ओ३म्: हम प्रात: उठ प्रभु स्मरण से अपने कार्यों में लगें
डा. अशोक आर्य
मानव अपने जीवन को सदा सुखों में ही देखना पसंद करता है । वह सदा सुखी रहना चाहता है । सुखी रहने के लिए उसे अनेक प्रकार के यत्न करने होते हैं । अनेक प्रयास करने होते हैं । इन यत्नों के बिना , इन प्रयासों के बिना, इन पुरुषार्थों के बिना वह सुख का मार्ग प्राप्त नहीं कर सकता किन्तु वह यह सब पुरुषार्थ , यह सब यत्न, यह सब मेहनत नहीं करना चाहता । फिर वह सुखी कैसे हो ? अर्थात नहीं हो सकता ।
मानव आज सुख की कामना करने पर भी दुखी है , एसा क्यों ? क्योंकि आज वह दूसरे को सुखी देखना पसंद नहीं करता । आज वह दु:खों में इस लिए घिरा हुआ है क्योंकि उसे अपने पास पड़ौस में लोग सुखों के साथ जीवन बिताते हुए दिखाई देते हैं । उन का सुखी जीवन ही उसके लिए दु:ख का कारण बना हुआ है ।
वह यह नहीं देखता कि उसके पास साधन होते हुए भी वह अपने लिए कपड़े धोने की मशीन नहीं ला रहा , अपने आप को सुखी बनाने की और कदम नहीं बढ़ा रहा किन्तु अपने पड़ौसी के पास कपड़े धोने की मशीन देख कर उसे कष्ट होता है कि उसके पड़ौसी ने यह मशीन क्यों प्राप्त कर ली है? पड़ौसी ने अपने घर पर जो कुछ भी लाना है , अपनी आवश्यकता के अनुसार तथा अपने आर्थिक साधनों के अंदर रहते हुए लाना है और मैने अपने घर जो कुछ लाना है ,वह अपनी आवश्यकता और अपने आर्थिक साधनों में रहते हुए लाना है । फिर पड़ौसी के घर किसी वस्तु को आता देख कर कष्ट नहीं होना चाहिए किन्तु होता है क्योंकि मानव में दूसरे के प्रति ईष्र्या है , द्वेष है , स्पद्र्धा है। यह भावना ही उसे आगे नहीं बढऩे देती ।
मानव सुखी रहना चाहता है । हमारे धर्म ग्रंथ वेद ने सुखी रहने के लिए
अनेक उपाय बताए हैं । इन ग्रंथों के ही आधार पर हमारे ऋषियों ने, मनिषियो ने सुखी जीवन के अनेक मार्ग बताए हैं । परमपिता परमात्मा ने मानव जीवन के सुख के लिए , मानवमात्र के कल्याण के लिए चार वेद हमें दिए हैं ।
इन चार वेद में जीवन को कल्याण क़ारी बनाने के लिए , सुखी बनाने के लिए अनेक उपाय बताए हैं तथा कहा है कि हे मानव ! यदि तुझे सुख की अभिलाषा है तो वेद में बताए इस मार्ग पर चल । यजुर्वेद का प्रथम अध्याय तो पूरी तरह से सुख के लिए मानव मात्र को प्रेरणा दे रहा है । इसके प्रथम सूक्त के कुल सैंतीस मंत्र सुखों का मार्ग बता रहे हैं ।
यजुर्वेद के प्रथम अध्याय आरम्भ ही इस बात से करते हैं कि हे मानव ! यदि तू सुखी रहना चाहता है तो प्रात: शुभ महूर्त में उठ । अब प्रश्न उठता है कि यह शुभ मुहूर्त क्या होता है ? आओ पहले हम इस शब्द पर ही विचार करें ।
शुभ मुहूर्त क्या है ?
कहने को तो हम कह सकते हैं कि जब परमपिता परमात्मा ने इस स्रष्टि की रचना की और इस की पूर्ति पर जब इस धरती के लिए सूर्य की प्रथम रश्मि, प्रथम किरण इस धरती की और बढ़ी , उसे हम शुभ मुहूर्त कह सकते हैं । यदि वह किरण ही शुभ मुहूर्त है तो उस समय तो हम थे नही । इस कारण हम शुभ मुहूर्त में कैसे उठ सकते हैं ? ईसा का उतर हमारे ऋषियों ने देते हुए कहा है कि जो उस काल में सूर्य की प्रथम रश्मि इस धरती की और जिस समय बढ़ी थी , उस प्रकार ही प्रति दिन सूर्य की प्रथम रश्मि धरती की और बढ़ती है । बस इस समय को ही ब्रह्म मुहूर्त जानो । इस सब से जो बात स्पष्ट होती है वह यह है कि प्रात: काल की मंगल वेला में जब आकाश के तारे सिमटते जा रहे हों , ह्ल्का सा अंधकार आकाश में सिमटा हुआ हो किन्तु सूर्य की किरण अब तक न निकली हो एसे काल को ही शुभ मुहूर्त कहते हैं । यह समय शुद्ध वायु से भरपूर वातावरण होता है । इस समय जो लोग अपने शयन से निकल कर सैर को जाते हैं, योग,, व्यायाम, प्राणायाम करते हैं , उंहें कभी कोई रोग नहीं होता । रोग न होने से उनकी अल्पायु में मृत्यु नहीं होती , वह दीर्घ ज़ीवी होते हैं तथा सुख से संपन्न होते हैं । इस लिए ही यजुर्वेद के इस प्रथम अध्याय के प्रथम सूक्त के प्रथम मंत्र
में ही यह उपदेश किया गया है कि हम प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर भ्रमण को जावें । इस उपदेश को आगे बढ़ाते हुए कहा गया है कि यह एक धर्म का कार्य है तथा धर्म के कार्यों को कभी अस्वस्थ होने पर , कभी कष्ट में होने पर भी नहीं छोडऩा चाहिए । यह हमारी आत्मा का युक्त आहार है । इस के साथ ही साथ ईश्वर के लिए स्तुति , उसकी प्रार्थना तथा उसकी उपासना भी की जावे तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है । इसके साथ ही हमारे ऋषियों ने हमारे सुख के लिए छ: मंत्र दिए हैं तथा उपदेश किया है कि शुभ मुहूर्त में प्रात: उठते ही अपनी शैय्या पर बैठ कर प्रभु को स्मरण करते हुए इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए अपने कार्य का, अपने व्यवसाय का चिंतन करें ।