आतंकवाद फतवा – फसाद की मानसिकता और वैक्सीन विवाद उगता भारत ब्यूरो 29/12/2020 सज्जाद हैदर पूरे विश्व में एक भारी संकट है जिसे कोरोना अथवा कोविड 19 के नाम से जाना जाता है। जिससे पूरा विश्व त्रस्त है। दुनिया के सभी देश इस प्राण घातक बीमारी से बाहर निकलने के लिए पूरी तरह से संघर्ष कर रहे हैं। पूरे विश्व की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चरमरा कर बैठ चुकी है। इस घातक बीमारी का उपचार बड़े पैमाने पर खोजा जा रहा है जिससे कि किसी भी प्रकार से इस महामारी से छुटकारा मिल सके। इस कोरोना नामक बीमारी से निपटने के लिए तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। दुनिया के तमाम छोटे तथा बड़े देश अपनी वैज्ञानिकी क्षमता के आधार पर अनेकों प्रकार के शोध कर रहे हैं। जिससे कि इस प्राण घातक बीमारी से संसार को बचाया जा सके। दुर्भाग्य यह है कि वैक्सीन के साथ एक बड़ा विवाद भी आ धमका। वैक्सीन अभी पूरी तरह से मार्केट में अपने पैर भी नहीं पसार पाई थी कि उससे पहले विवाद ने अपनी दस्तक दे दी। इसका मुख्य कारण है सुअर की चर्बी का वैक्सीन में प्रयोग होना। क्योंकि किसी भी दवा को बनाने से पहले उसके सुरक्षित रखने के लिए मुख्य रूप से कार्य किया जाता है। क्योंकि जब कोई भी वैक्सीन बनाई जाती है तो उसके स्टोरेज और ट्रांस्पोर्टेशन का ध्यान मुख्य रूप से रखा जाता है अन्यथा वैक्सीन के खराब होने की पूरी तरह से संभावना प्रबल रूप से होती है। इसके लिए वैक्सीन में जेलेटिन का प्रयोग किया जाता है। जेलेटिन के बारे में बात करें तो जेलेटिन पशुओं की चर्बी से बनाया जाता है जोकि वैज्ञानिकी तकनीकी के द्वारा तैयार किया जाता है। जिसकी मुख्य भूमिका यह होती है कि किसी भी वैक्सीन को सुरक्षित रूप से एक तय सीमा तक रखा जाना। जेलेटिन का मात्र कार्य यही होता है कि वह वैक्सीन सुरक्षित रखने में सहयोग करे। सुरक्षा की दृष्टि से जेलेटिन का कार्य वैक्सीन अहम होता है। टीकों में पोर्क जलेटिन का इस्तेतमाल कोई नयी बात नहीं है। वैक्सीलन और पोर्क जलेटिन को लेकर विवाद की शुरुआत हुई थी इंडोनेशिया से। इंडोनेशिया के मुस्लिम समुदाय के बीच यह बात तेजी के साथ फैली कि वैक्सींन में सुअर का मांस इस्तेीमाल हुआ है जिसके कारण यह धार्मिक रूप से अवैध है। इसलिए यह हराम है। धीरे-धीरे दुनिया की बड़ी मुस्लिम आबादी के बीच इस विषय पर जोरदार चर्चा शुरू हो गई। उसके बाद इंडोनेशिया में उलेमा काउंसिल ने चेचक और रुबेला के टीकों में जलेटिन की मौजूदगी होने के कारण हराम करार दिया जिसमें चेचक जैसी प्राण घातक बीमारी से लड़ने के लिए इंडोनेशिया को काफी संघर्ष करना पड़ा जिसका परिणाम यह हुआ कि चेचक जैसी बड़ी बीमारी की चपेट में इडोनेशिया की बड़ी आबादी आ गई जिसमें अधिक संख्या में अबोध एवं मासूम बच्चे प्राण घातक बीमारी से ग्रस्त हो गए। जिसमें मासूम बगुनाहों को बिना किसी पाप के सजा भुगतनी पड़ी और अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। जिसमें भारी संख्या में मासूम बच्चों