बिहारीपन, डीएनए और नरेन्द्र मोदी व नीतीश की जंग
श्रीराम तिवारी
खबर है कि दिल्ली स्थित पीएमओ हाउस के निकटवर्ती पोस्ट आफिस में बिहार से भेजे गए ‘डीएनए सेम्पल’ लाखों की तादाद में पहुँच रहे हैं। न तो पोस्ट आफिस वालों को और न ही पीएमओ आफिस वालों को कुछ सूझ पड़ रहा है कि आखिर इस ‘बवाल’ का किया क्या जाए ? मोदी सरकार यदि इस नीतीश प्रेरित जन -भावना संदेश की अवहेलना करती है तो ‘निरंकुशता’ और अहंकार का आरोप लगना स्वाभाविक है। यदि इस अशुभ और विकराल डाक को दस्तावेजीकृत किया जाता है तो यह स्वयं प्रधानमंत्री मोदी की रुसवाई होगी। याने अब उगलत बने न लीलत केरी। भई गत साँप छछूंदर केरी ।। वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। क्या यह नसीब – वालों की बदनसीबी का मंजर नहीं है ? क्या यह चुनावी हथकंडों की एक बिहारी स्टाइल मात्र नहीं है?
इन सवालों की पड़ताल करने वालों को बिहार की विशिष्ट ऐतिहासिक ,भौगोलिक और सामाजिक स्थिति की भी पड़ताल कर लेनी चाहिए। जिस खाँटी बिहारीपन का राज ठाकरे जैसे ‘गैर बिहारी’ टुच्चे नेता ,दुनिया भर के गैर बिहारी छुद्र साहित्यकार एवं अधकचरे पत्रकार भी बड़े व्यंग्यात्मक लहजे में चटखारे लेकर मजाक उड़ाया करते हैं। उस विमर्श के बरक्स वे यह भूल जाते हैं कि बिहार की जन-मानसिकता और राजनैतिक अवगुंठन केवल बिहार का ही चरित्र नहीं है। बल्कि यह तो सम्पूर्ण भारतीय राजनीती का खिलाड़ीपन है। जो बिहार का डीएनए है वही दिल्ली का डीएनए है। वही पूरे उत्तर भारत का भी डीएनए है। यह केवल मेरी कोरी वैयक्तिक अवधारणा नहीं है। बल्कि भारत रुपी कुएँ में जो ‘बिहारीपन’ की ही भाँग पड़ी हुई है उस को कोई भी सामान्य बुद्धि का नर-नारी समझबूझ सकता है।
अन्यथा आसन्न विधान सभा चुनावों में विहार का राजनैतिक परिदृश्य ही इसे सावित भी कर देगा। एक तरह से यह चुनाव न केवल बिहार की बल्कि पूरे भारत की दशा और दिशा दोनों तय करेगा। क्योंकि बिहार सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं है। बल्कि पूरा समूचा भारत और खास तौर से भारत का हिन्दी भाषी क्षेत्र तो मानों बिहार का ही विस्तार है। मध्य प्रदेश ,यूपी, छग, राजस्थान, हरियाणा और झारखंड -सभी जगह कम-ज्यादा वही दुर्दशा है। जो बिहार की बताई जाती है। यदि कहीं न्यूनाधिक आर्थिक पिछड़ापन है ,तो कहीं मानसिक पिछड़ापन भी है। यदि बिहार में आर्थिक -सामाजिक पिछड़ापन ज्यादा है तो हरियाणा- यूपीवेस्ट में मानसिक पिछड़ापन ज्यादा है। उद्धरणार्थ बिहार में स्त्री-पुरुष अनुपात यदि हरियाणा से बेहतर ही है। किन्तु पंजाब,हरियाणा और यूपी वेस्ट में कन्या भ्रूण हत्या या ‘हॉनर किलिंग ‘कुछ ज्यादा ही है। मध्यप्रदेश राजथान और यूपी के सीमावर्ती जिलों में भी यही दुखद स्थिति है। यहाँ न केवल मानसिक बल्कि आर्थिक -दोनों ही तरह का पिछड़ापन खदबदा रहा है। यहाँ तो सत्तारूढ़ नेताओं को समझ ही नहीं पड़ रहा है कि आर्थिक पिछड़ापन ज्यादा है या कि सामाजिक पिछड़ापन ज्यादा है। मीडिया और साहित्यिक विमर्श केवल बिहार की चुनावी जीत-हार तक ही सीमित है। दरअसल यह इकतरफा प्रस्तुति ही बिहार के स्वाभिमान की भक्षक है। वेशक यह मेरी व्यक्तिगत सैद्धांतिक स्थापना हो सकती है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि बिहार का ‘डी एन ए ‘और सम्पूर्ण हिंदी भाषी भारत का डी एन ए एक ही है। इसीलिये बिहारियों को मोदी जी की किसी ऐंसी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए जो किसी के वैयक्तिक कटाक्ष हेतु कही गयी हो। नीतीश लालू के बरगलाने पर उन्हें अपना डीएनए भी दिल्ली नहीं भेजना चाहिए ।वैसे नीतीश ,लालू और कांग्रेस चाहे जितना नौटंकी कर लें किन्तु बिहार में अब ‘मंडल’ रुपी काठ की हांडी दुबारा नहीं चढऩे वाली। कमंडल रुपी साम्प्रदायिकता केअच्छे दिन आने वाले हैं। मोदी के अश्वमेध का घोड़ा बिहार में रोकने की क्षमता न तो नीतीश में है और न लालू या कांग्रेस में है। उनके ‘महागठबंधन’ में भी कोई दम नहीं है। चूँकि इन सबके अपने-अपने कलंकित इतिहास और विखंडित भूगोल हैं। वे अपने-अपने दौर में बिहार के हीरो नहीं बल्कि कूट -खलनायक ही रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है कि एक अंगुली ओरों की ओर उठाओगे तो चार तुम्हारी जानिब उठ जायंगी। बिहार में भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ कहने के लिए किसी के पास कुछ नहीं है।
