शिर्डी से हो रही है मानव तस्करी, मुंबई हाई कोर्ट ने जताई आशंका

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कांग्रेस और एनसीपी की बैसाखियों पर चल रही महाराष्ट्र में शिव सेना की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सरकार पर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्मयी मृत्यु से सरकार और बॉलीवुड पर छाए संकट के बादलों में जनहित भावना लुप्त होती नज़र आ रही है। काफी समय से लॉक डाउन के पूर्व से ही शिरडी के दर्शनार्थियों के गायब होने का समाचार सुर्ख़ियों में है, लेकिन सुशांत और बॉलीवुड में ड्रग माफिया के उजागर होने और किसी बड़े नेता के पुत्र, जिसे छोटे पेंगुइन के नाम से सम्बोधित किया जा रहा है, को बचाने और चर्चा यह भी है कि रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी पर कसते शिकंजे की असली वजह सोनिया गाँधी को अंटोनिओ के नाम से सम्बोधित किये जाना ही मुख्य कारण होने की वजह से शिरडी से गायब होते लोगों की लेशमात्र भी चिंता नहीं। काश, स्थिति विपरीत होती, क्या तब भी उद्धव चुपचाप बैठे होते? 

दूसरे, रोज हज़ारों की संख्या में शिरडी आने वाले लोगों से महाराष्ट्र को पर्यटन से आय होने के साथ-साथ हज़ारों को रोजगार भी मिल रहा है। यदि शिरडी से लोगों के गायब होने का सिलसिला जारी रहने से महाराष्ट्र सरकार को कितना नुकसान होगा, क्या उद्धव ने कभी चिंता की? काश ! अपने पुत्र की इस सत्ता लोलुपता की मनोदशा को देखने के लिए बालासाहब जीवित होते। 

बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा मानव तस्करी की आशंका व्यक्त करना महाराष्ट्र सरकार की कार्यशैली पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रही है। और निश्चित रूप से गंभीरता और निष्पक्ष जाँच ही इस आशंका को दूर पायेगी कि इस घिनौने खेल में कौन-कौन शामिल हैं? क्योंकि किसी राजनीतिक संरक्षण के बिना मानव तस्करी असंभव है।
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने महाराष्ट्र के शिरडी शहर से पिछले कुछ सालों से गायब हो रहे लोगों के बढ़ते मामलों को देखते हुए महाराष्ट्र पुलिस को मामले में संज्ञान लेने का निर्देश दिया है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बॉम्बे हाईकोर्ट ने महसूस किया कि लापता हो रहे लोगों का पता लगाने में महाराष्ट्र पुलिस का प्रयास काफी असंतोषजनक रहा है। कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस महानिदेशक (DGP) से इस मुद्दे पर गौर करने और सख्त कदम उठाने के लिए कहा है। उच्च न्यायालय ने डीजीपी से, गुमशुदगी के पीछे (मानव) तस्करी या अंग तस्करी रैकेट की संभावना की जाँच करने और इस पर से पर्दा हटाने का आदेश भी दिया है।

शिरडी पुलिस द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट को सौंपे गए आँकड़ों के अनुसार 2017 से 27 अक्टूबर, 2020 के बीच अहमदनगर के शिरडी से लगभग 279 लोगों के लापता होने की सूचना है। इनमें से 67 लापता लोगों को अभी तक ट्रेस नहीं किया जा सका हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने पाया कि 2017 में शिरडी से 20 लोग लापता हो गए थे, जिनका अभी पता नहीं चल पाया है। वहीं इस साल मार्च में हुए लॉकडाउन से पहले 20 अन्य लोगों के लापता होने की सूचना है।

इंदौर निवासी मनोज सोनी द्वारा कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। मनोज 10 अगस्त, 2017 को अपने परिवार के साथ साईंबाबा मंदिर में दर्शन करने के लिए शिरडी आए थे। उनकी 35 वर्षीय पत्नी दीप्ति एक शाम मंदिर में दर्शन करने के बाद गायब हो गई थी, जिनका अभी तक पता नहीं लग पाया है।

न्यायमूर्ति रवींद्र वी. घुघे और न्यायमूर्ति बीयू देबदवार की खंडपीठ ने 26 अक्टूबर को अहमदनगर के एसपी को दीप्ति मामले में पुलिस द्वारा किए गए प्रयासों को लेकर अदालत को एक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था।

इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा मानव तस्करी करने वाले गिरोहों की संलिप्तता पर संदेह किया जा रहा है।

अदालत के समक्ष प्रस्तुत आँकड़ों में कहा गया है कि 2017 में शिरडी से लापता 71 लोगों की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। जिनमें से 51 लोग वापस मिल गए थे जबकि दीप्ति सहित 20 लोग अभी भी लापता हैं। वहीं 2018 में गुम हुए 82 व्यक्तियों में से 13 का पता अभी तक नहीं चल पाया है और 2019 में लापता हुए 88 में से 14 के लापता होने की सूचना है। इस साल 2020 में 38 लोग लापता हुए, जिनमें केवल 18 लोगों का ही पता चला है।

मानव-तस्करी के मद्देनजर अदालत को जवाब देते हुए अभियोजक ने अदालत से कहा कि, शिरडी पुलिस को अभी तक किसी भी मानव तस्करी या अंग तस्करी समूह का लिंक इस मामले में नहीं मिला है। जिसके लिए लोगों का अपहरण या उन्हें गायब किया जा रहा है।

न्यायाधीशों ने कहा कि 26 अक्टूबर को अदालत के आदेश के बाद पुलिस को गहरी नींद से उठाया गया। कोर्ट ने कहा कि इंसान झूठ बोल सकता है लेकिन दस्तावेज झूठ नहीं बोलेंगे। 22 नवंबर, 2019 को कोर्ट के आदेश के अनुसार, शिरडी पुलिस द्वारा जाँच के लिए गठित विशेष यूनिट का इस मामले में किया गया प्रयास संतोषजनक नहीं है।

अदालत ने आगे कहा, “हम आश्वस्त हैं कि शिरडी पुलिस स्टेशन ने शायद ही कोई प्रयास किया हो। और यह इस तरफ इशारा किया कि अहमदनगर पुलिस विभाग के प्रमुख भी अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं।”

बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि वह 24 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई में डीजीपी के जवाब का इंतजार करेगी।

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