हिन्दू समाज में जातीय समन्वय के अद्भुत ऐतिहासिक प्रसंग (3)
गतांक से आगे…
जाटों ने इस युद्घ में मराठा पेशवा सेना का पूरा साथ दिया। यही कारण था कि पानीपत की तीसरी लड़ाई अब्दाली के हाथों हार जीने पर भी केवल दस वर्ष बाद ही दिल्ली तथा संपूर्ण उत्तर भारत में तथा सिंधु पार अटक तक हिंदुओं की सेनाएं अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहीं।
पूर्वजों के महान बलिदानों के कारण ही आज हमारा अस्तित्व है
इतिहास की भूलों से हमें शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। परस्पर का विद्वेष विजातीय हो या सजातीय शत्रु को लाभ पहुंचाता है। किंतु इसका अर्थ यह भी नही है कि हम आपस में लडऩे की घटनाओं को अति रंजित रूप में प्रदर्शित करें। एक दूसरे की सहायता में विभिन्न जातियों ने जो बलिदान किये, अपना रक्त बहाकर जो युद्घ जीते अथवा हारे, उन अगणित बलिदानों को विस्मृत करना इतिहास से धोखा होगा और हिंदू जाति के साथ विश्वासघात होगा। अत: आज जो बड़े-बड़े नेता हिंदुओं को उपदेश करते हैं और हमारी पराजय का दोष जातिवाद पर मढ़ते हैं उन्हें समझना होगा कि हम सैकड़ों आक्रमणों के बाद भी आज सौ करोड़ हिंदू भारत में निवास करते हैं। इसका आधार बलिदान का ही यह परिणाम है।
हिन्दू जाति को विघटित करने के षडयंत्रों को नष्ट करें।
यह समय हमारे कर्तव्य व साधनामयी प्रयत्नों की पराकाष्ठा का समय है। आज हमें हिंदुत्व विरोधी अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्रों को विफल करते हुए अपने अस्तित्व व स्वाभिमान की रक्षा का सफल प्रयत्न करना होगा। जिन्होंने पहले देश तोडऩे में विधर्मियों की सहायता की थी आज वे हिंदू समाज को ही तोडऩे की नित नयी नीतियां गढ़ते चले जा रहे हैं। हिंदुओं पर जाति व्यवस्था का आरोप लगाकर स्वयं को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने वाले राजनेताओं ने हिंदू समाज को जातियों में बांटकर फूट डालो राज करो की कुनीति अपनायी हुई है। यह हमारी सनातन समरस समाज रचना को, उसकी आंतरिक भव्यता व एकात्मता को दृश्य से बाहर करने का एक कुटिल प्रयत्न है। जिससे हमें समग्र हिंदू समाज को सावधान करना है।
हिन्दू समाज में जातीय समन्वय के अदभुत धार्मिक प्रसंग
हिन्दुओं में जातीय भावना की चर्चा करने वालों को इस पर भी विचार मंथन करना चाहिए कि क्षत्रीय वंश के श्रीराम व यदुवंश के श्रीकृष्ण को भगवान मानकर साक्षात ईश्वर के अवतार रूप में दिव्य भव्य मंदिरों में उनकी मूर्ति प्रतिष्ठापना का पुण्य कार्य ब्राह्मणों द्वारा क्यों किया गया। क्षत्रीय वर्ण के श्रीराम ने ब्राह्मण रावण का वध किया था परंतु सभी हिंदू धर्माचार्य व ब्राह्मण पुरोहित कहते हैं कि भगवान राम ने रावण रूपी राक्षस का संहार किया था। ब्राह्मण वध करने वाले क्षत्रिय श्रीराम को ब्राह्मणों ने भगवान विष्णु का अवतार माना और आज तक संपूर्ण भारत व विश्व में श्रीराम और साथ ही माता जानकी, लक्ष्मण व हनुमान जी की लाखों मंदिरों में पूजा, अर्चना करके आरती उतारी जाती है। इस पुण्य कार्य में श्रद्घाभाव से अधिकांशत: ब्राह्मण पुजारी अहर्निश लगे रहते हैं। यादव कुल में उत्पन्न श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का संपूर्ण कलाओं का अवतार मानकर उनकी श्रद्घापूर्वक पूजा करने में ब्राह्मण सहित सभी हिंदू धर्मावलंबियों को गर्व का सुखद अनुभव होता है। जातीय समन्वय एवं परस्पर एकात्मता की इस दुर्लभ मनोभावना को कौन चुनौती दे सकता है।
राजपूत घराने की मीरा ने भक्ति मार्ग पर जब अलग जीवन पग आगे बढ़ाया तो अपना गुरू संत रविदास महाराज को चुना जो आज की राजनीतिक शब्दावली में हरिजन समाज के अंग थे। जुलाहे कबीर को आचार्य रामानंद ने अपना शिष्य बनाया। अगड़ी और पिछड़ी जातियों के जो नेता आजकल आरक्षण आदि की खाई निर्माण कर रहे हैं, वे भारत को निरंतर लघु बना रहे हैं। जबकि प्राचीन भारत में अगड़े पिछड़ों ने मिलकर चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापित करके दिग्विजय के कीर्तिमान बार-बार स्थापित किये हैं। आधुनिक नेता विचार करें कि जिन जातियों ने परस्पर सहयोग से भारत को अखण्ड राष्ट्र बनाया हिंदुओं की उन्हीं जातियों को परस्पर लड़ाकर आज के नेता भारत को खण्ड-खण्ड करने में क्यों लगे हैं?
इस वर्तमान शासन के कर्णधारों व हिंदू समाज की जातीय व्यवस्था पर टीका टिप्पणी करने वाले कथित विचारकाकेें का आवाह्न करते हैं कि वे भारत के संविधान में जाति विहीन समाज की व्यवस्था बनाकर दिखायें तब उन्हें पता चलेगा कि उसमें मनुस्मृति बाधक नही है, बाधा आएगी भी तो उन दलों और राजनेताओं से जो एक ओर तो जाति व्यवस्था की दिन रात निंदा करते हैं और दूसरी ओर जन्मगत जातीय सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए आरक्षित सूची में जातियों की संख्या निरंतर बढ़ाने में संलग्न है। चातुर्वण्र्य मया सृष्टा गुणकर्म विभागश: गीता में श्रीकृष्ण गुण कर्म के आधार पर चार वर्णों के निर्माण की घोषणा करते हैं। आज नेता जन्म के आधार पर चार हजार जातियों में हिंदुओं को बांटकर राजनीतिक वैमनस्य के बीज बोने में लगे हुए हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की वकालत करने वाले राजनीतिज्ञों से हम बहुजातीय और सर्वजातीय समाज उत्थान का आवाह्न करते हैं कि वे निर्धनता की रेखा को आधार बनाकर सर्वजातीय आरक्षण का प्रबंध करें। समाज को जोडऩा प्रारंभ करें, तोडऩा छोड़ दें। भारत की राष्ट्रीय एकात्मता को साकार करने का एकमात्र मार्ग है-हिंदुत्व का वह सिंहनाद जो सर्वजातीय समन्वय के द्वारा इतिहास के प्रत्येक मोड़ पर विदेशी आक्रांताओं के सपनों को चकनाचूर करते हुए संकट की हर घड़ी में अपराजेय सिद्घ हुआ। समाप्त