*क्या सपा नेताओं की तालिबानी मानसिकता पर अंकुश लगेगा*

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🙏बुरा मानो या भला 🙏

—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

कहावत है कि ख़रबूज़े को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।
अब देखिए पहले झारखंड विधानसभा में नमाज के लिए एक अलग से कमरा आवंटित किया गया और उसके बाद कुछ इसी तरह की मांग उत्तर प्रदेश में भी उठ रही है. समाजवादी पार्टी के कानपुर से विधायक इरफान सोलंकी ने मांग की है कि विधानसभा में नमाज के लिए अलग से एक कक्ष आवंटित किया जाए। इस बयान से समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं की तालिबानी मानसिकता स्पष्ट रूप से नज़र आती है। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित का साफतौर पर कहना है कि इरफान सोलंकी की तरफ से उनके कार्यालय में ना तो कोई प्रार्थना-पत्र आया है ना ही कोई आवेदन उन्होंने दिया है। उनसे जब यह पूछा गया कि क्या विधानसभा की नियमावली में इस तरह से किसी को नमाज के लिए किसी को पूजा के लिए कक्ष आवंटित करने की कोई व्यवस्था है? तो उनका साफतौर पर कहना था कि विधानसभा की नियमावली में इस तरह की कोई भी व्यवस्था नहीं है.
प्रश्न यह नहीं है कि क्या झारखंड की तर्ज पर उत्तरप्रदेश विधानसभा में एक अलग नमाज कक्ष की स्थापना हो पाएगी अथवा नहीं, बल्कि यक्ष प्रश्न यह है कि क्या धर्मनिरपेक्ष भारत में कथित सेक्युलर दलों द्वारा इस तरह की तालिबानी मांग उचित है? उल्लेखनीय है कि – “भारतीय संविधान में पुन: धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए 42 वें संविधान संशोधन अधिनयम, 1976 द्वारा इसकी प्रस्तावना में ‘पंथ निरपेक्षता’ शब्द को जोड़ा गया। यहाँ पंथनिरपेक्षता का अर्थ है कि भारत सरकार धर्म के मामले में तटस्थ रहेगी। … भारत सरकार न तो किसी धार्मिक पंथ का पक्ष लेगी और न ही किसी धार्मिक पंथ का विरोध करेगी।”

यहाँ गौरतलब है कि इरफान सोलंकी साहब समाजवादी पार्टी के नेता हैं और समाजवादी पार्टी अपने आपको धर्मनिरपेक्ष बताते नहीं थकती। इरफान सोलंकी के बयान को उनका व्यक्तिगत बयान नहीं माना जा सकता क्योंकि उनके इस बयान पर समाजवादी पार्टी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है, और न ही कोई स्पष्टीकरण देने का कष्ट किया। क्या इसे सपा के शीर्ष स्तर की मौन स्वीकृति नहीं माना जाना चाहिए? यहाँ यह भी समझना होगा कि इरफान सोलंकी की इस एकपक्षीय और कट्टरपंथी मांग पर कांग्रेस, वामपंथ, आम आदमी पार्टी सहित तमाम स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल मुहं में दही जमाये बैठे हैं। किसी ने इसको अनुचित ठहराने का प्रयास नहीं किया। जबकि यह वही तमाम दल हैं जिन्होंने अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि का विरोध करने और अंत तक श्रीराम मंदिर को रोकने का प्रयास किया था। समाजवादी पार्टी ने तो निहत्थे और निर्दोष रामभक्तों पर गोलियां चलवाने जैसा कुकृत्य किया था, जिसे बाद में बहुत बेशर्मी के साथ संविधान की रक्षा और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में छुपाने का असफ़ल प्रयास किया गया।

दूसरा प्रश्न यह भी है कि अगर आज आपको नमाज़ के लिए एक अलग कक्ष दे भी दिया जाए तो कल शायद आप सरकारी विद्यालयों में मुस्लिम अध्यापकों के लिए भी एक अलग कक्ष की मांग रखने लगेंगे। हॉस्पिटल में डॉक्टर्स के लिये मांग उठने लगेगी, रोडवेज, रेलवे, बैंक, इत्यादि में भी आप अलग से एक “नमाज कक्ष” की मांग करेंगे।
आखिर कब तक आप अपनी इस तालिबानी मानसिकता को धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनाए घूमते रहेंगे। कब तक?

🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।

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