की मृत्यु हो गई। इस बड़े पाप का मुख्य आधार फतवा ब्रिगेड था जोकि अपना वर्चस्व दिखाने के लिए इस्लाम की आड़ में बेगुनाहों का हत्यारा बन गया। लेकिन खास बात यह है जहाँ अंधकार होता है वहीं आसपास कुछ दूरी पर कोई दीपक भी होता है जोकि टिमटिमाता हुआ होता है। जिसे बाद में भारी समर्थन मिलता है और वह दीपक एक व्यापक रूप धारण करके बड़े एवं विशाल अंधेरे को समाप्त करके उजाले में परिवर्तित कर देता है। ठीक ऐसा ही हुआ इंडोनेशिया में जब बड़े-बड़े मुल्लों ने कड़ा फतवा लागू कर दिया कि चेचक और रुबेला के टीके नहीं लगवाए जा सकते क्योंकि इसमें पोर्क जेलेटिन की मौजूदगी है। भारी संख्या में मौत होने पर परिणाम यह हुआ इंडोनेशिया की मुसलमान आबादी दो धड़ों में बंट गयी। इसका मुख्य कारण यह था कोई भी माता-पिता कभी भी अपनी नजरों के सामने अपने बच्चों को मरते हुए नहीं देख सकता। बस फिर क्या था इंडोनेशिया के अंदर फतवा ब्रिगेड को भारी रोष का सामना करना पड़ा। जिसमें सकारात्मक ग्रुप खुलकर सामने आ गया जिसने टीका लगवाने को वक्त की सख्त जरूरत करार दिया और सभी मुसलमानों से अपील करनी शुरू कर दी आप लोग गलत फतवों की सीमा रेखा से बाहर आएं और अपने बच्चों को चेचक तथा रूबेला का टीका लगवाएं। क्योंकि ऐसा करना वक्त ही जरूरत है जोकि बहुत ही जरूरी है। क्योंकि प्राण अनमोल है। जिसका इंडोनेशिया की जनता ने दिल खोलकर समर्थन किया। और टीके लगवाने के पक्ष में उठकर खड़े हो गए। फिर क्या था फतवा ब्रिगेड ने जब देश का बदलता हुआ माहौल देखा और खिसकती हुई जमीन का आभास किया तो फतवा ब्रिगेड ने भी अपने सुर बदल लिए और उसके बाद फतवा काउंसिल ने टीका लगवाने की छूट दे दी। लेकिन इस विवाद से इंड़ोनेशिया की जनता को भारी क्षति हुई क्योंकि समय से टीका लगने में देर हुई जिससे बहुत लोग वंचित रह गए। यूके की नैशनल हेल्थर सर्विस के मुताबिक अलग स्टे बलाइजर संग वैक्सीान डिवेलप करने में फिर से सालों लग सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि वैक्सीटन बन ही ना पाए। कुछ कंपनियां सुअर के मांस के बिना टीका विकसित करने पर कई साल तक काम कर चुकी हैं। स्विटजरलैंड की दवा कंपनी नोवर्टिस ने सुअर का मांस इस्तेमाल किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था जबकि मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा एक भारी खोज में लगी हुई है जिसका प्रयास यह है कि जेलेटिन से बाहर निकलकर दवा के क्षेत्र में कार्य किया जाए। जिससे कि इस प्रकार का विवाद न हो। क्योंकि चेचक और रूबेला के टीके में जिस प्रकार का विवाद हुआ था उससे भारी सीख मिली। कुछ कंपनियाँ इस क्षेत्र में बहुत अधिक संघर्ष कर रही हैं जिसकी खोज काफी समय से हो रही है जिस पर कंपनियों के द्वारा परीक्षण कार्य भी लंबे समय से चल रहा। वैज्ञानिकों का दावा है कि हम इस क्षेत्र में काफी हद तक आगे बढ़े चुके हैं बस और कुछ समय की बात है कि हम दुनिया से जेलेटिन नामक विवाद को सदैव के लिए समाप्त कर देगें। जोकि भविष्य में अपने आपमें बड़ी