सूरज जैसा आना जाना
जीवन राग
- संजय पंकज
जीवन और जागरण का आलोक-
राग गाता सूरज हर दिन आता है। आता है;और अपनी नम किरणों के सतरंगी स्पर्श से गुदगुदाता हुआ सबको जगाता है। जाग जाता है संपूर्ण जीव जगत! धरती और अंतरिक्ष भी तब सोए नहीं रहते। सात रंगों को आत्मसात करने वाली सूरज की उजली किरणें पेड़ों की फुनगियों पर नाचती है,घर-घर पर उतराती इठलाती है, नदियों की कलकल धारा पर बिछलती है। लताओं पर लटकी ओस की बूंदें मोतियों की तरह चमक उठती हैं। रंगों के सुर झिलमिला उठते हैं। सारे रंग जब मिल जाते हैं तो उज्ज्वलता का निर्माण होता है। निर्मल और निश्छल संगीत प्रसरित होता है। अनेक रंगों का उज्ज्वल देश है अपना भारत।
धीरे धीरे उठता-घूमता सूरज सफर में निकल जाता है। सूरज शोर नहीं मचाता अपना ताप बढ़ाता है और मंजिल की ओर बढ़ता है। प्रकाश की संगीतधारा आदि से विलंबित और फिर द्रुत होती अंत में उतर जाती है। पूरब से पश्चिम तक सूरज प्रकाश का अनहद नाद गुंजाता सफर करता चलता रहता है, जलता रहता है। कहीं से ओझल होता है तो कहीं प्रकट हो जाता है। कभी यहां तो कभी कहीं और होता है!उसे विश्राम नहीं!उसे तो संपूर्ण ब्रह्मांड को जगाए और जिलाए रखना है। जगत का सेवक,पहरेदार,संरक्षक और ईश्वर है सूरज! कोई कहता नहीं मगर सच तो यह है कि सब सूरज को अछोर और अटूट प्यार करते हैं, रोज-रोज उसका इंतजार करते हैं। सूर्य की चेतना को जीता अमृतत्व को सबके लिए उलींचता शाश्वत देश है भारत।
सूरज का आना असीम भैरव राग है तो उसका जाना अनंत राग विहाग है! सूरज के जगते ही जग जाती हैं दिशाएं,पंखों को फड़फड़ाते एक-दूसरे से होड़ लेने लगते हैं पक्षियों के झुंड, फूलों की मुस्कुराहट पर कुर्बान हो उठते हैं भौंरे, थिरकने लगती हैं तितलियां, सरोवर में खिलखिलाते हैं कमल! सूरज के आते ही खेत,खलिहान, वन-उपवन, चौपाल,मंदिर मस्जिद सब जग जाते हैं।जग जाते हैं देवता भी।संपूर्ण प्राणियों के बीच मनुष्य भी है जो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानता है। जगता वह भी मगर सोए सोए,चलता है तब भी सोया रहता है। यह मनुष्य जाने कितना कुछ,क्या-क्या और कैसे-कैसे करतब करता है मगर सब सोए सोए ही। और जब कभी भी जागता है तो अपनी सांसों में समेट लेता है हवा,प्रकाश और आग को भी।धड़कन-धुन पर अंगड़ाइयां लेता सूरज को सहेज लेता है आत्मा में ;फिर तो आक्षितिज विराट भारत फैलता चला जाता है!
सूरज जागता है और आज का मनुष्य सोता रहता है।जगे थे उसके पुरखे जिन्होंने जगते ही अभिनंदन किया था सूरज का, दिन के उजाले का!सूर्य नमस्कार करते हुए पूर्वजों ने अर्जित किया था तेज,मेधा, ऊर्जा और अक्षय आकर्षण!जागती रहती हैं स्त्रियां! उगते और डूबते हुए सूर्य को देती हैं अर्घ्य।भौतिकता की चकाचौंध में फंसा आज का आदमी आलोक की अभ्यर्थना भूल गया है।अस्ताचल में डूबने से पहले सूरज आसमान में किरणों के बिखेर देता है रंग ही रंग।जाने से पहले सूरज सारे प्राणियों को विश्रांति के लिए रात के हवाले कर देता है। थके पखेरू नीड़ो में लौटते हैं, नींद की गोद में चले जाते हैं बच्चे, सपनों में खो जाते हैं सब के सब। आलोक को अंतश्चेतना में उड़ेल कर सूरज वादा करके जाता है कि आता हूं जल्दी ही अमृतकलश लेकर तुम्हारे लिए! भले ही होगा सूर्योदय का कोई और देश मगर सूर्य की आत्मा का संपूर्ण विस्तार है भारत।सत्य,प्रेम,करुणा का सतत गायन करता भारत संपूर्ण विश्व को अपनी लय में समेट लेता है और उल्लसित होता है। सार्थक है वह जीवन जिसका आना-जाना सूरज जैसा होता है। भारत का आलोकित अलौकिक राग सूरज का संपूर्ण वैभव है।
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