आर्यन खान और हमारा समाज
#डॉविवेकआर्य
आर्यन खान को जमानत मिल गई। बॉलीवुड की दीवाली एक हफ़्ता पहले ही आ गई। चाटुकार मीडिया अब आर्यन खान को एक पीड़ित के रूप में पेश करे तो समझना कि शाहरुख़ खान की मार्केटिंग एजेंसी ने अपना होमवर्क करना शुरू कर दिया है। करे भी क्यों नहीं? आखिर आर्यन को भी फिल्मी सितारा बनाना है। बॉलीवुड स्वघोषित किंग का स्वघोषित युवराज बनाना है। एक-एक फ़िल्म कई सौ करोड़ का धंधा है। ऐसे में रामगोपाल वर्मा की फिल्म के गाने की एक पंक्ति ‘सब धंधा है! सब धंधा है ये’ स्मरण हो उठती है।
हम इस छद्म दुनिया की चमकीली रोशनी की चकाचौंध में यह भूल ही गए है कि हमारे देश में जिसके पास विश्व में सबसे अधिक युवा है कि अपरिपक्व मस्तिष्क में कितनी भीतर तक बॉलीवुड, क्रिकेट के सितारे प्रभाव डालते हैं। इन लोगों द्वारा किये गए एक एक विज्ञापन कम्पनियां लाखों खर्च कर करोड़ों बना लेती हैं। एक इंस्टाग्राम की पोस्ट पर इन्हें लाखों लाइक और शेयर मिलते हैं। ऐसे में ये लोग एक पूरी की पूरी पीढ़ी की सोच को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है। बड़े दृढ़ पारिवारिक और पूर्व संस्कारों वाला युवा ही इनके प्रभाव से बच सकता है।
सिमी ग्रेवाल के साथ एक इंटरव्यू में शाहरुख़ अपनी पत्नी के साथ बैठ कर गर्व से कहता है कि 22 वर्ष का होने के बाद उसका लड़का शराब, शबाब और नशे को करे तो उसे कोई आपत्ति नहीं हैं। जिंदगी को अपने तरीके से जीये। बॉलीवुड हो या शाहरुख़ खान इनके लिए पैसा, नाम और शोहरत सबसे बड़ी चीज है। संजय दत्त नशे के चलते बर्बाद हो गया। उससे सीखना तो क्या था। उस पर भी संजू मूवी बनाकर इन्होंने महिमा मंडन कर दिया। अब आर्यन खान फंसा है। कल उसकी पहली मूवी भी किसी क्रूज़ पर फिल्माई जाये जहाँ उसे नशे के विरुद्ध मुहिम चलाने वाले हीरो के रूप में पेश किया जाये जिसे फंसाया गया और उसे पकड़ने वाले अफसर भ्रष्ट खलनायक दिखाए जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पर पैसे के पीछे भागने वाले बॉलीवुड को यह नहीं पता कि उनकी इन हरकतों का समाज के अपरिपक्व युवा पर कितना जहरीला प्रभाव होता है। संयोग से मेरे क्लिनिक पर चंद दिनों पहले एक महिला अपने 17 साल के बेटे के विषय में राय लेने आयी। महिला विधवा थी। उसका एक ही बेटा है। उसके पिता 14 साल पहले तब गुजर गए जब वह केवल तीन साल का था। महिला जैसे तैसे अपना गुजारा कर रही थी। उसका लड़का गलत संगत में पढ़कर बिगड़ गया और गांजा पीने लगा। उसे तीन महीनों तक नशा मुक्ति केंद्र में रखा, पर बाहर आते ही वापिस से पीने लगा। थोड़ी बहुत मजदूरी करके गांजा पी लेता है। कभी घर का समान सस्ते में बेचकर भी नशा कर लेता है। एक बार तो रिश्तेदारों के घर गया और चोरी करके उससे नशा कर गया। वो महिला बहुत परेशान और बेबस थी। मैं जो सलाह दे सकता था मैंने दी। जो सहयोग कर सकता था किया। पर मेरे मन में एक ही विचार आया कि इस नशे को सामाजिक मान्यता दिलाने में सबसे बड़ा हाथ बॉलीवुड का है या नहीं है। बिलकुल है। इसमें कोई संदेह नहीं है। युवाओं का जीवन बॉलीवुड ने बर्बाद किया होगा।
एक बार महात्मा हंसराज से पं भगवत्त दत्त रिसर्च स्कॉलर ने पूछा था। मुग़लों के राज का केंद्र आगरा और दिल्ली रहा। इस पर भी यहाँ के निवासी हिन्दू ही रहे। जबकि सीमावर्ती प्रान्त जैसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश मुस्लिम बहुल बन गए। ऐसा क्यों हुआ? महात्मा हंसराज ने उत्तर दिया कि यहाँ के लोगों का जीवन सदाचारी था। उनका आचरण धर्म युक्त था जिसमें संयम, शाकाहार, चरित्र रक्षा, नशे से दूर रहना, शुचिता, तप -त्याग, उच्च सोच, सादा जीवन आदि गुण थे। इसलिए उनकी रक्षा हो पाई। आज आधुनिकता के नाम पर बॉलीवुड, कम्युनिस्ट, साम्यवादी जमात हमसे इन्हीं गुणों को छीनने में लगे हैं। देखा जाये तो आंशिक रूप से वो सफल भी हो गए हैं। अगर ये व्यवहार में गुण समाप्त हो गए तो हम नष्ट हो जायेंगे। यह बौद्धिक युद्ध हमारी और हमारी पीढ़ियों की रक्षा करेगा। इस लेख का उद्देश्य भी यही सन्देश देना है कि-
धर्म की रक्षा करो। धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा।।