गोहत्या बन्दी का आश्वासन देने वाले को ही संसद भेजें
शिवकुमार गोयल
इस माह अप्रैल में पूरे देश में लोकसभा के चुनाव संपन्न होंगे। मतदान के माध्यम से ही हम राष्ट्रभक्त कत्र्तव्यशील तथा बेदाग प्रतिनिधियों के हाथों केन्द्र की बागडोर सौंप सकते हैं।
विगत दो दशकों से केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार रही है। इस सरकार ने भ्रष्टाचार, अनाचार तथा अन्य सभी बुराईयों के रिकार्ड तोड़े हैं। वह किसी से छिपा नही है। अपने को गांधी जी का अनुयाई बनाने वाली कांग्रेस की इस सरकार ने गोमांस के निर्यात में भारी वृद्घि करके तथा देश भर में नये नये हजारों यांत्रिक बूचड़खाने खुलवाकर गो विरोधी होने का प्रमाण दिया है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में सपा सरकार की स्थापना के बाद मांस माफिया गिरोहों को तो गोवंश के संहार का मानो सर्टिफिकेट ही मिल गया है। पश्चिमी पूर्वी उत्तर प्रदेश में नये नये मीट प्लांट स्थापित कराकर, गोमांस व्यापारियों को तरह तरह की छूट देकर गोवंश के संहार के तमाम रिकार्ड तोड़ डाले गये हैं।
इस विषम परिस्थिति को देखते हुए गोभक्त मतदाताओं का परम कत्र्तव्य है कि वोट मांगने आने वाले प्रत्याशियों से यह आश्वासन मांगे कि वे गोहत्या बंदी के लिए बिल लाये जाने पर उसका समर्थन करेंगे तथा गोमांस के निर्यात पर रोक लगवाने का भरसक प्रयास करेंगे।
सभी धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि गोवंश की हत्या के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का देर सवेर विनाश अवश्य होगा।
धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज ने ब्रह्मलीन होने से दशकों पूर्व ही भविष्यवाणी की थी कि वर्तमान समय में 7 नवंबर 1966 को दिल्ली में संसद भवन के समक्ष गोभक्तों का गोलियों से संहार कराने वालों, गोवंश की हत्या जारी रखने वालों का एक दिन वंश बुरी तरह नष्ट होगा। गोमाता का संहार करने वालों का देवी शक्ति कभी भी क्षमा नही करेगी।
एक बार संस में श्री सेठ गोविन्द दास जी तथा अन्य सदस्यों ने गोहत्या बंदी प्रस्ताव पेश किया था। उस समय नेहरू जी ने धमकी दी थी कि यदि गोहत्या बंदी बिल पास किया गया तो मैं त्यागपत्र दे दूंगा। इससे यह सिद्घ होता है कि कांग्रेस तथा नेहरू जी ही गोवंश के विनाश के अपराधी हैं। परम गोभक्त लाला हरदेवसहाय जी के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद जी से व्यक्तिगत संबंध थे। लालाजी समय समय पर राजेन्द्र बाबू से मिलकर गोहत्याबंदी की मांग किया करते थे। उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि आप जैसे परम गोभक्त, राष्ट्रभक्त को गोरक्षा के प्रश्न पर त्याग पत्र देकर सिद्घांत निष्ठा का परिचय देना चाहिए। जब राजेन्द्र बाबू इस त्याग के लिए तैयार नही हुए तो लाला जी का उनसे मोह भंग हो गया था। आज लगता है कि कंाग्रेस के गोहत्या के पाप का घड़ा लबालब भर चुका है। कांग्रेस अब अंतिम श्वासं ले रही है। इस चुनाव में उसके अस्तित्व के लिए खतरा पैदा होता दिखाई दे रहा है।
घोर कलिकाल का समय है। गंगा तथा गोमता दोनों घोर संकट में हैं। हिंदुत्व के सभी मान बिंदुओं को चारों ओर से चुनौतियां दी जा रही हैं। कोई ऐसा विकल्प नही दिखाई देता तो इनकी रक्षा के लिए सन्नघ हो। अत: ऐसी विषम परिस्थिति में हम सबका पुनीत कत्र्तव्य है कि कम से कम इस स्थिति के लिए जिम्मेदार दलों को चुनाव में वोट न देकर अपना कत्र्तव्य पालन तो करें।