कामयाबी होगी। खास बात यह है कि इस पोर्क जेलेटिन विवाद में मात्र मुसलमान धर्म ही नहीं अपितु यहूदी धर्म भी शामिल है। यहूदियों की धर्मिक ग्रंथ तौरेत जिसे टोरा कहा जाता है। यह एक पवित्र ग्रंथ है। जिसके आधार पर यहूदियों के द्वारा अपने धर्म का पालन किया जाता है। टोरा अथवा तौरेत यहूदियों के धर्म की मुख्य ग्रंथ है जिसमें यहूदी धर्म के अनुयायियों के लिए सभी सिद्धांत लिखे हुए हैं। जहाँ तक माँस के खाने एवं इस्तेमान की बात है तो टोरा में साफ-साफ लिखा हुआ है कि सुअर के मांस एक अशुद्ध माँस है जिसका किसी भी प्रकार से उपयोग नहीं किया जा सकता। तौरेत अथवा टोरा में साफ निर्देश दिए गए हैं कि सभी यहूदी सुअर अथवा सुअर का माँस प्रयोग करने से पूरी तरह से दूर रहें। जिसका यहूदी समुदाय धार्मिक आधार पर कड़ाई के साथ पालन करता है। बता दें कि यहूदी धर्म के अनुयायियों का विश्व में एक मात्र देश है जिसे इजराईल के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है मुसलमान धर्म की पवित्र धार्मिक ग्रंथ कुरआन शरीफ तथा इजराईल धर्म की पवित्र ग्रंथ टोरा में कई एक धार्मिक समानताएं हैं। दोनों धर्मों की धार्मिक ग्रंथ में लिखे हुए धार्मिक निर्देश एक दूसरे के धर्म से काफी हद तक मेल खाते हैं। इजराइल के संगठन जोहर के अध्यक्ष रब्बी डेविड स्टेव ने कहा यहूदी कानूनों के अनुसार सुअर का मांस खाना या इसका इस्तेमाल करना पूरी तरह से अवैध है जिस पर धार्मिक आधार पर सख्त प्रतिबंध है। लेकिन अगर कोरोना के उपचार में इस वैक्सीन के बिना काम नहीं चल रहा अथवा इस वैक्सीन का बाजार में कोई विकल्प नहीं है तो इंसानों की जान बचाना जरूरी है इसलिए इस पोर्क जेलेटिन युक्त इंजेक्शन का प्रयोग प्राण बचाने के लिए किया जा सकता है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि यह मात्र इंजेक्शन है जिसे लगवाया जा सकता है। लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं कि पोर्क के माँस को खाया जाए। अर्थात पोर्क युक्ति इंजेक्शन के प्रयोग पर इजराईल ने अपने यहूदी समुदाय को छूट प्रदान कर दी जबकि सुअर का माँस खाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध होने की बात कही। खास करके कथित मुस्लिम फतवा ब्रिगेड को यह सोचना चाहिए कि मात्र फतवा लगाने से काम नहीं चलेगा किसी भी समस्या का निदान किया जाना जरूरी होता है। अगर फतवा ब्रिगेड को इस वैक्सीन से समस्या थी जिससे की धर्म खतरे में आ जाएगा तो फतवा ब्रिगेड अबतक सोता क्यों रहा…? क्या यह सवाल नहीं उठेगें कि फतवा ब्रिगेड को मात्र फतवा ही देना है अथवा कुछ कार्य भी करना है जिसमें अपने अनुयायियों को विकल्प देते हुए बचाया जा सके। क्या फतवा ब्रिगेड की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वह अपने धर्म के अनुयायियों को विकल्प प्रदान करे…? क्या फतवा ब्रिगेड को वैक्सीन के निर्माण एवं शोध क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए…? फतवा ब्रिगेड जब अपने धर्म के अनुयायियों से इतना प्यार करता है कि वह