कोरोना संक्रमण की बीमारी अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या, इस पर राजनीति ठीक नहीं

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सुरेश हिन्दुस्थानी

जहां तक भारतीय परिवेश और खानपान की बात है तो यह कहना भी जरूरी है कि कोरोना संक्रमण के दौरान यह बात सबके ध्यान में भी आ चुकी है कि हाथ मिलाने के स्थान पर नमस्ते करने से भी संक्रमण से बचा जा सकता है।

कोरोना के प्रति शासन, प्रशासन और आम जनता की लापरवाही के परिणाम अत्यंत भयावह रूप लेते दिखाई दे रह हैं। संक्रमितों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि के बाद भी हमारा समाज किसी प्रकार का सबक लेने की मानसिकता नहीं बना सका है। इससे पहले भी लॉकडाउन की अवधि के दौरान जनमानस अच्छे बुरे की पहचान कर चुका है। लेकिन ऐसा लगता है हम जानते हुए अनजान बन जाते हैं। इसके पीछे का कारण यह भी माना जा सकता है कि हमारा समाज लम्बे समय तक ऐसी राह का अनुसरण कर चुका है, जो पूरी तरह से पश्चिम के विकारों से ग्रसित है। प्रायः यही कहा जाता है कि जो व्यक्ति भारतीय संस्कृति की जीवन संहिताओं का पालन करता है, उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमताओं में आशातीत वृद्धि होती है। जबकि पश्चिमी अवधारणा पर आधारित जीवन जीने वाला व्यक्ति समस्याओं को खुद ही आमंत्रित करता है।

वर्तमान में देश के कुछ हिस्सों में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए धारा 144 और कर्फ्यू लगाने की आवश्यकता हुई है। केंद्र सरकार ने भी इस मामले में सक्रियता दिखाकर राज्यों से अंकुश लगाने को कहा है। इसका तात्पर्य यही है कि अब हालात पहले से भी ज्यादा घातक हैं। पहले की तुलना में जहां संक्रमण बढ़ा है, वहीं कोरोना के कारण मृत्यु दर भी निरंतर बढ़ती जा रही है। इस स्थिति को लापरवाही की पराकाष्ठा ही माना जा सकता है। विशेष बात यह है कि इस बार कोरोना संक्रमित व्यक्ति गंभीर अवस्था में उपचार करा रहे हैं। मतलब समस्या काफी गंभीर है।

समस्या इसलिए भी ज्यादा घातक है, क्योंकि अभी तक यह बीमारी लाइलाज है। लगभग एक वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बाद भी यह पता नहीं है कि इसकी दवा कब तक आएगी। केंद्र सरकार ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वैक्सीन कब आएगी, यह वैज्ञानिकों के हाथ में है। तब तक किसी भी प्रकार की ढिलाई जीवन को खतरे में डाल सकती है। चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले लिया है। दुनिया के देश इसके खतरों के प्रति पूरी तरह से अनजान होने के कारण पहले तो हल्के में लिया, लेकिन जैसे ही कोरोना का विकराल रूप सामने आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अमेरिका जैसे विकसित और चिकित्सा के क्षेत्र में बेहतर सेवा देने वाले इटली जैसे देश में भी इस वायरस ने तबाही जैसे हालात बना दिए थे। अभी खबर मिल रही है कि यूरोप और अमेरिका में कोरोना वायरस ने फिर पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। फ्रांस में भी कोरोना की दूसरी लहर ने स्वास्थ्य आपातकाल लगाने की स्थिति पैदा कर दी है। यही स्थिति भारत की है। हालांकि यह कहना तर्कसंगत ही होगा कि जब से कोरोना वायरस फैला है, तब से ही यह कहीं ज्यादा तो कहीं कम विस्तारित ही हो रहा है। सवाल यह आता है कोरोना के काल में ही कुछ लोंगों ने इसके प्रति उदासीन रवैया अपना लिया था। जिसका परिणाम आज सबके सामने है।

सवाल यह भी है जब कोरोना संक्रमण की बीमारी अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या के तौर पर उपस्थित हुई है, तब ऐसी स्थिति में मात्र भारत सरकार को निशाने पर लेने की राजनीति कहीं न कहीं हमारी उदासीनता को ही प्रकट कर रही है। यह समस्या हर राज्य की है और हर क्षेत्र की है। यहां तक कि हर नागरिक से जुड़ी है, इसलिए इसका समाधान केवल सरकारी स्तर पर नहीं निकाला जा सकता। इसके लिए हमको सभी स्तर पर जागरूक रहने की आवश्यकता है। इसमें सबसे पहले अपने आपको बचाकर रखने में ही अपनी और समाज की भलाई है। ऐसी अवस्था में और ज्यादा कठोरता होने की जरूरत है। नहीं तो देश में अकाल मौतें तो होंगी ही साथ ही कठोर लॉकडाउन का भी सामना करना पड़ सकता है।

जहां तक भारतीय परिवेश और खानपान की बात है तो यह कहना भी जरूरी है कि कोरोना संक्रमण के दौरान यह बात सबके ध्यान में भी आ चुकी है कि हाथ मिलाने के स्थान पर नमस्ते करने से भी संक्रमण से बचा जा सकता है। खानपान को व्यवस्थित करने से भी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। इतना ही नहीं विश्व के कई देशों ने खुलकर यह स्वीकार भी किया है कि भारत के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कहीं ज्यादा है, इसीलिए कई देशों की तुलना में भारत में इसका असर ज्यादा नहीं हुआ। एक बात और भी कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए शासन और प्रशासन ने कई बार आम जन से यह अपील की कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि इस अपील का आम समाज पर कोई प्रभाव नहीं हुआ।

समाज का हर व्यक्ति भीड़ से परहेज नहीं, बल्कि उसका हिस्सा बनने की अग्रसर हो रहा है। भौतिक दूरी और चेहरे पर मास्क लगाने की भी जरूरत नहीं समझी जा रही। यह हमारे समाज की विसंगति ही कही जाएगी कि हम जीवन के प्रति बनाए गए नियमों में बंधना ही नहीं चाहते। हम नियमों की अवहेलना ही करने की ओर प्रवृत्त होते जा रहे हैं। यही सब कारण हैं कि हम समाधान के बजाय खुद ही समस्या बनते जा रहे हैं। भारत की जनता नियम पालन करने की मानसिकता बना ले तो स्वाभाविक रूप से बहुत सारी समस्याओं का समाधान निकल सकता है।

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