पल्स पोलियो की भांति सुवर्णप्राशन की दो बूंद और बच्चों का स्वास्थ्य
रवि शंकर
लगभग सभी बच्चे स्कूल जाने से बचने के लिए बीमारी का बहाना बनाते हैं। हमने आपने भी बनाया ही होगा। परंतु क्या हमें यह पता है कि देश में 30 प्रतिशत बच्चे वास्तव में बीमारी के कारण ही वर्ष में पाँच से अधिक दिन अपनी कक्षा से अनुपस्थित रहते हैं? वर्ष 2016 में देश के दस शहरों में एक शोध संस्था द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष सामने आया। इस शोध में यह भी बताया गया कि लगभग 30 प्रतिशत माताएं अपने बच्चों को प्रतिमाह कम से कम एक बार डॉक्टर के यहाँ ले जाती हैं और उस पर उनका लगभग 850 रूपये प्रतिमाह का खर्च होता है। यह सब कुछ होता है केवल बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण।
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रोगप्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण मौसम के बदलने अथवा प्रदूषण अथवा किसी अन्य प्रकार के संक्रमण के संपर्क में आने पर बच्चा तुरंत ही रोगों की चपेट में आ जाता है। इससे भले ही वह वर्ष में पाँच या उससे अधिक दिन विद्यालय से अनुपस्थित रहता हो, परंतु उसकी पढ़ाई इससे कहीं अधिक दिनों तक प्रभावित होती है। कुल मिला कर देखा जाए तो बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता के कम होने से न केवल उसकी पढ़ाई प्रभावित होती है, बल्कि अभिभावकों की जेब भी ढीली होती है। इतना ही नहीं यदि माताएं कामकाजी हुईं तो उन्हें अपनी नौकरी से छुट्टी भी लेनी पड़ती है। इस सारे नुकसान से आप बच सकते हैं यदि बच्चे को शैशवावस्था से ही सुवर्णप्राशन करवाया जाए।
देश में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सरकार बहुत सचेत और सक्रिय दिखती है। बच्चे स्वस्थ हों इसके लिए पैदा होते ही उन्हें टीके लगाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी जाती है। देश के सभी बच्चों को टीके लगाए जाएं इसके लिए सरकार ने एक इंद्रधनुष योजना ही प्रारंभ कर दी है।
ऐसे में उपरोक्त खबर निश्चय ही चिंतित करने वाली है। विचार करने की बात यह भी है कि यह सर्वेक्षण दस प्रमुख शहरों में किया गया है जहाँ सामान्यत: माता-पिता जागरूक होते हैं और बच्चों को सभी टीके समय से लगवाते ही हैं। इसके बावजूद यदि बच्चे अक्सर बीमार हो रहे हैं, तो इसका सीधा अर्थ यह है कि टीकों से बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता नहीं बढ़ रही है। ऐसे में यह विचार किया ही जाना चाहिए कि आखिर शिशुओं तथा बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाई जाए। इसका एक समाधान आयुर्वेद में सुवर्णप्राशन के रूप में बताया गया है।
सुवर्णप्राशन क्या है?
यह एक प्रक्रिया है जिसे सुवर्ण भस्म (सोने की राख) और अन्य हर्बल अर्क के साथ अर्ध-तरल रूप में लिया जाता है। इसे बच्चों को अवलेह यानी चटनी के रूप में चटाया भी जा सकता है अथवा तरल के रूप में पोलियो ड्राप्स की भांति पिलाया भी जा सकता है। रोगों से बचाव का यह एक अनूठा तरीका है, जो बच्चों को बौद्धिक शक्ति को बढ़ावा देने में मदद करता है और सामान्य विकारों से लडऩे के लिए शरीर में विशिष्ट प्रतिरक्षा पैदा करता है। सुवर्णप्राशन विशेष रूप से आटिज्म यानी मंदबुद्धिता, सीखने की कठिनाइयों, ध्यान भटकना, हाइपर गतिविधि, विलम्बित माइलस्टोन आदि से ग्रसित विशेष बच्चों के लिए भी उपयोगी है। आयुर्वेद में बच्चों से संबंधित कश्यप संहिता है जो कि महर्षि कश्यप की लिखी बताई जाती है। सुवर्णप्राशन का उल्लेख और सुश्रुत संहिता में भी मिलता है।
सुवर्णप्राशन का विधान काफी प्राचीन समय से चला आ रहा है। जातकर्म संस्कार में विधान किया गया है कि माता-पिता अपने बच्चे के जन्म लेने के बाद जीभ पर चांदी या सोने की सिलाई से ओम् लिखें। यह सुवर्णप्राशन का ही एक प्रकार है। अब यह संस्कार विलुप्त हो गया है और अस्पतालों में प्रसव करवाने के कारण यह करना संभव भी नहीं रह गया है। सामान्यत: एलोपैथ के चिकित्सक अपनी अज्ञानता के कारण नवजात शिशु को शहद तक चटाने की अनुमति नहीं देते। परंतु हाल ही महाराष्ट्र में इसका प्रयोग हजारों बच्चों पर शोध के रूप में किया गया, तो सामने आया कि जिन बच्चों को सुवर्णप्राशन करवाया गया, वे अन्य बच्चों की तुलना में स्वस्थ और असाधारण गुणों से भरपूर थे।
