||देह ,देही और दैहिक अनुभूति ||

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वर्ष 2021 का मेडिसिन/ फिजियोलॉजी का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से दो जीव वैज्ञानिकों डेविड जूलियस व एडम पैटपुतिन को मिला है। इन दोनों वैज्ञानिकों के लोकोपयोगी अनुसंधान को समझने से पहले हमें भारतीय आस्तिक वैदिक षट दर्शनों मे प्रमुखता से प्रतिपादित विषय की ओर जाना होगा। भारतीय वैदिक वांग्मय में आत्मा को देही , शरीर को देह कहा गया है । आत्मा शरीर में पंच इंद्रियों आंख नाक कान जिव्हा त्वचा के माध्यम से बाहरी वातावरण जगत का अनुभव करता है इंद्रियां अपने-अपने विषयों रूप गंध रस ध्वनि स्पर्श आदि विषय को मन को सौंप देती है।मन जो कि एक उभय इंद्रिय है आंतरिक बाहरी जगत में सेतु का कार्य करता है। मन पांचो इंद्रियों के द्वारा अनुभव किए गए संबंधित विषयों को यथावत आत्मा के समक्ष प्रस्तुत कर देता है। आधुनिक तंत्रिका विज्ञान शरीर क्रिया विज्ञान भी पंच इंद्रियों जनित ज्ञान के विषय में संबंधित वैदिक मान्यता कार्यप्रणाली की इस मामले में अनुसरण करता है पुष्टि करता है हालांकि वैज्ञानिक आत्मा परमात्मा तत्व की उपेक्षा कर देते है मूलतः चिकित्सा वैज्ञानिकों तंत्रिका वैज्ञानिकों ने भी पांच इंद्रियों को स्वीकार किया है। इन्हें 5 सेंस सिस्टम के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ऑडियोमेट्री सिस्टम अर्थात कर्ण इंद्रिय तंत्र ओल्फेक्ट्री सिस्टम अर्थात नासिका तंत्र विजन सिस्टम अर्थात दृश्य तंत्र टेस्ट सिस्टम अर्थात स्वाद तंत्र और पांचवा अंतिम तंत्र सोमेटिक सेंसेशन अर्थात दैहिक अनुभूति तंत्र ।

