जब संसार की रसोइयों पर छा जाएंगे संकट के बादल

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चंद्रभूषण

कृषि उपजों के ग्लोबल बाजार में ऐसे दृश्य कम दिखाई देते हैं। ब्लूमबर्ग के बोर्ड पर चार खेतिहर चीजों की कीमतें हमेशा नजर आती हैं। मक्का, गेहूं, सोयाबीन और कोको (चॉकलेट की मूल वनस्पति)। इन चारों की मार्च की वायदा कीमतें पिछले कई दिनों से हर रोज पिछले दिन की तुलना में चढ़ी दिख रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से खाद्य पदार्थों की कीमतों की जो ग्लोबल माप रखी जाती है, उसमें मई 2020 से इस साल की शुरुआत तक 18 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक खाद्य सामग्री में महंगाई का यह रुझान 2021 में पूरे साल जारी रह सकता है। जाहिर है, कोविड महामारी के चलते लोगों की बेरोजगारी और घटी आमदनी को देखते हुए दुनिया के अमन-चैन के लिए यह कोई अच्छा लक्षण नहीं है।
एमएसपी पर सवाल
आज जब बाजार के लिए उत्पादन करने वाले भारत भर के किसान नए कृषि कानूनों को अपने लिए फांसी का फंदा बताते हुए भयानक ठंड में दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले पड़े हैं, तब खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से एक नजर पूरी दुनिया पर डालना बनता है। हाल में वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने यहां जारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था को आधी सदी पुरानी, खाद्य संकट वाले दौर की चीज बताते हुए कहा था कि अभी न सिर्फ कई कृषि उत्पादों के लिए बाजार मूल्य से ज्यादा एमएसपी निर्धारित होता है बल्कि ज्यादातर मामलों में यह उनकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों से अधिक होता है। इस प्रस्थापना पर ठोस बात तथ्यों की रोशनी में ही की जा सकती है, पर इतना तय है कि कृषि उपजों की सरकारी खरीद से भारत में एक निश्चित मात्रा में इनका उत्पादन सुनिश्चित रहता है और कई देशों में हाल तक होने वाले ‘फूड रॉयट्स’ जैसे प्रकरण अपने यहां नहीं सुनाई देते।

