भारतीय कुश्ती की छवि को पहलवान सुशील कुमार की वजह से तगड़ा झटका
मनोज चतुर्वेदी
हर खेल में कुछ खिलाड़ी दूसरों से हटकर होते हैं। वे खेल का माहौल बदलने का दम रखते हैं। निशानेबाज अभिनव बिंद्रा और मुक्केबाज विजेंदर ऐसे ही खिलाड़ी हैं। दोनों ने ओलिंपिक में क्रमश: गोल्ड और ब्रॉन्ज पदक जीता। पहलवान सुशील कुमार को भी इसी वर्ग के खिलाड़ियों में रखा जा सकता है। उन्होंने भारतीय पहलवानों में भरोसा जगाया कि उनमें प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने का दम है। वैसे तो खशाबा दादासाहेब यादव 1952 के ओलिंपिक में कांस्य पदक और बिशम्बर पहलवान 1967 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीत चुके थे, लेकिन इन दोनों के मुकाबले सुशील का दर्जा इसलिए ऊंचा है, क्योंकि उन्होंने भारतीय कुश्ती की शक्ल बदल दी। सुशील के पेइचिंग ओलिंपिक में सफलता पाने से भारतीय कुश्ती में थोड़ी हलचल हुई, लेकिन 2010 मॉस्को विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल और 2012 के लंदन ओलिंपिक में रजत पदक जीत कर वह देश के युवाओं को कुश्ती को अपनाने के लिए प्रेरित करने में सफल रहे।
बहरहाल, कहा जाता है कि शोहरत पाने से ज्यादा मुश्किल उसे पचाना होता है। एक बार जब आप युवाओं की प्रेरणा बन जाते हैं तो आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। लगता है, सुशील कुमार इन जिम्मेदारियों को संभालने में किसी हद तक असफल रहे हैं। यही वजह है कि वह आजकल एक पहलवान के मर्डर का आरोप झेल रहे हैं। पिछले दिनों छत्रसाल स्टेडियम की पार्किंग में देर रात दो पहलवान गुटों में हुए संघर्ष में एक पहलवान सागर धनखड़ की जान चली गई और इसका आरोप अन्य लोगों के साथ सुशील पर भी लगा है। वह इस मामले में शामिल हैं या नहीं यह तो जांच पूरी होने पर ही सामने आएगा, लेकिन फिलहाल सुशील कुमार लापता हैं और वह विदेश न भाग जाएं, इसलिए पुलिस ने लुकआउट नोटिस जारी किया है, साथ ही साथ ही पहलवान सुशील कुमार पर ₹100000 का इनाम भी घोषित किया है
इस ममले से भारतीय कुश्ती की छवि खराब हुई है। असल में कुछ दशक पहले तक पहलवानों की छवि दबंगों वाली हुआ करती थी। तमाम पहलवान विवादित संपत्तियों को खाली कराने का काम भी किया करते थे। लेकिन पिछले दो-तीन दशक में उनकी छवि काफी बदली है। पहलवानों को सुरक्षा बलों में नौकरी मिलने लगी है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। इसी वजह से देश में कुश्ती के स्तर में निरंतर सुधार दिखने लगा है। हम इस साल जुलाई-अगस्त में होने वाले टोक्यो ओलिंपिक की बात करें तो भारत के आठ पहलवानों ने अब तक इन खेलों का टिकट कटाया है। इनसे दो-तीन पदक जीतने की उम्मीद की जा रही है।
कहा जाता है कि जो खिलाड़ी सफलता के नशे में डगमगाता नहीं है, वही सही मायने में चैंपियन कहलाने लायक होता है। सुशील भले ही ओलिंपिक में दो पदकों के साथ विश्व चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल जीतने वाले इकलौते भारतीय पहलवान हैं, लेकिन वह हमेशा विवादों से जुड़े रहे। यही कारण है कि वह क्रिकेट में सचिन तेंडुलकर जैसा दर्जा कभी हासिल नहीं कर सके। तेंडुलकर या अभिनव बिंद्रा जैसी छवि बनाने के लिए उनकी ही तरह का व्यवहार भी करना पड़ता है।
सुशील कुमार के लंदन ओलिंपिक में रजत पदक जीतने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि वह 2016 के रियो ओलिंपिक में भी भाग लेंगे, लेकिन वह लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों से दूर रहे। 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों में भाग लेने के बाद किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया। वह ओलिंपिक में 66 किलोग्राम वर्ग खत्म होने पर 74 किलोग्राम वर्ग में भाग लेना चाहते थे। इस वर्ग का कोटा नरसिंह यादव ने हासिल किया था। परंपरा यही थी कि कोटा जीतने वाले पहलवान को ही ओलिंपिक में भेजा जाएगा। लेकिन पहले उन्होंने इस मामले को कोर्ट में घसीटा और फिर ट्रायल कराने का दबाव बनाया। इन सबसे बात नहीं बनी और नरसिंह का जाना पक्का हो गया। लेकिन उसके बाद नरसिंह डोप टेस्ट में फेल हो गए। उस मामले में भी सुशील कुमार की ओर उंगलियां उठी थीं। उन पर साजिश करने का आरोप लगा था। इसी तरह 2017 में गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए हुए ट्रायल के दौरान सुशील और प्रवीण राणा के समर्थकों में मारपीट हो गई थी। इस मामले में भी सुशील और उनके समर्थकों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था।
पिछले दिनों सुशील ने गायब होने से पहले कहा था कि मैं और मेरे साथी पहलवान हत्या के इस मामले में शामिल नहीं हैं। हमने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया था कि छत्रसाल स्टेडियम परिसर में कुछ बाहरी लोग घुसकर झगड़ा कर रहे हैं। अच्छा होता अगर वह पुलिस के साथ जांच में सहयोग करते। लापता नहीं होते।
इस मामले में सच क्या है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि इस घटना से भारतीय कुश्ती की छवि को तगड़ा झटका लगा है। कुछ ही महीने में ओलिंपिक खेल शुरू होने वाले हैं। क्वॉलिफाई कर चुके पहलवान इसकी तैयारी पर पूरा फोकस बनाए हुए हैं। ऐसी स्थिति में इस तरह की घटना पहलवानों के मनोबल पर बुरा असर डाल सकती है। यही नहीं इन घटनाओं से पहलवानों की पुरानी दबंगई वाली छवि फिर मजबूत बन सकती है। यह स्थिति युवाओं को इस खेल से विमुख भी कर सकती है। हां, अगर बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट की अगुआई वाला दल टोक्यो ओलिंपिक में शानदार प्रदर्शन करके भारतीय कुश्ती की चमक बढ़ा दे तो यह दाग जरूर धुंधला पड़ सकता है।
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