बिखरे मोती-भाग 40
वर्तमान अनुकूल कर, अपने हित में मोड़
गतांक से आगे….
सहस्र गायों के बीच में,
बछड़ा मां ढिंग जाए।
जैसा जिसका कर्म है,
उसी के पीछे आय ।। 540 ।।
आयु एक मुहूर्त की,
पुण्य तै करे निहाल।
पापी की क्या जिंदगी,
बेशक जीये सौ साल ।। 541 ।।
मुहूर्त अर्थात-48 मिनट का जीवन मिले।
बीते पर मत शोक कर,
भविष्य की चिंता छोड़।
वर्तमान अनुकूल कर,
अपने हित में मोड़ ।। 542 ।।
आने वाले दु:ख का,
जो करता पूर्व निदान।
निज सुख में वृद्घि करे,
वह नर बुद्घिमान ।। 543 ।।
दु:ख का पूर्वानुमान हो,
करे भाग्य की बात।
ऐसा व्यक्ति नष्ट हो,
अपने छोड़ें साथ ।। 544 ।।
धर्म रहित जिंदा रहे,
तो भी मरे समान।
धर्मशील मृत्यु बाद भी,
पाता है सम्मान ।। 545 ।।
यश को बढ़ता देख कै,
मन ही मन जले नीच।
आप न ऊंचा उठ सका,
निंदा की फेंके कीच।। 546 ।।
विचार के कारण बंध है,
विचार के कारण मोक्ष।
विचार से सांई प्रत्यक्ष है,
विचार में सांई परोक्ष ।। 547।।
मैं अलग मेरा अलग,
जिस क्षण हो यह मान।
देहाभिमान जब नष्ट हो,
लगै हरि में ध्यान ।। 548 ।।
सब इच्छा सबकी कभी,
पूर्ण न होने पाय।
प्रारब्ध की भी भूमिका,
बीच में टांग अड़ाय।। 549 ।।
सोच समझकर कर्म कर,
कर्म बड़ा प्रधान।
कर्म तराजू तोलकर,
फल देते भगवान ।। 550 ।।
बंधन दुख दरिद्रता,
और शरीर में रोग।
परिचायक ये पाप के,
बिगड़ा है कहीं योग ।। 551 ।।
क्रमश: