सचमुच ये वह कांग्रेस नही हैं

एक समय था जब कांग्रेसी होना सचमुच गर्व की बात समझी जाती थी। निश्चित रूप से यह वो समय था जब कांग्रेस में गांधी, सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, कामराज, जेपी नारायण, जैसे अनगिनत लोग निचले पायदान से चढ़कर ऊपर आए थे और जो गरीब की गरीबी को नजदीक से जानते थे। क्योंकि उन्होंने गरीबी को भुगता था। इसलिए उन महापुरूषों ने कभी गरीबी का मजाक उड़ाने की सोची तक भी नही थी। जैसे ही गरीब और गरीबी का जिक्र उनके सामने आता तो वे गंभीरता से लवरेज हो जाते थे। उनकी नजरों में गरीबी का सारा मंजर घूम जाता था। इसलिए गरीब और गरीबी के प्रति जैसा उत्कृष्ट चिंतन इन जैसे लोगों का मिलता है वैसा अन्य किसी का नही।

आज वक्त बदल गया है। कांग्रेस की कमान आज उन लोगों के हाथ में है जो गरीब और गरीबी को जानते तक नही हैं। इसलिए गरीब और गरीबी के प्रति क्रूर उपहास कभी शशि थरूर करते हैं, कभी रशीद मसूद और कभी राजबब्बर करते हैं। ये लोग वे हैं जो गरीब का और गरीबी का जिक्र आते ही किसी भीख मांगने वाले का चित्र अपनी आंखों में उतारते हैं और उस चित्र में उस गरीब को स्वयं के द्वारा लताड़ते हुए या धमकाते हुए पाते हैं। इसलिए सपने की बड़बड़ाहट में इनसे गरीबों के प्रति ‘बदतमीजी’ हो जाती है। जब उस ‘बदतमीजी’ पर कहीं से शोर मचता है तो ये सोचते हैं कि इन गरीबों को तो सभी लोग इसी प्रकार हड़काते रहते हैं-मैंने हड़का दिया तो क्या हो गया? तब इनका कोई बड़ा नेता इनके कान में कहता है कि बात तो आपकी सही है, हड़काता तो मैं भी हूं, लेकिन कमबख्त विपक्ष को क्यों एक मुद्दा देते हो? छोड़ो और मामले को रफा दफा कर लो। तब इनकी आंखें खुलती हैं और आंख मलते-मलते कहते हैं ‘सॉरी मैं गफलत में कह गया’। गरीबी का मजाक उड़ाते हुए राजबब्बर ने कहा कि बंबई में 12 रूपये में आदमी खाना खा सकता है। जबकि रशीद मसूद ने दिल्ली में कहा कि यहां तो 5 रूपये में ही आदमी खाना खा सकता है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री (शायद सोनिया मैडम से गृहमंत्रालय लेने की उम्मीद में) ने तो हद ही कर दी और कह दिया कि एक रूपया में भी भरपेट भोजन मिल सकता है। बात साफ है कि मनमोहन की संप्रग सरकार ने 17 करोड़ लोगों की गरीबी हटाई है ये कहकर कि 28 रूपया प्रतिदिन कमाने वाला व्यक्ति गरीब नही है।

ऐसी परिस्थितियों में यदि कल को फारूक अब्दुल्ला देश के पी.एम. बन जाएं तो उनके आते ही तो सारा देश ही गरीबी से मुक्त हो जाएगा। इंदिरा गांधी नाहक ही 1971 में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दे रही थीं, उन्हें उसी समय फारूक अब्दुल्ला को देश का वित्त मंत्रालय दे देना चाहिए था। सचमुच भारत अब तक फिर से सोने की चिड़िया बन गया होता।

कितने छोटे लोग बड़ी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। देश की स्थिति को देखकर, देश के पास पूर्ण क्षमताओं को देखकर व अच्छी प्रतिभाओं को देखकर तो ये लगता है कि देश की ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था’ का अपहरण हो चुका है। सारी व्यवस्था गुलाम हो गयी है कुछ चंद लोगों की और उनके परिवारों की, इसलिए देश की जनता की खुशहाली के लिए नेताओं ने काम करना बंद कर दिया है। राष्ट्र पूजा से बढ़कर व्यक्ति पूजा हो गयी है। इसलिए हर पार्टी अपने किसी खास चेहरे की गुलाम होकर रह गयी हैं। वह चेहरा यदि खुश कर दिया तो सब ठीक हो गया और यदि वह नाखुश हो गया तो नेता के लिए सारी दुनिया जहन्नुम बन जाती है। इसलिए एक व्यक्ति की चरणवंदना का अपमान जनक और लज्जाजनक सिलसिला चलता रहता है। ऐसी परिस्थितियों में गरीब और गरीबी का किसको ख्याल रह सकता है? अब कांग्रेस को 2014 का आम चुनाव याद आया है तो कांग्रेस ने ‘सोनिया चालीसा’ पढ़ रहे अपने चारणों का बेसुरा ‘लोक संगीत’ ये कहकर बंद करा दिया कि ये ना तो लोक के अनुकूल है और ना ही किसी संगीत की विधा में आता है। जब कांग्रेसी मंदिर की देवी ने कहा कि ये कौन हैं जो ऐसी वाहियात बातें कह रहा है? तब कहने वालों की आंखें खुली। फिर आनन फानन में माफी मांग ली।
वास्तव में ये माफी मांगने वाले लोग माफी के लायक नही हैं, अपितु ये हमारी दया के पात्र हैं। ये उनसे भी गये गुजरे लोग हैं जो रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों आदि पर कटोरा लिए हमें खड़े मिलते हैं। अंतर बस इतना है कि उनके दांत गिड़गिड़ाते हुए निकलते हैं तो इनके दांत हमें इनकी कुटिल मुस्कान के कारण दिखाई देते हैं। हमसे गलती ये हो जाती है कि हम वास्तविक भिकारी को तो कुछ नही देते पर इन्हें अपना वोट देकर देश का खजाना सौंप देते हैं। राजनीति में अधिकतर अब वो लोग जाते हैं जो घर वालों की नजरों में वाहियात और आवारा होते हैं और जिन्हें घर की जिम्मेदारी देने तक से लोग बचते हैं। हम उन्हीं आवाराओं में से अधिकांश को अपने देश की जिम्मेदारी सौंप देते हैं। क्या हमारी पार्लियामेंट और राज्य विधानमण्डल ऐसे लोगों से ही सुशोभित होंगी?

कांग्रेस अंतरावलोकन करे, नि:संदेह वह देश की सबसे बड़ी पार्टी है और इसलिए आज भी उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। गरीबों की ‘वाह-वाह’ ने उसे आगे बढ़ाया है आज आगे बढ़कर वह गरीबों की ‘आह-आह’ ना ले अन्यथा अनर्थ हो जाएगा। चिंतन शुरू करो, आचरण शुद्घ करो और शुद्घ चिंतन के स्तर पर गरीब हुए इन नेताओं को पहले चिंतन के स्तर पर अमीर बनाओ, तब यह देश चलेगा।

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