सुवर्णप्राशन के लाभ
महर्षि कश्यप कहते हैं कि सुवर्णप्राशन से बुद्धि, पाचन शक्ति और शारीरिक शक्ति में सुधार होता है। यह एक तरह से शिशु तथा बच्चे की रोगप्रतिरक्षा को बेहतर बनाता है, ताकि बच्चे को बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण से रोका जा सके। सुवर्णप्राशन का नियमित उपयोग से बच्चों को स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है। सुवर्णप्राशन विकृत कोशिकाओं को पुन: सक्रिय एवं जीवंतता प्रदान करता है। शरीर में विकृति स्वरूप ट्यूमर इत्यादि की कोशिकाओं को नष्ट करता है। इस प्रकार कैंसर आदि रोगों से बचाता है। शरीर में अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों को दूर करता है। सूजन की प्रक्रिया को रोकता है। याददाश्त और एकाग्रता को बढ़ाता है। इसलिए यह अध्ययनरत बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह हृदय की पेशियों को भी शक्ति देता है और शरीर में रक्त संचार को बढ़ाता है। सामान्यत: सुवर्णप्राशन में सुवर्णभष्म, वच, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, गुडुची यानी गिलोय का सत, जेठीमधु, अश्वगंधा,
घी और शहद होता है।
रोगों के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो जाती है।
शारीरिक शक्ति बढ़ जाती है और बच्चे का विकास ठीक से होता है।
सीखने की शक्ति, विश्लेषण शक्ति और याद स्मृति तेज हो जाती है।
पाचन शक्ति में सुधारता है।
त्वचा का रंग और बनावट तथा टोन सुधारता है।
बच्चे को विभिन्न प्रकार की एलर्जी से बचाता है।
सुवर्णप्राशन की खुराक
सुवर्णप्राशन की दैनिक मात्रा न्यूनतम 1 महीने से अधिकतम 3-6 महीने के लिए दी जानी चाहिए। या एक बार न्यूनतम 30 महीने से अधिकतम 90 महीनों तक पुष्य नक्षत्र के दिन (पुष्य नक्षत्र दिन 27 दिनों में एक बार आता है) दी जा सकती है। हर रोज सुबह खाली पेट में या पुष्य नक्षत्र के दिन सुवर्णप्राशन की खुराक बच्चे को दिया जाना चाहिए। सुवर्णप्राशन नवजात शिशु से लेकर 16 वर्ष की आयु तक के बालक को दी जा सकती है। सुवर्ण को आयुर्वेद में बहुत ही स्वास्थ्यकर तथा लाभकारी माना जाता है। सोने की भष्म के निम्नलिखित स्वास्थ्यकर प्रभाव होते हैं –
1. यह पुनर्जीवन देता है और प्रतिरक्षा को बढ़ाता है।
2. रंग और शरीर की वृद्धि में सुधार करता है।
3. शरीर से विषाक्त तथा विजातीय पदार्थों को निकालता है।
4. सामान्य संक्रमणों तथा विभिन्न बुखारों को नष्ट करता है।
5. सुवर्णभष्म में एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी डिस्ट्रेंट, कैंसररोधी, जीवाणुरोधी, संधिशोथरोधी गुण होते हैं।
जैसा कि हम जानते हैं कि मानव मस्तिष्क एक से 16 साल के जीवन में तेजी से बढ़ता है। सोना मस्तिष्क के विकास को तेज करता है। आधुनिक विज्ञान भी मानव स्वास्थ्य पर सोने के इन प्रभावों को स्वीकार करने लगा है। सोने के अलावा गुडुची आदि अन्य दवाएं बच्चे की प्रतिरक्षाप्रणाली को मजबूत बनाने में सहायता करती हैं।
इसलिए यदि बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सरकार वास्तव में गंभीर प्रयास करना चाहती है तो उसे चाहिए कि पल्स पोलियों की भांति सुवर्णप्राशन की दो बूंदें, प्रत्येक महीने के पुष्य नक्षत्र में देश के सभी बच्चों को नि:शुल्क पिलाए जाने की व्यवस्था करे। इसके लिए पल्स पोलियों की भांति ही एक व्यापक अभियान चलाया जाए। इससे न केवल बच्चों का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होगा, बल्कि देश का वह करोड़ों रूपया बचेगा, जो इनके स्वास्थ्य पर अनावश्यक रूप से खर्च किया जाता है। वे आगे चल कर स्वस्थ नागरिक बनेंगे और देश के विकास में भी अधिक सहायक होंगे।