एक व्यस्त व्यक्ति हमेशा वक्त निकाल लेता है, लेकिन आलसी को कभी समय नहीं मिलता, खुद देखे हम व्यस्त हैं या अस्तव्यस्त
डॉ. स्वामी ज्ञानवत्सल
मनुष्य जीवन में संबंधों का अत्यधिक महत्व है। माता-पिता, पत्नी, पुत्र-पुत्री और मित्र आदि के साथ आपके कैसे संबंध हैं- उसका प्रभाव आपकी खुशहाली पर पड़ता है। संबंध अच्छे होंगे तो सुख। कड़वाहट भरे होने की स्थिति में दु:ख। हां, संबंधों की सेहत को दुरस्त रखने के लिए जरूरी है- एक दूसरे को वक्त देना। इसमें भी लोग सवाल करते हैं कि आखिर हमारे पास वक्त हैं कहां?
हाईटेक संसाधनों के साथ जीवन जी रहे किसी भी व्यक्ति से आप पूछेंगे, तो वह समय की कमी से जूझने की बात कहेगा। ‘मेरे पास वक्त नहीं है’ ये जवाब कमोवेश लोकव्यवहार का हिस्सा बनता चला जा रहा है। खुद से यह सवाल भी पूछा जाना जरूरी है कि क्या सच में हम वक्त की कमी से दो-चार हैं? यह सच है कि एक व्यस्त व्यक्ति हमेशा वक्त निकाल लेता है लेकिन आलसी व्यक्ति को कभी वक्त नहीं मिलता।
बात सिर्फ इतनी है कि हम खुद का निरीक्षण कर देखने-जानने का प्रयास करें कि हम व्यस्त हैं अथवा अस्तव्यस्त। क्या समय प्रबंधन करते हैं? सच्चा जवाब आएगा कि हम व्यर्थ की अनुत्पादक प्रवृत्तियों में घंटों व्यय कर देते हैं। महत्वपूर्ण बात-विषय और सवाल आने पर वक्त की कमी का रोना रोने लगते हैं। समय प्रबंधन के अभाव की वजह से कई कंपनियां दिवालिया होने की राह पर चली जाती हैं।
हजारों युवक विफल जीवन जीते हैं और लाखों परिवारों को कलह-टूटन का दंश झेलना पड़ता है। थोड़ा सा वक्त दें तो इस सब से बहुत हद तक बचा जा सकता है। संसार में हर व्यक्ति के लिए दिन 24 घंटे का ही होता है। बिल गेट्स हों अथवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इनका भी दिन 24 घंटे का होता है। फर्क इस बात से पड़ता है कि ये लोग दिन के वक्त का उपयोग कैसे करते हैं और आम लोग कैसे? सफल व्यक्तियों के पास कोई मिनट-सेकंड अलग नहीं होते। हां, इनका उपयोग करने का नजरिया और कौशल जरूर अलग होता है।
वॉरेट बफेट ने समय प्रबंधन पर अपना अनुभव साझा किया है। उन्होंने बताया है कि ‘शाम छह बजते हैं और मैं पैन टेबल पर रखकर खड़ा हो जाता हूं और मोबाइल स्विचऑफ कर देता हूं।’ बहुधा शाम छह बजे के बाद का वक्त वह घर पहुंचकर परिवार के साथ बिताते हैं। यह बहुत हिम्मती निर्णय है। ऐसा निर्णय करने के लिए दिल पर पत्थर रखकर खुद पर नियंत्रण लागू करने पड़ते हैं।
मौजूदा वक्त में हमारा सबसे अधिक समय जो लील रहा है, वह है मोबाइल। आलम ये हो गया है कि हम कहीं भी बैठे हों औसतन तीन मिनट के अंतराल पर यदि हाथ मोबाइल को न छुए तो हम ‘डिस्चार्ज’ होने लगते हैं! इस बात से इंकार नहीं कि सोशल मीडिया कुछ हद तक अच्छा है। इससे कनेक्टिविटी बढ़ती है। संदेश-विचारों के आदान-प्रदान सहित बहुत से लाभ हैं। यहीं सचेत होना है और वक्त का उचित प्रबंधन-उपयोग करने के लिए मोबाइल प्रयोग में विवेकपूर्ण स्वनियंत्रण लागू करना अनिवार्य हो जाता है।
थोड़ी भी फुर्सत मिलते ही हम इंटरनेट, वॉट्सएप, इंस्टाग्राम या यू-ट्यूब पर जाकर वक्त जाया करना शुरू कर देते हैं। समय प्रबंधन की पहली सीख तो यही है कि वक्त की कीमत समझिए। वक्त की बर्बादी करने से बचा जाए। प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन में यह गुण मैंने शाश्वत रूप में देखा है। मैंने कभी नहीं देखा कि वह कभी असमय सो रहे हों अथवा व्यर्थ वार्तालाप में संलग्न हों। वह हर पल का सदुपयोग करना बखूबी जानते थे।
एक बार की बात है। हॉस्पिटल में एक्स-रे करवाना थे। दो एक्स-रे के बीच मशीन को रिसेट करने में जो समय लगता था, उस बीच भी वह पत्र पढ़ लेते थे। इस तरह हर क्षण का यथासंभव सार्थक उपयोग कर उन्होंने साढ़े सात लाख पत्रों का पढ़कर जवाब दिया। चालीस लाख से अधिक लोगों से प्रत्यक्ष मिले। सत्रह हजार गांवों में विचरण किया। एक हजार से अधिक संतों को दीक्षा दी। लाखों हरिभक्तों को जीवन बोध का संतोष दिया।
ऐसी दिनचर्या के बावजूद एक भी दिन ऐसा नहीं बीता जब उनके दैनंदिन पूजा-अर्चना के क्रम में कोई व्यवधान आया हो। एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब वह निर्धारित वक्त पर सैर पर न निकले हों। वजह-समय प्रबंधन। एक वितरागी संत यदि इतने लोगों के लिए वक्त निकाल सकता है तो क्या हम अपने चार-पांच सदस्यीय परिवार के लिए वक्त नहीं निकाल सकते? इस पर गंभीरता से विचार करिए।