गलत रास्ते पर न चले जाएं। इसलिए फतवा ब्रिगेड अपने अनुयायियों को कथित गलत रास्ते पर जाने से रोकता है। तो क्या फतवा ब्रिगेड क्या चाहता है…? क्या यह सभी सवाल गलत हैं…? क्या यह जो प्रश्न खड़े हो रहे हैं वह तर्क संगत नहीं हैं…? फतवा ब्रिगेड ने अपने अनुयायियों के प्राण को बचाने के लिए क्या विकल्प दिया। अगर धर्म विषेश के अनुयायी इस वैक्सीन का प्रयोग नहीं करते तो फतवा ब्रिगेड उन्हें कौन सी वैक्सीन दे रहा है…? क्योंकि फतवा ब्रिगेड को यह तो बताना चाहिए कि वह अपने अनुयायियों के प्राणों की रक्षा किस वैक्सीन के द्वारा करेगा…? क्या यह सत्य नहीं कि फतवा ब्रिगेड अपने अनुयायियों को समुद्र के बीच गहरे पानी एवं दलदल में धकेल रहा है। क्योंकि कोरोना नामक दलदल से बाहर निकलने का मात्र एक ही रास्ता है वह है वैक्सीन। और उस वैक्सीन रूपी मार्ग पर फतवा का बेरियर लगाकर बाहर निकलने से रोक दिया गया तो क्या यह सवाल नहीं खड़े होगे कि दूसरा रास्ता क्या है। क्योंकि गहरे दलदल से अगर बाहर नहीं निकालेगें तो डूबकर सभी मर जाएंगे। जिसके लिए दूसरा मार्ग तो होना चाहिए। जबकि सत्य यह है कि अबतक इस बीमारी से निपटने के लिए कोई दूसरी वैक्सीन नहीं है जोकि इस दलदल से बाहर निकाल सके। तो अब सभी अनुयायियों को एक बार सोचना पड़ेगा कि यह फतवा ब्रिगेड क्या कर रही है। अतः फतवा ब्रिगेड की योजना पर भी सभी को सोचना पड़ेगा। इस महामारी के दौर में सभी अनुयायियों का अब बड़ी ही गंभीरता के साथ सोचने की आवश्यकता है। क्योंकि समय रहते हुए सदैव के लिए सचेत होना जरूरी है। क्योंकि आपका भविष्य खुद आपके अपने हाथों में है। अतः पिछलग्गू बनने का समय निकल चुका। अब पिछलग्गू बनने से बाहर निकलने की जरूरत है। जबकि फतवा देने अच्छा यह होता कि वैक्सीन पर कार्य किया जाता। क्योंकि फतवा देने और बड़ी-बड़ी बातों से किसी समस्या का हल नहीं है। इन फतवा बाजों को वैक्सीन बनाने के क्षेत्र में आगे बढ़कर हिस्सा लेने चाहिए था। जिससे की समाज में एक बड़ा संदेश जाता साथ ही एक नया अनुसंधान खड़ा हो जाता जिससे कि प्रेरणा लेकर कौम के नौजवान आगे बढ़ते। किसी के द्वारा किए हुए कार्यों में त्रुटियाँ निकालने से अच्छा होता कि चार कदम आगे बढ़कर जेलेटिन मुक्ति वैक्सीन बनाकर सफल परिणाम सहित पटल पर रखकर मजबूती के साथ प्रस्तुत किया जाता। उगता भारत ब्यूरोWhatsAppTweet Related Post Navigation Previous कोरोना वैक्सीन में सूअर का मांस होने की चर्चा चली जोरों परNext किसान आंदोलन को लेकर कांग्रेसी सांसद ने दी धमकी: 1 जनवरी से लगाएंगे लाशों के ढेर Related Posts आतंकवाद मुद्दा समाज विश्व शान्ति हेतु इस्लामिक दर्शन में संशोधन आवश्यक विनोद कुमार सर्वोदय 08/12/2024 आतंकवाद जिहादी कठमुल्ले भारत के सभ्य समाज को भयभीत और प्रताड़ित करना चाहते हैं उगता भारत ब्यूरो 26/11/2024 आतंकवाद जामिया मिलिया इस्लामिया इस्लामी कन्वर्जन की सच होती बातें,शिकायत करने वाली ऋचा को न्याय का इंतजार विनोद कुमार सर्वोदय 24/11/2024 Comment:Cancel reply