मध्यकालीन मारवाड़ में धर्म-परिवर्तन कानून
©️ डा. महेन्द्रसिंह तँवर
मध्यकालीन भारत के इतिहास में समाज अनेक बदलावों से प्रभावित रहा है। आक्रमणों के पश्चात् उन आक्रान्ताओं द्वारा स्थायी सत्ता की स्थापना के साथ-साथ भारत के स्थानीय लोगों को धर्म परिवर्तन करने की एक बड़ी शृंखला चली थी। यह काल एक संक्रमण काल था। एक तरफ हिन्दूओं को मुस्लिम धर्म को अपनाने के लिए बाध्य किया जा रहा था तो दूसरी तरफ मुगलों के समय कुछ शासकों ने जो अपवाद स्वरूप भी उन्हें कह सकते है ने हिन्दु-मुस्लिम एकता की बातें भी की थी।
18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक केन्द्रीय सत्ता के विघटन के साथ-साथ भारतीय रियासतें भी छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट चुकी थी। उस समय भी धर्म परिवर्तन का कार्य जारी था।
मारवाड़ के शासक महाराजा विजयसिंहजी (1752-1793 ई.) के राज्यकाल में मारवाड़ क्षेत्र में कहीं-कहीं पर धर्म परिवर्तन की घटनाएँ सामने आ रही थी। उन परिस्थितियों में तत्कालीन महाराजा विजयसिंहजी ने मारवाड़ के सभी परगनों को एक प्रशासनिक आदेश जारी किया जिसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा कि किसी भी प्रकार से हिन्दू धर्म के लोगों के बच्चों व बड़ों को मुसलमान धर्म में परिवर्तन किया गया तो उस पर कठोर कार्यवाही की जायेगी।
यह शासकीय पत्र वि.सं. 1835 (1778 ई.) का है। इस पत्र की नकल मारवाड़ रियासत के दस्तावेज ‘सनद परवाना बही’ जो राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर में संग्रहित है में इस प्रकार है। सनद परवाना बही संख्या 21 (संवत् 1835) आसोज सुद 11, सुकर; 1835, पृ. 311
परगना कागद दीवाणी हिन्दू रा डावड़ा डावड़ी नु मुसलमान कोई मुसलमान करण न पावण रा कचैडीया उपर
“तथा श्री हजुर सु हुकम हुवो है कोई मुसलमान हिन्दू नु मोल लेवे तथा भेलो राखने मुसलमान करै तो करण देणो नहीं सु इण बात री निघै ताकीद विसेष राखणी सु कोई परदेस सु डावड़ो डावड़ी हिन्दू रो मोल ल्याय नै भेलो राखीयो हुवै तिण नु छुडाय देणो नै इण तरै हिन्दू भेलो राखै जिण मुसलमान नु सजा देणी सु आगां सु फेर कोई राखण न पावे।
दु।। (दुवायती) सी।(सिंघवी) जोरावरमल”
यह सनद मारवाड़ के सभी परगनों की चौकियों को जारी की गई थी, इसमें स्पष्ट लिखा है, हिन्दूओं के लड़के-लड़कियों को कोई भी मुसलमान मुसलमान नहीं बनायेगा तथा मुसलमान हिन्दूओं के बच्चों को खरीदे या साथ रखे तब उन्हें ऐसा करने से रोका जाए। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाये कि दूसरे राज्य से हिन्दूओं के बच्चे खरीद कर मुसलमान नहीं लाये और न ही यहां से ले जाये इसका ध्यान रखा जाए। यदि किसी मुसलमान के घर हिन्दू रहता हो तो उसे छुड़ाया जाए तथा मुसलमान को सजा दी जावे। इस प्रकार की घटनाओं को होने से कठोरता से रोका जाए।
महाराजा विजयसिंहजी वैष्णव धर्म को मानने वाले थे, उनके राज्य में मांस-मदिरा निषेद्य थी तथा सभी कसाई खाने बन्द कर दिये गये थे। उनके राज्य में सभी धर्मांे के लोगों को समानता की दृष्टि से देखा जाता था।
©️ डा. महेन्द्रसिंह तँवर
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