गौतम कणाद कपिल पतंजलि जैसे ऋषियों ने यह विषय भली-भांति स्पष्ट किया कि इंद्रियां अपने लिए नहीं शरीर की अधिष्ठाता सत्ता आत्मा के लिए अपने अपने विषयों रूप रस गंध का ग्रहण करती है इंद्रिया जड़ है आत्मा चेतन है। ऋषियों की मीमांसा विवेचना उहा पोह पूरी तरह पूर्णरूपेण केंद्रित रही जड़ शरीर की संचालक अधिष्ठाता चेतन एकदेशी अल्पज्ञ आत्मा, परमात्मा जैसे महा चेतन सर्वव्यापक तत्व जो इंद्रियों से ना जाना जाए अर्थात जो इंद्रिय गोचर है उस परम तत्व का साक्षात्कार कैसे करें ऐसे में उन्होंने इस विषय को प्रमुख ना मानकर गौण स्थान ही अपनी चर्चा वैदिक वांग्मय में दिया यह इंद्रिय कार्य कैसे करती है?। उन्होंने इस विषय पर भली-भांति प्रकाश डाला कि पांचों इंद्रियों क्यों और किसके लिए कार्य करती है । भारतवर्ष के ऋषि-मुनियों दार्शनिकों की विवेचना को आधार बनाकर वैज्ञानिको की एक जमात ने अनुसंधान किया जिसमें 19वीं शताब्दी से लेकर 20 वी शताब्दी के तंत्रिका वैज्ञानिक शरीर क्रिया विज्ञानीको फिजियोलॉजिस्ट शामिल थे अनुसंधान किया तो पांचों इंद्रियों में चार इंद्रियों के रहस्य को कुछ हद तक समझा दिया गया है अर्थात आंख कैसे देखती हैं कान कैसे सुनता है जीभ कैसे विविध स्वाद को ग्रहण करती है नाक कैसे विविध गंध को ग्रहण करती है पहचानती है इन चारों की फिजियोलॉजी को समझ लिया गया लेकिन पांचवी इंद्री त्वचा इंद्रिया अर्थात दैहिक अनुभूति तंत्र वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ था । आंख नाक कान जैसी इंद्रिया विशेष ऑर्गन में स्थित होती हैं नाक कान आंख जैसे अंग सरचना इंद्रिय ना होकर इंद्रियों की गोलक है इस कारण उनका अध्ययन सरल था लेकिन त्वचा इंद्रिया पूरे शरीर में विद्यमान रहती है इसका कार्य क्षेत्र इसका संवेदना अनुभव तंत्र बहुत व्यापक है। शरीर ठंडे गर्म तापमान का अनुभव शीतल मंद समीर या गर्म लू के थपेड़ों का अनुभव नंगे पैर चलकर घास के तिनकों का अनुभव कोमल कठोर स्पर्श का अनुभव कैसे करता है। शरीर वातावरण के बाहरी व आंतरिक दाब को कैसे अनुभव नियंत्रित करता है मौलिक्यूलर लेवल पर वैज्ञानिक इस पूरी प्रक्रिया कार्यप्रणाली से अनभिज्ञ थे। स्थूल स्तर पर पर तंत्रिका विज्ञानी केवल इतना जानते थे की मस्तिष्क से रीड की हड्डी से होते हुए सेंसरी नर्व्स का एक तंत्र है जो त्वचा पर जिनका एक छोर स्थित है जिनको नर्व एंडिंग्स कहाजाता है वही तापमान दाब को अनुभव करने वाले स्टुमली रिसेप्टर मौजूद है जो मैकेनिकल संकेतों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर मस्तिष्क को संकेत भेजते हैं। फ्रांस के दार्शनिक रेनी दकार्ते जो निर्देशांक ज्यामिति के भी आविष्कारक थे उन्होंने यह प्राथमिक मान्यता दी कि मस्तिष्क से होते हुए विविध धागे शरीर में फैले हुए हैं जो तापमान का अनुभव करते हैं। ऐसे बहुत सी मान्यताएं दार्शनिकों वैज्ञानिकों ने स्तनधारियों के सोमेटिक सेंसरी सिस्टम के संबंध में दी। लेकिन यह वास्तविक प्रयोगों से सिद्ध धारणा नहीं थी।

लेकिन उपरोक्त इन दोनों वैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग अनुवांशिकी तंत्रिका विज्ञान जैव रसायन विज्ञान का बखूबी इस्तेमाल करते हुए शरीर की पांचवी इंद्रिया अर्थात सोमेटिक सेंसेशन (त्वचा इंद्रिया) की कार्यप्रणाली को आणविक स्तर पर समझा दिया सबसे पहले हम वैज्ञानिक डेविड जूलियस के काम का उल्लेख करंगे जिन्होंने बताया कि शरीर कैसे ठंडे गर्म का अनुभव करता है अर्थात शरीर में तापमान का अनुभव करने वाली कार्यप्रणाली वास्तविकता में कैसी है?

डेविड जूलियस महोदय ने 1997 में लाल मिर्च मे पाए जाने वाले तीखेपन जलन के लिए जिम्मेदार मॉलिक्यूल कैप्सकीसीन को लेकर जीव धारियों के शरीर की कोशिकाओं में स्थित डीएनए के लाखों-करोड़ों टुकड़ों को लेकर कंप्लीमेंट्री डीएनए लाइब्रेरी बनाई यह आनुवंशिक विज्ञान की प्रक्रिया है फिर इस लाइब्रेरी को कंप्यूटर की फंक्शनल स्क्रीन से जोड़ दिया। बहुत मेहनत तथा परिश्रम से उन्होंने लाल मिर्च के मॉलिक्यूल से प्रक्रिया करने के लिए जिम्मेदार प्रोटीन बनाने वाले जीनो को खोजा जो कैप्सकिसीन के प्रति सेंसिटिव थे। उन्होंने बताया कि प्रत्येक त्वचा की कोशिका में एक विशेष प्रोटीन बनती है जो दरवाजे के फाटक की तरह काम करती है जैसे ही कोई शरीर में जलन ताप उत्पन्न करने वाला रसायन कोशिका के स्तर पर प्रतिक्रिया करता है तो यह चैनल खुल जाते हैं यह चैनल रिसेप्टर तथा ट्रांसड्यूसर का कार्य करते हैं यह विशेष चैनल प्रोटीन ही तापमान के अनुभव को विशेष संकेतों के माध्यम के रूप सेंट्रल नर्वस सिस्टम की सहायता से मस्तिष्क को सूचित करते हैं। डेविड जूलियस में तापमान ठंडे स्पर्श के लिए जिम्मेदार चैनल प्रोटीन को खोजा उनकी कार्यप्रणाली को समझाया उन दोनों चैनलों को उन्होंने निम्न नाम दिया Trpv1 व Trpv8 ।