वेशक कुछ एनडीए नेता झूंठ और पाखंड की शै पर देश भर में हो हल्ला मचाये रहते हैं। किन्तु एनडीए के अधिकांस बिहारी चेहरे -रविशंकर प्रसाद , सुशील मोदी ,राजीवप्रताप रूढि़ ,शाहनवाज हुसेन,रामविलास पासवान और जीतनराम माझी का व्यक्तित्व लालू यादव से बेहतर नही तो बदतर भी नहीं है। यदि ये एनडीए नेता नीतीश से बेहतर नहीं हैं तो भी वे नीतीश से कमतर भी नहीं हैं। लेकिन जनता का अभिमत विखंडित होने से विहार में ‘सत्यमेव जयते’ की बात वामपंथ के अलावा और कोई नहीं करता। चूँकि जागतिक परिवर्तनशीलता का सिद्धांत सिर्फ सकारात्मक रूप में ही लागू नहीं होता बल्कि नकारात्मक रूप में भी उसकी उतनी ही बखत है।और वक्त आने पर बिहार की जनता अपना सर्वश्रेष्ठ निर्णय जरुर देगी। किन्तु अभी तो हाल-बेहाल हैं। क्योंकि बिहार की जनता अभी तो जातिवाद बनाम पूँजीवादी खोखले विकासवाद के बीच ही ‘कन्फुजिया’ रही है।
मेरी आकांक्षा है कि बिहार विधान सभा के आगामी चुनावों में बिहार की जनता वामपंथ का समर्थन करे। और वामपंथ की ही विजय हो। वहाँ मजदूरों,गरीबों और किसानों का राज कायम हो ! किन्तु मेरे चाहने मात्र से इस दौर की हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता। सिर्फ मेरी आकांक्षा से बिहार का इतिहास तो निश्चय ही बदलने वाला नहीं है। होना तो यह चाहिए कि अपने वोट की ताकत से बिहार की जनता राज्य में व्याप्त घोर अराजकता ,जातीयतावाद और साम्प्रदायिकता को परास्त करे !वहाँ व्याप्त भृष्टाचार,बाहुबल और पूँजीवाद को परास्त करे। विहार में नीतीश,लालू और कांग्रेस का अवसर वादी महागठबंधन परास्त हो !
वहाँ भाजपा पासवान,माझी और कुशवाहा का मौका परस्त गठबंधन- एनडीए भी परास्त हो ! किन्तु मेरे चाहने मात्र से क्या होगा ? मुलायमसिंह यादव ने तीसरा मोर्चा खोल दिया है। चौथा मोर्चा अपना लाल झंडा लेकर बिहार की मेहनतकश आवाम को एकजुट करता हुआ नजर आ रहा है। बिहार में भाजपा को छोडक़र बाकी अन्य सभी मोर्चों के वोटर एक ही ‘खाप’ के हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि बिहार में अबकी बार ! केवल मोदी सरकार ही बनेगी।
कहा जा सकता है कि बिहार में तो वही होगा जो मंजूरे ‘बिहारी’ होगा । वैसे बिहारी याने बांके बिहारी भी होता है ,और उसी को मतलब प्रकारांतर से खुदा भी होता है। अर्थात बिहार में तो वही होगा जो ‘मंजूरे खुदा होगा ‘। आमीन !यह भी कहा जाता है कि ‘खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान ‘ खुदा का तथाकथित ‘सबसे नेक बन्दा’ असदउद्दीन ओवेसी भी आजकल बिहार के सीमांचल में अपनी कूट राजनैतिक जाजम बिछाने में जुटा हुआ है। इसलिए बहुत संभव है कि अब बिहार के चुनाव भी कश्मीर की साम्प्रदायिक तर्ज पर ही धुर्वीकृत होते चले जाएँ । इस इकतरफा ‘साम्प्रदायिक’ धुर्वीकरणके आधार पर और बहुत समभावना है की बिहार के चुनाव वहाँ के परम्परागत जातीय रन कौशल से अवश्य प्रभावित होंगे । किन्तु जो लोग साम्प्रदायिक और जातीय अलगाव की नयी चिंगारी को हवा देकर जीत हासिल करना चाहते हैं , वे भारतीय अस्मिता से खिलवाड़ कर रहे हैं। मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग के टैक्टिकल वोट जब थोक में ओवेसी की एमआईएम अर्थात -आल इण्डिया मजलिस-ए -इत्तेहादुल मुसलमीन के खाते में जमा होंगे तो भले ही उनके उम्मीदवार 4-6 ही जीतें किन्तु तब मंडल वालों का जातीय मिजाज गड़बड़ा जाएगा।