ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ?
सेक्युलर भजन – ईश्वर अल्लाह तेरो नाम कितना सही है?
कुरान के अल्लाह व वेद के ईश्वर में अन्तर
अलग अलग भाषाओं में सर्वव्यापी परमात्मा के अलग अलग नाम हैं । मूर्खों ने परमात्मा के नाम पर हिन्दू मुस्लिम सिक्ख जैन बोद्ध ईसाई आदि अनेक मतमतान्तर खडे कर लिए हैं । अल्लाह अरबी भाषा का शब्द है और ईश्वर संस्कृत भाषा का । अल्लाह शब्द अरबी भाषा में ईसाईयों यहूदियों और मुस्लिमों द्वारा ईश्वर के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द है !अल्लाह शब्द का अर्थ है। .. अल (The) + इलाह (God) जिस प्रकार किसी की एकमात्रता, या विशेषता दिखाने के लिये अंग्रेजी में “The” Noun का प्रयोग होता है, उसी प्रकार अरबी में “अल” का प्रयोग होता है, इस प्रकार “अल्लाह” का अर्थ होता है “एकमात्र उपास्य ईश्वर” यानी अल्लाह का अर्थ सिर्फ ईश्वर है, जिसका कोई रूप रंग नहीं, बल्कि जो भी व्यक्ति एक निराकार ईश्वर में आस्था रखता हो..अरबी में कहा जाएगा उसकी अल्लाह पर आस्था है। इसी प्रकार विसमिल्लाह रहमाने रहिम- इस वाक्य का अरबी भाषा में अर्थ है- दयालु परमेश्वर का नाम लेकर कोई कार्य प्रारंभ करना । ऐसे ही अल्लाह हू अकबर का अर्थ है ईश्वर महान है, God is Great. अर्थ एक ही है केवल भाषा का अन्तर है । इस्लाम के जन्म से पहले भी अरबी भाषा में अल्लाह शब्द मौजूद था और उसे सर्वव्यापक निराकार ही माना जाता था जो वेदानुकूल था । जैसे हिन्दुओं ने अपने पुराणों में ईश्वर को गलत ढंग से पेश किया है ,उसके अनेक अवतार माने हैंं और उनमें काल्पनिक किस्से कहानियों की भरमार है ऐसे ही कुरान और बाईबल में भी ईश्वर को गलत ढंग से पेश किया है और उनमें काल्पनिक किस्से कहानियों की भरमार है ।
वेद ईश्वरीय वणी हैं शाश्वत है और उनमें ईश्वर जीव प्रकृति का यथार्थ ज्ञान है । वेद के ईश्वर और कुरान के ईश्वर वा अल्लाह में बहुत अन्तर हैं-
१) ईश्वर सर्वव्यापक (omnipresent) है, जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है।
२) ईश्वर सर्वशक्तिमान (omnipotent) है, वह कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता, जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नों की सहायता लेनी पड़ती है।
३) ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है, जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी उनका जो कि कब्रों में दफनाये गए हैं।
४) ईश्वर क्षमाशील नहीं, वह दुष्टों को दण्ड अवश्य देता है, जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है। मुसलमान बनने वाले के पाप माफ़ कर देता है।
५) ईश्वर कहता है, “मनुष्य बनो” मनुर्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जनम् – ऋग्वेद 10.53.6,
जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों. सूरा-2, अलबकरा पारा-1, आयत-134,135,136
६) ईश्वर सर्वज्ञ है, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालों की बातों को जानता है, जबकि अल्लाह अल्पज्ञ है, उसे पता ही नहीं था की शैतान उसकी आज्ञा पालन नहीं करेगा, अन्यथा शैतान को पैदा क्यों करता?
७) ईश्वर निराकार होने से शरीर-रहित है, जबकि अल्लाह शरीर वाला है, एक आँख से देखता है। यजुर्वेद के 26 वें अध्याय में ईश्वर का उपदेश है -मैंने कल्याणकारी वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण के लिए दिया है।
”अल्लाह ‘काफिर’ लोगों (गैर-मुस्लिमों) को मार्ग नहीं दिखाता” (१०.९.३७ पृ. ३७४) (कुरान 9:37)।
८- ईश्वर कहता है सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते ।।-(ऋ० १०/१९१/२)
अर्थ:-हे मनुष्यो ! मिलकर चलो, परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्व विद्वान, ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं, वैसे ही तुम भी किया करो। क़ुरान का अल्लाह कहता है ”हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सख्ती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१) (कुरान 9:123)।
९- अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।-(ऋग्वेद ५/६०/५) अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा। तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।
”हे ‘ईमान’ लाने वालो (केवल एक अल्लाह को मानने वालो ) ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१) (कुरान 9:28)
१० क़ुरान का अल्लाह अज्ञानी है वे मुसलमानों का इम्तिहान लेता है तभी तो इब्रहीम से पुत्र की क़ुर्बानी माँगीं। वेद का ईश्वर सर्वज्ञ अर्थात मन की बात को भी जानता है उसे इम्तिहान लेने की अवशयकता नही।
११ अल्ला जीवों के और काफ़िरों के प्राण लेकर खुश होता है लेकिन वेद का ईश्वर मानव व जीवों पर सेवा भलाई दया करने पर खुश होता है।
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विशेष जानकारी के लिए कृपया महर्षि दयानंद कृत सत्यार्थप्रकाश का चौदहवां समुल्लास पढें ।