दूसरे वैज्ञानिक एडम पेटपुतिन ने ठीक ऐसे ही जीन कोडिड चैनल प्रोटीन को खोजा कोशिका के मौलीक्यूलर कूलर स्तर पर जो शरीर के कोमल कठोर स्पर्श दाब की अनुभूति के लिए जिम्मेदार है उन्हें पीजों Piezo1 ,Piezo2 चैनल दिया किया गया। उन्होंने बताया यह चैनल प्रोटीन तंत्र कैसे हमारे शरीर के अंदरूनी रक्तचाप दाब के नियंत्रण यूरिन ब्लैडर (मूत्र थैली ) के भरने पर मूत्र त्याग जैसी क्रिया प्रक्रियाओं को मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित करने में बखूबी योगदान देता है। यह तंत्री निर्धारित करता है हमें किसी वस्तु को कितना कसकर कर पकड़ना होता है कैसी ग्रीप हमें उस पर नियंत्रण के लिए रखनी होती है ।इन दोनों वैज्ञानिकों ने बताया यह दैनिक अनुभूती तंत्र इतना व्यापक अनोखा है कि वातावरण में हमारे शरीर की स्थिति मोमेंट संतुलन इसी तंत्र पर निर्भर करता है। हम अपने आसपास के वातावरण को इसी तंत्र के माध्यम से अनुभव करते हैं।
जरा कल्पना कीजिए पल भर के लिए यदि भगवान इस पांचवे तंत्र को नहीं बनाता तो हमारी क्या दयनीय दशा होती आप ऐसे इंसान की कल्पना कर सकते हैं जो देखता हो सुनता हो चखता हो लेकिन परमात्मा की बनाई इस दुनिया के विविध पदार्थों का अनुभव करने में पूरी तरह लाचार हो कठोर स्पर्श गरम शीतल जल का अनुभव ना करता हो अर्थात उसे अपने होने का एहसास वातावरण में ना हो तो कितना नीरस यह जीवन हो जाता।

इन दोनों वैज्ञानिकों की खोज का मानवता के हित में यह प्रयोग होगा तथा हो रहा है ऐसी दर्द निवारक दवाइयां बनाई जाएंगी जिनका दुष्प्रभाव अन्य अंगों पर नहीं होगा गठिया बाय हड्डी रोगों में होने वाले दर्द क्रॉनिक पेन के ट्रीटमेंट में लाभ मिलेगा उच्च रक्तचाप की अधिक प्रभावी बिना नुकसानदायक दवाइयां बनाई जाएंगी।

अंततोगत्वा निष्कर्ष यही निकलता है ना कपिल गौतम पतंजलि जैसे ऋषि सर्वज्ञ थे और ना आज के नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक वैज्ञानिकों दार्शनिकों का अतीत से लेकर आज पर्यंत का वर्ग मानव शरीर के अनसुलझे रहस्य को ही समझाने की दिशा में प्रयासरत है शरीर के पूर्ण रहस्य हो तो इसके बनाने वाला वैज्ञानिकों का वैज्ञानिक परमेश्वर ही जानता है।

बोलिए जय वेद और जय विज्ञान।

आर्य सागर खारी✍✍✍

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