2008 और 2011 में आए ग्लोबल खाद्य संकट के दौरान कुछ खाड़ी देशों और कई अफ्रीकी देशों में खाद्य पदार्थों की कमी से हुई उथल-पुथल वहां जिस बदअमली की वजह बनी, उसका हल आज तक नहीं निकल पाया है। वैसी कोई नौबत आज दुनिया के सामने नहीं है क्योंकि तब की तरह खाद्य संकट के समानांतर कोई ईंधन संकट अभी अजेंडा पर नहीं है। लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण जैसी बेरोजगारी और समाज के बड़े हिस्से की आमदनी में गिरावट आज देखी जा रही है, उसमें 2011 से काफी छोटा खाद्य संकट भी लोगों में भारी बेचैनी पैदा कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र की कोशिश दुनिया को इसी खतरे से आगाह करने की है। अभी वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों के महंगे होने की वजह क्या है, इस बारे में हम बिंदुवार बात करते हैं।
कुछ चीजों की कीमतें प्रवासी मजदूरों की संख्या कोविड के चलते अचानक घट जाने के कारण बढ़ी हैं। इनमें सबसे ऊपर है मलयेशिया का पाम ऑयल, जिसका असर सारे तेल अचानक महंगे हो जाने की शक्ल में आपको अपने किचन में दिख रहा है। मई से अब तक इसकी ग्लोबल कीमत दस फीसदी ही बढ़ी है, लेकिन इसके बल पर फर्जी धंधा करने वालों ने अपनी चिप्पी वाले तेल मनमाने ढंग से महंगे कर दिए हैं। दिलचस्प बात यह कि पाम ऑयल का इस्तेमाल जनरल स्टोर्स पर बिकने वाले आधे सामानों में होता है। आपको शायद ही पता हो कि पिछले कुछ महीनों में ये सभी या तो महंगे हो गए हैं या पुरानी कीमत पर ही वजन घटाकर बेचे जा रहे हैं। हाल में कोविड के मामले बढ़ जाने से मलयेशिया सरकार ने पाम की चुनाई और पेराई, दोनों के दिनों और घंटों में नई कटौती के आदेश पारित किए हैं, जिसका असर आने वाले दिनों में नजर आएगा।
मक्का, सोयाबीन और ज्वार महंगा होने की वजह दोहरी है। इनकी मांग और आपूर्ति, दोनों में दबाव देखा जा रहा है। चीन में ये तीनों चीजें सबसे ज्यादा सुअरों को खिलाई जाती हैं, जो वहां मुख्य भोजन ‘स्टेपल डाइट’ माने जाते हैं। हाल तक चीनी अपने लिए ज्यादातर सुअर का मांस अमेरिका से मंगाते थे। बीमारी और ट्रेड वॉर के चलते इसमें कमी आई तो उन्होंने अपने सुअर पालन का पैमाना बढ़ा दिया। पिछले साल दक्षिणी चीन में खाद्य संकट की खबरें भी आई थीं। इसके दोहराव से बचने और दुनिया में अलग-थलग पड़ने का खतरा बढ़ने के कारण वे अभी ये तीनों कृषि उत्पाद खरीदने में जुट गए हैं। लेकिन इनकी खेती सबसे ज्यादा दक्षिणी अमेरिका और अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में होती है, जो पूरा इलाका अभी सूखे का सामना कर रहा है। अर्जेंटीना ने खतरा भांपकर सोयाबीन के सारे एक्सपोर्ट लाइसेंस कैंसिल कर दिए हैं, जिसके विरोध में वहां के किसानों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का नोटिस दिया है।
ऐसे सरकारी हस्तक्षेप ग्लोबल कमोडिटी मार्केट में तेजी की तीसरी वजह बन रहे हैं। जिस गेहूं की धुरी पर आजकल दुनिया की सारी रसोइयां घूमती हैं, उसका सबसे बड़ा निर्यातक रूस फरवरी से गेहूं, जौ और मक्के के निर्यात पर रोक लगाने वाला है। इसकी सीधी वजह इन चीजों की बढ़ी कीमतों का फायदा उठाना और खुद को खाद्य संकट से सुरक्षित करना है। रूस की मुख्य निर्यात सामग्री एक अर्से से कच्चा तेल ही बना हुआ है, जो कोविड के शुरुआती महीनों में पाताल छूने लगा था। अमेरिकी शेल ऑयल की बहुतायत से इसमें आगे भी किसी तीखी चढ़ाई की उम्मीद नहीं है। समृद्धि का कोई नया जरिया अपने सामने न देखकर पूतिन अनाज को ही हथियार बनाने में जुट गए हैं।
पाकिस्तान की मुश्किल
दक्षिण एशिया की कुछ सबसे उपजाऊ जमीनों का मालिक हमारा पड़ोसी पाकिस्तान कृषि उत्पादन से जुड़ी बदइंतजामियों के चलते आज खाद्य पदार्थों की असाधारण महंगाई का सामना कर रहा है। इमरान का मुकाबला जिन 11 पार्टियों के गठबंधन से है, वे हाल तक अस्तित्व के संकट से गुजर रही थीं। लेकिन महंगी रोटी ने उन्हें इतनी ताकत बख्श दी कि पूर्व क्रिकेटर की बोलती बंद है। अनाज, दलहन और तिलहन की ग्लोबल महंगाई आने वाले दिनों में सभी उभरते देशों के गरीब तबकों पर बहुत भारी पड़ने वाली है। ऐसे में मोदी सरकार की पहली चिंता किसानों को अधिकतम उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने और कृषि उपजों को सुरक्षित रखने के लिए अच्छे सरकारी गोदाम बनवाने की होनी चाहिए। इसके उलट खेती को खुले बाजार के हवाले करने की नीति भारत को उसी संकट में वापस लौटा सकती है, जो अब किसी को याद भी नहीं आता।

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