब्रिटिश सरकार से संस्तुति की है, वह भी तब जब वह अपने खिलाफ चल रही जांच की वजह से भारतीय कानून से बचने के लिए लंदन में रह रहा है। सुषमा स्वराज का पति और बेटी, दोनों ही ललित मोदी के कानूनी पक्ष को संभालने के लिए उसके तनख्वाहदार थे।
दूसरा मामला है, जिसमें राजस्थान विधानसभा में बतौर नेता प्रतिपक्ष रहते हुए वसुंधरा राजे ने ब्रिटिश कोर्ट में ललित मोदी के पक्ष में एक हल्फनामा दिया था, जबकि ठीक उसी समय उनका बेटा दुष्यंत ललित मोदी के साथ बड़ी-बड़ी बिजनेस डील कर रहा था।
इन दोनों मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से कोई हस्तक्षेप नहीं किया। विरोधी पक्ष प्रधानमंत्री पर तंज कस रहा है कि वैसे तो अपनी बात कहने के लिए वे सोशल मीडिया के जरिए लोगों से संवाद करने का कोई अवसर नहीं चूकते, लेकिन अब वे अपनी पार्टी के इन नेताओं के कारनामों पर सोची-समझी चुप्पी साधे हुए हैं।
दिमाग को झकझोर कर रख देने वाले मध्य प्रदेश में विशाल स्तर पर हुए ‘व्यापम’ भर्ती घोटाले ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी अपनी लपेट में ले लिया है। जैसे-जैसे इस घोटाले से जुड़े गवाहों और शिकायतकर्ताओं की अनेक तरीकों से हुई विस्मयकारी मौतों की खबरें रोज-रोज बाहर आने लगीं, वैसे-वैसे हर गुजरते दिन के साथ लंबी होती इस फेहरिस्त से मुख्यमंत्री की छवि पर धब्बा स्पष्ट रूप से लगने लगा। आश्चर्यचकित करने वाली इन घटनाओं की झड़ी का संज्ञान स्वयं उच्चतम न्यायालय ने भी लिया और अंत में मुख्यमंत्री चौहान को इसकी जांच सीबीआई से करवाने की मांग पर झुकना ही पड़ा।
गनीमत की बात है कि प्रधानमंत्री उस वक्त रूस और मध्य एशियाई देशों की आधिकारिक यात्रा पर थे और इससे उन्हें असहजता का सामना करने से राहत मिल गयी। एक साल का हनीमून पीरियड जाहिरा रूप से अब खत्म हो लिया है। यहां तक कि समय-समय पर आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ के प्रसारण के साथ प्रधानमंत्री ने जनता के साथ संवाद की जो एक नायाब शुरुआत की थी, वह भी पिछली बार बोझिल लगी क्योंकि उन्होंने लोगों के जेहन पर छाए इन मुद्दों पर अपनी चुप्पी साफतौर पर साधे रखी।
इन घटनाओं ने प्रधानमंत्री को अवश्य ही सबक दिया होगा कि घपले किसी एक पार्टी या गठबंधन का विशेषाधिकार नहीं होते और सिर्फ सरकार बदलने से भ्रष्टाचार नहीं मिट जाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक धारा होने के बावजूद भाजपा जोड़तोड़ की राजनीति में उसी तरह संलिप्त रहती है, जिस तरह अन्य दल हैं और सत्ता एवं इससे जुड़ी ताकत का लालच इसे भी उतना ही लुभायमान है, जितना कि कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी को।
दूसरे साल में प्रवेश करने पर भाजपा को चाहिए वह सुशासन देने के अपने मूल नारे में बदलाव करे। कहने का तात्पर्य है कि मौजूदा सरकार की नैतिकता अपने से पहले वाली से ज्यादा भिन्न नहीं है। यहां तक कि वह आम आदमी पार्टी, जिसने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में अपनी ईमानदारी वाले नारे से उथल-पुथल मचा दी थी, अब चकित कर देने वाली तेजी से रिवायती पार्टियों के रंग में रंगती जा रही है।
राजनीतिक कारणों ने नरेंद्र मोदी को इन समस्याओं का सीधे-सीधे सामना करने की बजाय इनसे मुंह मोडऩे के लिए मजबूर किया है। इन कारणों का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है और वे हैं : सुषमा स्वराज के मामले में पार्टी के अंदरूनी समीकरण, वसुंधरा राजे के केस में राजस्थान में भाजपा सरकार का स्थायित्व और मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की साफ छवि के टूटने से होने वाला नुकसान। गृहमंत्री राजनाथ सिंह का वह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसमें उन्होंने कहा है कि राजग सरकार में यूपीए की भांति मंत्रियों के इस्तीफे देने का चलन नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि रूस और अन्य देशों की यात्रा के अतिव्यस्त कार्यक्रमों के चलते प्रधानमंत्री के पास इन चुनौतियों से निपटने और कठिन परिस्थितियों पर विचार-विमर्श करने और इस पर प्रभावशाली नीतियां बनाने के लिए केवल एक हफ्ता ही बीच में उपलब्ध था, लेकिन जिन तीन लोगों को लेकर मुख्य विवाद था, उनके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए थी।
यहां पर प्रश्न यह नहीं है कि भाजपा औरों से अलग है बल्कि यह है कि क्या वह ऐसी पार्टी है जो राजनीतिक शुचिता का पालन करती है? अपने नेतृत्व में सरकार और पार्टी चलाने के दौरान नरेंद्र मोदी ने भाग्य और परिस्थितियों के अनेक उतार-चढ़ावों का सामना किया है। यह तथ्य है कि इस लंबे सफर के अंत में यदि आज वे सर्वोच्च स्थान पर हैं तो यह उनका राजनीतिक कौशल और जिताऊ समीकरण बनाने का सामथ्र्य दर्शाता है।
इस मौजूदा संकट को कमतर आंक कर उन्हें अपना अस्तित्व बचाना गवारा नहीं करना चाहिए या फिर इस उम्मीद में नहीं रहना चाहिए कि एक समय के बाद यह स्वयं ही खत्म हो जाएगा। श्री मोदी का माद्दा वास्तव में इससे नापा जाएगा कि एक राष्ट्रीय नेता होने के नाते उन्होंने संकटों के इस सिलसिले का सामना किस तरह से किया है। आखिरकार उन्हें मिलने वाले अवसरों की संभावना सीमित है।