आधुनिक विज्ञान से-भाग-पांच

राज है आतंक का, और शांति है लोप क्यों?

तेरे ही विकास पर है, तेरा क्रूर कोप क्यों?

रूह कांपती मानवता की, उसको है संताप क्यों?
सुना था वरदान तू है, बन गया अभिशाप क्यों?

अणु और परमाणु बम के, बढ़ रहे हैं ढेर क्यों?
घातक अस्त्रों का विक्रय कर, मानव बना कुबेर क्यों?

क्या ये व्यवस्था कर पाएगी, मानव का कल्याण?
अरे ओ आधुनिक विज्ञान!

जीवन के तू चिन्ह ढूंढ़ता, चांद सितारों के ऊपर।
इधर तेरे दुष्परिणामों से, दम तोड़ रहा जीवन भू पर।

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