दक्षताओं का ही उपयोग लें

दूसरे कामों में न उलझा

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– डॉ. दीपक आचार्य

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जो व्यक्ति जिस काम मेंं दक्ष हो, उसे उसी प्रकार का काम यदि दिया जाए तो वह ज्यादा प्रसन्नता और रुचि के साथ अपने काम को पूरी सफलता देने में समर्थ होता है।

लेकिन किसी एक विधा में प्रवीण किसी व्यक्ति को ऎसा काम दे दिया जाए जिसमें उसकी कोई रुचि या दक्षता नहीं हो, तब वह काम भी बिगड़ जाता है और उसकी सफलता संदिग्ध हो जाती है।

इसके साथ ही काम करने वाला भी बिगड़ जाता है और उसे इन कामोें से अरुचि होने के साथ ही बार-बार उद्विग्नता और क्षोभ का सामना करना पड़ता है।

आजकल सभी जगह हो यह रहा है कि लोग किसी एक विधा में दक्ष तो होते नहीं हैं और सभी में हाथ आजमाते रहते हैं।

दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की है जो अपने किसी एक हुनर में दक्ष हैं लेकिन उनमें से कुछ ही लोग अपने वास्तविक कामों में जुटे हुए हैं, इनके अलावा के लोगों को ऎसे-ऎसे काम दे दिए जाते हैं जिनसे न उनकी पढ़ाई-लिखाई का लेना-देना है, न इनके विकास से, और न ही इनके जीवन के किसी भी पहलू से।

बहुत से लोग अक्सर यह कहते हुए सुने जाते हैं कि उन्हें जो काम मिला हुआ है अथवा दिया गया है वह उनके स्तर का नहीं है अथवा उनकी दक्षताओं के अनुरूप नहीं है लेकिन थोप दिया गया है इसलिए जैसे-तैसे निपटाने को विवश हैं।

बहुत सारी प्रतिभाएं बेकार के उन कामों के बोझ से दबी हुई हैं जिनसे उनका कोई वास्ता है ही नहीं। इन लोगों को उनके हुनर या शिक्षा-दीक्षा अथवा प्रशिक्षण के मुताबिक काम जब नहीं मिल पाता है तब ये कुण्ठित हो जाते हैं और ऎसे में समाज की बहुत बड़ी प्रतिभा शक्ति का कोई उपयोग नहीं हो पाता है।

पुराने युग में इस प्रकार की व्यवस्था थी कि व्यक्ति को उसकी योग्यता और दक्षता विशेष के अनुरूप ही काम सौंपा जाता था और उससे यह पूर्ण अपेक्षा थी कि वह समाज के लिए ऎसा काम कर जाए कि समाज उसे पीढ़ियों तक याद रखे और समाज को वह कुछ देकर जाए।

पर आजकल बहुधा ऎसा होता नहीं है। हो यह रहा है कि लोग अपेक्षाओं के अनुरूप काम नहीं मिलने से दुःखी,व्यथित और कुण्ठित हैं तथा अपनी प्रतिभाओं को पूरा उपयोग भी नहीं हो पा रहा है जिससे कि न उसको संतुष्टि मिल पा रही है, न समाज को। और न ही राष्ट्र को।

होना यह चाहिए कि जो लोग जिन विधाओं में दक्ष हैं, जिन लोगों ने जो पढ़ाई की है अथवा प्रशिक्षण पाया है और जिन लोगों में समाज और देश के लिए अपनी प्रतिभाओं का उपयोग करने का जज्बा है उन लोगों को समाज एवं देश की तरक्की के अनुकूल सेवाओं का अवसर मिले।

आजकल लोग अपने नंबर बढ़ाने के लिए लोगों का मनचाहा इस्तेमाल करने लगे हैं जैसे कि आदमी न होकर कोई वस्तु ही हो। जिसका जैसा चाहा, मनचाहा इस्तेमाल कर लिया।

यह स्थिति समाज के लिए आत्मघाती है और इससे बचने के लिए यह जरूरी है कि समाज की उन सभी प्रतिभाओं को समाज के विकास और राष्ट्र के निर्माण में लगाया जाए जो किसी न किसी काम मेंं हुनरमंद हैं तथा जिनमें समुदाय की तरक्की तथा राष्ट्र के नवनिर्माण का जज्बा है।

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