जलवायु परिवर्तन का पृथ्वी पर अति-गम्भीर प्रभाव एवं भारत के प्रयास

FE0C02C4-9A09-4D2A-B6BA-E4D671E9F11A

कई अनुसंधान प्रतिवेदनों के माध्यम से अब यह सिद्ध किया जा चुका है कि वर्तमान में अनियमित हो रहे मानसून के पीछे जलवायु परिवर्तन का योगदान हो सकता है। कुछ ही घंटों में पूरे महीने की सीमा से भी अधिक बारिश का होना, शहरों में बाढ़ की स्थिति निर्मित होना, शहरों में भूकम्प के झटके एवं साथ में सुनामी का आना, आदि प्राकृतिक आपदाओं जैसी घटनाओं के बार-बार घटित होने के पीछे भी जलवायु परिवर्तन एक मुख्य कारण हो सकता है। एक अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार, यदि वातावरण में 4 डिग्री सेल्सियस से तापमान बढ़ जाय तो भारत के तटीय किनारों के आसपास रह रहे लगभग 5.5 करोड़ लोगों के घर समुद्र में समा जाएंगे। साथ ही, चीन के शांघाई, शांटोयु, भारत के कोलकाता, मुंबई, वियतनाम के हनोई एवं बांग्लादेश के खुलना शहरों की इतनी ज़मीन समुद्र में समा जाएगी कि इन शहरों की आधी आबादी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। वेनिस एवं पीसा की मीनार सहित यूनेस्को विश्व विरासत के दर्जनों स्थलों पर समुद्र के बढ़ते स्तर का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, पिछले 20 वर्षों के दौरान जलवायु सम्बंधी आपदाओं के कारण भारत को 7,950 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ है। जलवायु सम्बंधी आपदाओं के चलते वर्ष 1998-2017 के दौरान, पूरे विश्व में 290,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ है। सबसे ज़्यादा नुक़सान अमेरिका, चीन, जापान, भारत जैसे देशों को हुआ है। बाढ़ एवं समुद्री तूफ़ान, बार बार घटित होने वाली दो मुख्य आपदाएं पाईं गईं हैं। उक्त अवधि के दौरान, उक्त आपदाओं के कारण 13 लाख लोगों ने अपनी जान गवाईं।

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि प्रतिवर्ष विश्व में 1.20 करोड़ हेक्टेयर कृषि उपजाऊ भूमि ग़ैर-उपजाऊ भूमि में परिवर्तित हो जाती है। दुनियां में 400 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन डिग्रेड हो चुकी है। एशिया एवं अफ़्रीका की लगभग 40 प्रतिशत आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है, जहां मरुस्थलीकरण का ख़तरा लगातार बना हुआ है। इनमें से अधिकतर लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि एवं पशु-पालन जैसे व्यवसाय पर निर्भर हैं। भारत की ज़मीन का एक तिहाई हिस्सा, अर्थात 9.7 करोड़ से 10 करोड़ हेक्टेयर के बीच ज़मीन डिग्रेडेड है। ज़मीन के डिग्रेड होने से ज़मीन की जैविक एवं आर्थिक उत्पादकता कम होने लगती है। दूसरा, पैदावार की लाभप्रदता एवं किसान की आय पर भी असर होता है। तीसरा, छोटे एवं सीमांत किसान जिनके पास बहुत ही कम ज़मीन है उनकी तो रोज़ी रोटी पर ही संकट आ जाता है। रोज़गार के अवसर कम होते जाते हैं एवं लोग गावों से शहरों की ओर पलायन करने लगते है। ज़मीन के डेग्रडेशन की वजह से देश को 4600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान प्रतिवर्ष हो रहा है।

सिंगल यूज़ प्लास्टिक अपनी रासायनिक संरचना के कारण, आसानी से नष्ट नहीं होता है एवं इसे आसानी से रीसायकल भी नहीं किया जा सकता है। यह ज़मीन में सैकड़ों वर्षों तक बना रहता है और कभी नष्ट नहीं होता, इससे ज़मीन बंजर हो जाती है। प्लास्टिक थैले, कटलरी, पानी की बोतल, ग्लास-कप, स्ट्रॉ, सेशे-पाउच और थरमाकाल से बनी कटलरी, इस श्रेणी में गिनी जाती है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक डम्प साइट पर बायोडीग्रेडेबल वेस्ट से मिलकर मीथेन गैस बनाता है। यही पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। मीथेन गैस कार्बन डायआक्सायड की तुलना में 30 गुना अधिक ख़तरनाक है। जलवायु परिवर्तन के लिए भी यही गैस ख़ास तौर से ज़िम्मेदार मानी जाती है। हर साल प्रत्येक भारतीय औसतन 11 किलो सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है। प्लास्टिक उत्पादन में भारत का दुनिया में 5वां स्थान है। हर साल देश में 56 लाख टन कचरे का उत्पादन होता है, जिसमें से सिंगल यूज़ प्लास्टिक का कचरा 25 हज़ार टन का निकलता है। दुनिया में प्लास्टिक का उत्पादन 300 करोड़ टन के पार हो चुका है। प्लास्टिक जल कर हवा में कार्बन डाय आक्सायड को बढ़ाता है। प्लास्टिक में मौजूद कसनोजेनिक केमिकल से कैन्सर होने की आशंका रहती है।

