‘आप’ को खा गये उसी के ‘पाप’

भारतीय राजनीति में जितनी तेजी से ‘आप’ का उदय हुआ उतनी ही तेजी से उससे लोगों का मोह भी भंग हो गया। वास्तव में इस पार्टी के इतनी शीघ्रता से मिट जाने के लिए इसके नेतृत्व का ‘बचकानापन’ ही अधिक जिम्मेदार रहा। दिल्ली में सत्ता की बागडोर इन्होंने संभाली और अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गये, पर शासन को चला नही पाए , और जिन परिस्थितियों में वह मुख्यमंत्री पद को छोड़कर भागे उससे उन पर भगौड़ा का आरोप लगा। वह इस आरोप का कोई उत्तर नही खोज सके। इस पार्टी के पास वृद्घों का अनुभव-जन्य ज्ञान नही था, इसलिए अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग गाते बजाते -ये लोग झूमने लगे। परिणाम स्वरूप दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर केजरीवाल को भ्रम हो गया कि वह अब मोदी को भी हरा देंगे। यही बीमारी कुमार विश्वास को लग गयी और अपनी इसी ‘फीलगुड’ की बीमारी से आज दोनों ‘राजनीति के आईसीयू’ में दाखिल पड़े हैं। कुमार विश्वास की कविताओं का मधुमास तथा केजरीवल के धरना प्रदर्शनों का उल्लास कतई मर गया है। केजरीवाल शीला दीक्षित को दिल्ली के विधानसभा चुनावों में हराकर अहंकार से फूल गये और मोदी के सामने ताल ठोंकने की नासमझी कर बैठे। जबकि वह भूल गये कि शीला और मोदी में जमीन आसमान का अंतर है। शीला के कुशासन से लोग तंग थे और मोदी को लोगों ने कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के कुशासन के विरूद्घ अपना भावी नेता मान लिया था। एक को लोग आजमा चुके थे और दूसरे को अभी आजमाना शेष था। केजरीवाल अकल के दुश्मन निकले और ये सोचकर मोदी से भिड़ गये कि इस प्रकार भिड़ जाने से उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी। पर दुख के साथ कहना पड़ता है कि उनकी लोकप्रियता ‘चांटे खाने’ में तो बढ़ी पर एक गंभीर नेता के रूप में नही बढ़ी।

केजरीवाल चुनावों के दौरान मोदी को खुली चर्चा के लिए बुलाते रहे, पर मोदी ने केजरीवाल के छुपे एजेंडे को समझ लिया और उनके उकसाने के बावजूद वह उनके बहकावे में नही आए। वास्तव में केजरीवाल की सोच थी कि मोदी से भिड़ंत होते ही वह पीएम की रेस में आ जाएंगे और लोग उनकी ओर देखने लगेंगे पर मोदी ने उन्हें तनिक भी भाव नही दिया। मोदी समझते थे कि एक अराजकतावादी और भगौड़ा होने के कारण ही लोग केजरीवाल को मत के स्थान पर चांटे दे रहे हैं, इसलिए उससे मुंह लगने का अर्थ होगा उसका कद अपनी बराबर का मान लेना। इस प्रकार ‘आप’ के इस संयोजक को मोदी के मौन का ग्रास लग गया और वह चुनाव में चारों कोने चित्त पड़ा अब अपनी हड्ड़ी फसली सिकवा रहा है। यही हाल मि. कुमार विश्वास का है। इस बच्चे ने अभी तक कवितायें झूठी वीरता के प्रदर्शन के साथ ही पढ़ी थीं पर अब मैदान में सच्ची वीरता का प्रदर्शन करने का समय आ गया था। गुरू भगौड़ा था तो चेला भी कम नही था। पूरा बहुरूपिया था। राहुल के सामने कई रूप धरे। स्वयं अपने ही कार्यकर्ताओं से अपने ही ऊपर टमाटर फिकवाए, ताकि कुछ लोकप्रियता बढ़े। पर लोग झूठे शेर की कागजी दहाड़ को भांप गये और उसे तनिक भी भाव नही दिया। बड़ी-बड़ी और झूठी-झठी बातें करने का परिणाम यही होता है। देश की जनता ने जो कुछ कर दिया है वह कमाल भी है और धमाल भी है।

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