नेशनल टास्क फोर्स में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होना आश्चर्यजनक

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अजय कुमार

12 सदस्यीय टीम में दिल्ली के अस्पतालों से तीन डॉक्टरों, महाराष्टु और तमिलनाडु से दो-दो, गुरुग्राम और पश्चिम बंगाल से एक-एक के अलावा केन्द्र सरकार के सचिव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण एवं केन्द्रीय कैबिनेट सचिव को भी शामिल किया गया है।

देश की सर्वोच्च अदालत का कोरोना महामारी के चलते होने वाली मौतों और इससे निपटने के तिए केन्द्र या राज्य सरकारों की लापरवाही के खिलाफ गुस्सा जायज है। सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकारों को आइना दिखाने के साथ फटकार भी लगा रहा है। खासकर केन्द्र की मोदी सरकार के प्रति सुप्रीम कोर्ट की पीठ का रवैया ज्यादा ही सख्त दिख रहा है। ऐसा होना स्वभाविक भी है क्योंकि किसी राज्य में ऑक्सीजन या दवाओं की कमी होती है तो इसको पूरा करने की जिम्मेदारी केन्द्र के ही कंधों पर होती है। कोर्ट इस बात का भी ध्यान रखे हुए है कि उसके आदेशों को बिना हीलाहवाली के केन्द्र अक्षरशः पालन करे। कोरोना महामारी से जनता को हो रही समस्याओं का निराकरण करने के लिए सुप्रीम कोर्ट कई बार स्वतः संज्ञान लेकर भी संबंधित पक्षों को आदेश दे रहा है। हालात तब भी नहीं सुधरे तो सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को वैज्ञानिक फार्मूले और जरूरत के आधार पर पर्याप्त ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए शीर्ष मेडिकल विशेषज्ञों की 12 सदस्यीय नेशनल टास्क फोर्स गठन कर दी। यह फोर्स सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम करेगी। यह टास्क फोर्स ऑक्सीजन सप्लाई के ऑडिट के लिए उपसमूह बनाएगी और केंद्र सरकार को अपने सुझाव देगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि जब तक टास्क फोर्स अपने सुझाव देती है, केंद्र सरकार दिल्ली को रोजाना 700 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति जारी रखेगी। 12 सदस्यीय नेशनल टास्क फोर्स बनाने का आदेश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिया हैं।

यहां तक तो सब ठीक है, लेकिन यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो नेशनल टास्क फोर्स गठित की है उसमें उन राज्यों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं रखा गया जो कोरोना महामारी से बुरी तरह से पीड़ित हैं। 12 सदस्यीय टीम में दिल्ली के अस्पतालों से तीन डॉक्टरों, महाराष्ट्र और तमिलनाडु से दो-दो, गुरुग्राम और पश्चिम बंगाल से एक-एक के अलावा केन्द्र सरकार के सचिव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण एवं केन्द्रीय कैबिनेट सचिव को भी शामिल किया गया है। कैबिनेट सचिव फोर्स के संयोजक होंगे और वह एक अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी को अपने साथ जोड़ सकते हैं। यह टास्क फोर्स ऑक्सीजन सप्लाई के ऑडिट के लिए उपसमूह बनाएगी और केंद्र सरकार को अपने सुझाव देगी। इसी टीम में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होना आश्चर्यजनक लगता है, जबकि यह राज्य सबसे अधिक जनसंख्या वाले हैं। यहां हालात भी कम खतरनाक नहीं हैं।

अंदाजा लगाइए ऐसी ही टीम यदि मोदी सरकार ने बनाई होती जिसमें गैर भाजपा राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं होता तो हाहाकार मच चुका होता। विपक्ष मोदी हाय-हाय करने लगता। मामला अदालत पहुंचता तो वहां से भी केन्द्र सरकार से सवाल किये ही जाते। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कई बार यह देखने को मिला भी है। इस समय सुप्रीम कोर्ट का पूरा ध्यान दिल्ली पर लगा हुआ है। इससे कोई एतराज नहीं है, लेकिन देश में अन्य जगह क्या हो रहा है, उसे भी तो संज्ञान में लेना चाहिए। ऑक्सीजन की कमी दिल्ली में ही हो ऐसा नहीं है। आम आदमी पार्टी के विधायक के यहां से ऑक्सीजन सिलेंडर का जखीरा बरामद होना यह साबित करता है कि ऑक्सीजन की किल्लत से अधिक उसके वितरण को सुनिश्चित करना और कालाबाजारी रोकना ज्यादा जरूरी है।

सवाल यह भी उठ रहा है कि बंगाल की हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पश्चिम बंगाल की सरकार को क्यों कोई दिशानिर्देश नहीं दिया जा रहा है, जहां भाजपा कार्यकर्ताओं का नरसंहार हो रहा है। इसी प्रकार किसान आंदोलन के नाम पर सियासत करने वालों के बारे सख्त फैसला नहीं लिया गया। कोरोना काल में जिस तरह से कुछ किसान संगठन आंदोलन की सियासत करते हुए सड़क जाम करके बैठ गए हैं, उसका भी तो प्रभाव कोरोना महामारी से निपटने पर पड़ रहा है। यह सब भी सुप्रीम कोर्ट को दिखना चाहिए।

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