उक्त वर्णित आंकड़ों से स्थिति की भयावहता का पता चलता है। अतः यदि हम अभी भी नहीं चेते तो आगे आने वाले कुछ समय में इस पृथ्वी का विनाश निश्चित है।

जलवायु परिवर्तन में सुधार हेतु भारत सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास
जलवायु परिवर्तन में सुधार हेतु भारत तेज़ी से सौर ऊर्जा एवं वायु ऊर्जा की क्षमता विकसित कर रहा है। उज्जवला योजना एवं एलईडी बल्ब योजना के माध्यम से तो भारत पूरे विश्व को ऊर्जा की दक्षता का पाठ सिखा रहा है। ई-मोबिलिटी के माध्यम से वाहन उद्योग को गैस मुक्त बनाया जा रहा है। बायो इंधन के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, पेट्रोल एवं डीज़ल में ईथनाल को मिलाया जा रहा है। 15 करोड़ से अधिक परिवारों को कुकिंग गैस उपलब्ध करा दी गई है। भारत द्वारा प्रारम्भ किए गए अंतरराष्ट्रीय सौर अलायंस के 80 से अधिक देश सदस्य बन चुके हैं। वैश्विक तापमान के प्रभाव को कुछ हद्द तक कम करने के उद्देश्य से भारत ने पहिले तय किया था कि देश में 175 GW नवीकरण ऊर्जा की स्थापना की जायगी। इस लक्ष्य को हासिल करने की ओर भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। अब भारत ने अपने लिए देश में नवीकरण ऊर्जा की स्थापना के लिए एक नया लक्ष्य, अर्थात 450 GW निर्धारित किया है।

देश में बढ़ते मरुस्थलीकरण को रोकने के उद्देश्य से, भारत ने वर्ष 2030 तक 2.10 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लक्ष्य को बढ़ाकर 2.60 करोड़ हेक्टेयर कर दिया है। साथ ही, भारत ने मरुस्थलीकरण को बढ़ने से रोकने के लिए वर्ष 2015 एवं 2017 के बीच देश में पेड़ एवं जंगल के दायरे में 8 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी की है। केंद्र सरकार की एक बहुत ही अच्छी पहल पर अभी तक 27 करोड़ से अधिक मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड किसानों को जारी किए जा चुके हैं। इसमें मिट्टी की जांच में पता लगाया जाता है कि किस पोशक तत्व की ज़रूरत है एवं उसी हिसाब से खाद का उपयोग किसान द्वारा किया जाता है। पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग करने से न केवल ज़मीन की उत्पादकता बढ़ती है ब्लिंक उर्वरकों का उपयोग भी कम होता है।

शहरों का विकास व्यवस्थित रूप से करने के उद्देश्य से देश में अब मकानों का लंबवत निर्माण किये जाने पर बल दिया जा रहा है, ताकि हरियाली के क्षेत्र को बढ़ाया जा सके। स्मार्ट शहर विकसित किए जा रहे हैं। शहरों में यातायात के दबाव को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न मार्गों के बाई-पास बनाए जा रहे हैं। क्षेत्रीय द्रुत-गति के रेल्वे यातायात की व्यवस्था की जा रही है, ताकि महानगरों पर जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सके। इस रेल्वे ट्रैक के आस पास समावेशी एवं मिश्रित रूप से विकसित शहरों का विकास किया जा रहा है, ताकि इन शहरों में रहने वाले नागरिकों को इनके घरों के आस-पास ही सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हो सकें। देश के विभिन्न महानगरों में मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा चुका है एवं कई महानगरों में विस्तार का काम बढ़ी तेज़ी से चल रहा है। देश में 100 स्मार्ट नगर बनाए जा रहे हैं। इन शहरों में नागरिकों के लिए पैदल चलने एवं सायकिल चलाने हेतु अलग मार्ग की व्यवस्थाएं की जा रही हैं एवं इन नागरिकों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के अधिक से अधिक उपयोग हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।

2 अक्टोबर 2019 से देश में प्लास्टिक छोड़ो अभियान की शुरुआत हो चुकी है, ताकि वर्ष 2022 तक देश सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्त हो जाय। जो सिंगल यूज़ प्लास्टिक रीसायकल नहीं किया जा सकता उसका इस्तेमाल सिमेंट और सड़क बनाने के काम में किया जा सकता है। जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कर दी गई है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज़ पर जन भागीदारी के साथ चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी का प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जा रहा है।

सुझाव
देश में हर मकान के लिए वर्षा के जल का संग्रहण आवश्यक कर देना चाहिए, ताकि पृथ्वी के जल को रीचार्ज किया जा सके। हर घर में नवीकरण ऊर्जा का उपयोग आवश्यक कर देना चाहिए, ताकि इन घरों को आवश्यक रूप से सौर ऊर्जा उत्पादन करना पड़े। समस्त कालोनियों एवं मकानों के आस-पास पेड़ों का लगाया जाना आवश्यक कर देना चाहिए। देश में ख़ाली पड़ी पूरी ज़मीन को ग्रीन बेल्ट में बदल दिया जाना चाहिए। देश में 25 प्रतिशत प्रदूषण, यातायात वाहनों से फैलता है, अतः देशवासियों को यातायात वाहनों में नवीकरण ऊर्जा के उपयोग हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। इससे वातावरण में कार्बन डाई आक्सायड कम होगी एवं ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ेगी।

“ प्रति बूंद अधिक पैदावार” के सपने को साकार करने के लिए फ़व्वारा सिंचाई एवं बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को देश में बढ़े स्तर पर अपनाया जाना चाहिए। खोई हुई उर्वरा शक्ति को हासिल करने हेतु पेड़ों और बड़ी झाड़ियों को खेतों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। दो खेतों के बीच में ज़मीन खुली न छोड़ें, इससे पोषक तत्वों का नुक़सान होता है। ख़ाली ज़मीन पर कुछ अन्य पेड़ लगाएं। ज़मीन का उपयोग लगातार करते रहें। मिश्रित खेती करें। जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

ऐसी फ़सलों जिन्हें लेने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जैसे गन्ना, अंगूर आदि को देश के उन भागों में स्थानांतरित कर देना चाहिए जहां हर वर्ष अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है। देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने के प्रयास भी प्रारम्भ किए जाने चाहिए जिससे देश के एक भाग में बाढ़ एवं दूसरे भाग में सूखे की स्थिति से भी निपटा जा सके। भूजल के अत्यधिक बेदर्दी से उपयोग पर भी रोक लगानी होगी ताकि भूजल के तेज़ी से कम हो रहे भंडारण को बनाए रखा जा सके। प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पानी की बचत एवं संरक्षण, आदि विषयों पर विशेष अध्याय जोड़े जाने चाहिए।

प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने के लिए हमें कुछ आदतें अपने आप में विकसित करनी होंगी। यथा, जब भी हम सब्ज़ी एवं किराने का सामान आदि ख़रीदने हेतु जाएं तो कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। इससे ख़रीदे गए सामान को रखने हेतु प्लास्टिक के थैलियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। हम घर में कई छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर पानी की भारी बचत कर सकते हैं। जैसे, टोईलेट में फ़्लश की जगह पर बालटी में पानी का इस्तेमाल करें, दातों पर ब्रश करते समय सीधे नल से पानी लेने के बजाय, एक डब्बे में पानी भरकर ब्रश करें, स्नान करते समय शॉवर का इस्तेमाल न करके, बालटी में पानी भरकर स्नान करें।

पर्यावरण को रीचार्ज करके विकास एवं पर्यावरण के बीच सामंजस्य बिठाया जा सकता है। कचरा एवं प्लास्टिक को रीसायकल करना, प्राकृतिक संसाधनों की दक्षता बढ़ाना, जल का संरक्षण, ऊर्जा का दक्षता से उपयोग, शहरों में हरियाली बढ़ाना, ध्वनि प्रदूषण को कम करना, ग्रीन एंड क्लीन ट्रांसपोर्ट का विकास करना, ठोस अपशिष्ट का सही तरीक़े से प्रबंधन करना, आदि कार्य करके भी पर्यावरण में सुधार किया जा सकता है।

Comment: