नेताजी के सच को सामने लाना जरूरी
भारत के महानायक नेताजी सुभाष चंद बोस की मौत (?) के रहस्य खुलने की कवायद शुरू हो गई है। तीन आयोगों की जांच में क्या परिणाम आया, इस बात को देश की जनता के समक्ष आना ही चाहिए। अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारे में सच की परतें खोलने की जो तुरुपी चाल चली है, उसको भले ही राजनीतिक दल के लोग अपने अपने दृष्टिकोण से देख रहे हों, परन्तु लम्बे समय से इस रहस्य से परदा उठाने की मांग भी की जाती रही है। यह ममता बनर्जी की कौन सी साजिश है, यह तो वही जानती होंगी, लेकिन यह सत्य है कि नेताजी का सच उजागर होना ही चाहिए। क्योंकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रति सरकार की मंशा क्या थी, इस सत्य को देश के सामने आना ही चाहिए। हम यह अच्छी प्रकार से जानते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अथक और कूटनीतिक प्रयासों से भी भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। लेकिन देश में सर्वाधिक समय तक केन्द्र की सत्ता का संचालन करने वाली कांग्रेस सरकार ने केवल उन्हीं लोगों को महिमामंडित करने का काम किया था, जो किसी न किसी रूप में कांग्रेस के नेताओं के साथ खड़े दिखाई देते थे। कांग्रेस भले ही आज देश के समक्ष यह प्रचारित करे कि भारत को उसने आजाद कराया, लेकिन यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व कोई राजनीतिक दल नहीं था, वह भारत के सभी नागरिकों के लिए एक मंच था। उस मंच पर देश के हर नागरिक को जाने की छूट थी। भारत की जनता के समूह के नाम पर काम करने वाले इस संगठन में उस समय के सारे राजनेता कांग्रेस के अभियान में शामिल थे। फिर चाहे वह डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हों, या फिर वीर सावरकर या नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सभी ने कांग्रेस के मंच से देश की आजादी के लिए लड़ाई का शंखनाद किया। लेकिन आजादी प्राप्त होने के बाद कांग्रेस को राजनीतिक रूप दे दिया, और कांग्रेस को एक परिवार के हवाले कर दिया। उल्लेखनीय है कि देश को आजादी प्राप्त होने के बाद महात्मा गांधी ने स्वयं कहा था कि कांग्रेस का काम पूरा हो गया है, अब कांग्रेस को विसर्जित कर देना चाहिए। लेकिन यह नेहरू और अंग्रेजों की चाल थी कि कांग्रेस विसर्जित नहीं हो सकी। इसमें तथ्यपरक बात यह भी है कि कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों ने ही की थी। कांग्रेस के सहारे देश चलाने का मतलब अंग्रेजों की संस्था का शासन ही था। अंग्रेजों को नेहरू जी पर न जाने क्यों पूरा भरोसा भी था, परंतु नेताजी जैसे क्रांतिकारियों पर नहीं।
स्वतंत्रता आंदोलन में भी दो प्रकार की विचार धाराएं देखी गईं थी। जिसके अंतर्गत एक नरम दल के नेताओं की सेना थी, तो दूसरी तरफ गरम दल के सूत्रधार थे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कहानियों के माध्यम से पता चलता है कि वह संघर्ष के बल पर आजादी प्राप्त करना चाहते थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों के साथ अनेक समझौते करने के बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत के रहस्य को रहस्य ही बनाकर रखा था। जवाहर लाल नेहरू कहते थे कि नेताजी के बारे में सच बताने से विदेशों से भारत के संबंध खराब हो जाएंगे। सवाल यह है कि विदेशों से संबंध कैसे खराब हो जाते, यह सच वर्तमान में देश के सामने आना चाहिए। आखिर वह कौन सा राज है जिसके कारण विदेश के साथ संबंध खराब होने की बात कही जाती रही। वैसे एक बात और ध्यान देने वाली है कि जब देश को आजादी मिल गई थी, तब देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सारे अधिकार मिल जाने के बाद भी नेताजी के बारे रहस्य क्यों बनाकर रखा गया। नेताजी का सच उजागर करने वाले दस्तावेजों में अगर सरकार की कमी उजागर होती है, तो निश्चित ही यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस की सरकारों ने अपने राज खुलने के भय से ही नेताजी के सच को दबा कर रखा था।
नेताजी सुभाष चन्द बोस की मौत के बारे में प्राय: 1945 की विमान दुर्घटना का हवाला दिया जाता है, लेकिन यह बात किसी भी संस्था ने प्रामाणिकता के साथ कभी नहीं कही कि नेताजी की मौत उस विमान दुर्घटना में हो गई थी। देश से अपरिमित प्रेम करने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रति कांग्रेस का इस प्रकार का रवैया वास्तव में देश के साथ एक मजाक था। कहा जाता है कि 1945 की विमान दुर्घटना में नेताजी साफ बच गए थे, इसके बाद उन्होंने रूस की शरण ली।
रूस का रुख नेताजी को रास नहीं आया तब नेताजी ने भारत लौटने की इच्छा जताई। उस समय भारत में अंग्रेजों का ही शासन था, अंग्रेज यह कतई नहीं चाहते थे कि नेताजी सुभाष भारत लौटकर आएं। यहां एक बात यह भी हो सकती है कि अंग्रेजों ने जो शर्त रखी होगी उसको जवाहर नेहरू ने स्वीकार किया ही होगा। अनुमान यह भी है कि अंग्रेज इस बात को भलीभांति जान चुके थे कि नेहरू भारत के प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा पाले हैं। अंग्रेजों ने नेहरू की इस इच्छा को भांप कर सोचा होगा कि अगर नेताजी भारत वापस आते हैं तो वे भारत के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। जो न तो अंग्रेज चाहते थे और न ही जवाहर लाल नेहरू ही चाहते थे। हो सकता है कि पंडित नेहरू को नेताजी एक अवरोध लग रहे हों। उन्होंने अपने रास्ते को सुगम बनाने के लिए नेताजी को भारत लाने में रुचि नहीं दिखाई। भारत की आजादी के बाद नेताजी के परिजनों की जासूसी भी की गई, उसके पीछे सरकार के क्या निहितार्थ हो सकते हैं। उस समय की केंद्र सरकार को नेताजी के परिजनों से क्या परेशानी थी। यह सब उन फाइलों में कैद हैं जो जांच के बाद आयोगों ने बनाई हैं। नेताजी के बारे में एक बात और उठ रही है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस विमान दुर्घटना के बाद भी जीवित थे और फैजाबाद में गुमनामी बाबा के नाम से जीवन यापन कर रहे थे। हो सकता है कि यह बात सही हो, लेकिन इसके सत्य होने में कई प्रकार के सवाल उठ रहे हैं।
पहला तो यह कि नेताजी कभी छुपकर नहीं रह सकते। दूसरा यह कि एक राष्ट्रवादी व्यक्ति भारत माता का अपमान कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता, उसका विरोध कभी भी सामने आ सकता था। नेताजी का स्वभाव समझौतावादी नहीं था, इसलिए यह कहा जा सकता है कि नेताजी ने अपने जीवन में जीने के स्वभाव से कभी समझौता किया ही नहीं होगा। फिर भी इसके विपरीत यह भी कहा जा सकता है कि हो सकता है कि नेताजी ने भारत सरकार द्वारा किए वादों की खातिर ही अपने आपको छुपाकर रखा हो। इसमें भी नेताजी की देश भावना का परिचय दिखाई देता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नेताजी के सच को उजागर करने की पहल कर ही दी है अब केन्द्र सरकार की कार्यवाही की प्रतीक्षा है कि वह क्या कदम उठाती है।
आजादी के 68 साल बाद भी नेताजी की रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है। इसके लिए सरकार ने तीन जांच आयोग भी बिठाए थे। लेकिन इन आयोगों की जांच के उपरांत भी कोई खास परिणाम नहीं निकल सका। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 64 फाइलों को खोलकर रहस्य को उजागर करने की पहल कर दी है। अब 134 उन फाइलों से पर्दा उठना बाकी है जो केंद्र सरकार के अधीन हैं। केंद्र की भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार को अब यह यह फाइल खोल देना चाहिए, जो उनके द्वारा चुनाव में किया गया वादा भी है। श्रेय किसी को भी मिले लेकिन नेताजी का सच देश के सामने आना ही चाहिए।