‘उगता भारत वैबिनार – 5’ हुई संपन्न : ‘भारत के सांस्कृतिक मूल्य और शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षार्थी’ – विषय पर विभिन्न विद्वानों ने रखे अपने अमूल्य विचार
ग्रेटर नोएडा ( अजय आर्य)। शिक्षक दिवस 5 सितंबर के अवसर पर ‘उगता भारत वैबिनार – 5’ में भाग लेने वाले विभिन्न प्रमुख सहयोगियों और विद्वानों ने कहा है कि देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। प्रतिभागियों ने इस बात पर बल दिया कि शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच वैसा ही समन्वय स्थापित होना चाहिए जैसा कभी हमारे यहां पर गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली में आचार्य और शिष्य के बीच हुआ करता था।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ अशोक कुमार शर्मा ( पूर्व सूचना निदेशक उत्तर प्रदेश सरकार ) ने शिक्षक दिवस पर भारत के महान राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को नमन करते हुए कहा कि हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली मूल्य आधारित होती थी। जिसे बीच में विदेशी षड्यंत्रकारियों ने रोजगार प्रद बना दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा देशभक्ति, वेद भक्ति और प्रभु भक्ति सिखाने वाली होनी चाहिए। उसी से समाज, राष्ट्र और मानव मात्र का कल्याण हो सकता है।डॉ शर्मा ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को सही रास्ते पर लाने के लिए वैदिक दृष्टिकोण अपनाकर शिक्षा प्रदान किया जाना समय की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि डॉ राधाकृष्णन इसी प्रकार के वैदिक संस्कारों के आधार पर दी जाने वाली शिक्षा के समर्थक थे।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे पूर्व न्यायाधीश और राज्यपाल उत्तर प्रदेश के विधिक परामर्शदाता श्री एसएस उपाध्याय ने अपने विद्वत्ता पूर्ण वक्तव्य में कहा कि शिक्षा, शिक्षक, संस्कार और शिक्षार्थी का गहरा संबंध है। उन्होंने कहा कि शिक्षा मानव के भीतरी संस्कारों के साथ बाहरी दुनिया का सुंदर समन्वय स्थापित करने में प्रयोग की जानी चाहिए। भीतरी संस्कारों को सही स्वरूप प्रदान करना गुरु का कार्य है और गुरु वही हो सकता है जो स्वयं आचरणशील हो। ऐसे गुरु या आचार्य से ही सुसभ्य, सुशिक्षित और सम्मानित समाज का निर्माण हो सकता है जो स्वयं पवित्र आत्मा हो और पुण्य कार्यों को करने में जिसका सारा समय व्यतीत होता हो।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में मनुर्भव:, अहिंसा, आत्मन; प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् एकेश्वरवाद में बहुदेवतावाद, सहिष्णुता ,नैतिक कर्तव्य पूर्ण करने की उत्कृष्ट भावना, मन और मस्तिष्क की पवित्रता, संतोष और अपरिग्रह, आत्म कल्याण अर्थात मोक्ष, उसके मूल तत्व हैं। जहां तक शिक्षा और शिक्षार्थी की बात है तो उसमें परा विद्या और अपरा विद्या की बात हमारे यहां पर प्रचलित रही है जो आज की शिक्षा प्रणाली में नहीं मिलती। हमने घर को एक विश्वविद्यालय बनाया था जिसकी कुलपति मां होती थी, लेकिन आज यह परंपरा भी मिटती जा रही है।
उन्होंने कहा कि डॉ राधाकृष्णन ऐसे महान व्यक्तित्व थे जो भारत को भारत की आत्मा के साथ जोड़ने के प्रति संकल्पित रहे। उन्होंने भारतीयता के लिए कार्य किया और भारतीय दार्शनिक जीवन को संसार के लिए सर्वोत्तम सिद्ध किया।
कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष और उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य ने इससे पूर्व कहा कि उगता भारत समाचार पत्र शिक्षा, संस्कार और शिक्षा को जीवन का आधार बनता है। श्री आर्य ने कहा कि इन्हीं के आधार पर वर्तमान शिक्षा प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए। क्योंकि जहां पर ये चीजें यथार्थ स्वरूप में होंगी वहीं पर सदाचार और सद्भाव का विकास होगा । उसी से जीवन उत्कृष्ट होता है। श्री आर्य ने कहा कि वर्तमान सरकार को वैदिक शिक्षा बोर्ड स्थापित कर इस दिशा में ठोस निर्णय लेना चाहिए। श्री आर्य ने कहा कि महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित वेद समर्थक शिक्षा प्रणाली ही आज के भारत की समस्याओं का समाधान कर सकती है।
परम विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहे अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित और वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत तभी विश्व गुरु बन पाया था जब उसने उच्च संस्कारों को देकर आचार्यों का निर्माण किया था और उन आचार्यों ने अपने कठोर तप, त्याग और साधना से संस्कारित समाज का निर्माण किया। उन्होंने कहा कि हमारे आचार्य स्वयं में एक विश्वविद्यालय और चलती फिरती लाइब्रेरी होते थे । आज हमें ऐसे ही संस्थागत व्यक्तित्वों के निर्माण की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति अध्यात्म की संस्कृति है जो स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाती है। जबकि विशिष्ट वक्ता के रूप में ‘उगता भारत’ समाचार पत्र के समाचार संपादक मनोज चतुर्वेदी ‘शास्त्री’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि माता, पिता और गुरु बच्चे के शिक्षक होते हैं। उनके पवित्र आचरण से बच्चा बहुत कुछ सीखता है इसलिए प्रत्येक माता-पिता और आचार्य को संस्कारवान होने के साथ-साथ आचरणशील भी होना चाहिए।
कार्यक्रम के आयोजक संयोजक और पत्र के संपादक डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि हमें विदेशी विद्वानों की नकल ना करके अपने महान ऋषियों की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए कृत संकल्प होना चाहिए । जिन्होंने अपने गहन तप और साधना से संसार का उचित मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि भारत का अर्थ ही ज्ञान की दीप्ति में रत राष्ट्र से है । वेदों का अर्थ बताते हुए डॉक्टर आर्य ने कहा कि इसका शाब्दिक अर्थ भी ज्ञान है। जबकि संस्कार शब्द के बारे में उन्होंने कहा कि यह भी हमारी ज्ञान की उत्कृष्ट अवस्था का प्रतीक है। इस प्रकार हमारा राष्ट्र, हमारा धर्म ग्रंथ और हमारे संस्कार सभी ज्ञान की पवित्रतम अवस्था के प्रतीक हैं। इसी से शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी का संबंध जुड़ा है। क्योंकि इन तीनों के समन्वय से ही हम ऐसी उत्कृष्ट अवस्था को प्राप्त हो सकते हैं।
कार्यक्रम का सफल संचालन पत्र के संपादक राकेश आर्य बागपत द्वारा किया गया। जिन्होंने वैदिक शिक्षा और संस्कारों को स्थापित कर वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि वेद और वैदिक शिक्षा से ही विश्व शांति स्थापित हो सकती है और शिक्षा वही उत्तम है जो विश्व शांति स्थापित करने में सहायक हो। उन्होंने सांप्रदायिकता को विश्व शांति के लिए घातक बताया।
अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष और पत्र के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य ने सभी विद्वान प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया और आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी वे पत्र के माध्यम से लोगों का इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहेंगे।