क्या ओवैसी को भी जिन्नाह की राह दिखाई जा रही है ?

 

मोहम्मद अली जिन्नाह को देश तोड़ने वाला कहकर आरएसएस और भाजपा पहले दिन से कोसती रही हैं। इतना ही नहीं, जिन्नाह को जिन्नाह बनाने के लिए महात्मा गांधी और उनकी कॉन्ग्रेस को भी जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। क्योंकि महात्मा गांधी ही थे जिन्होंने जिन्नाह को सबसे पहले ‘कायदे आजम’ कहा था।


भारतीय राजनीति का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष है कि मुस्लिम तुष्टिकरण और देशद्रोही लोगों को प्रोत्साहित करते रहना इसकी नियति बन चुकी है। महात्मा गांधी के मुस्लिम तुष्टीकरण का यह घृणास्पद स्वरूप ‘गांधीवाद’ के रूप में हमारे देश की राजनीति में एक संस्कार बनकर समाविष्ट हो गया है । यही कारण है कि चाहे कांग्रेस हो और चाहे आरएसएस या भाजपा हों ,यह सभी गांधीवाद के इस तुष्टिकरण नाम के भूत से या तो घबराए रहती हैं या इसे अपनाकर चलने में ही भलाई देखती हैं ।
बहुत दुख के साथ कहना पड़ता है कि आरएसएस और भाजपा ने भी तुष्टीकरण को पूर्णतया त्यागा नहीं है । सत्ता से बाहर रहकर भाजपा तुष्टीकरण के विरोध में जितना अधिक मुखर होकर बोलती है उतना सत्ता में रहकर उसका विरोध नहीं कर पाती । इसके विपरीत वह तुष्टीकरण को अपनाकर चलने की राजनीति करती हुई दिखाई देती है। आरएसएस भी अपनी पीठ एक राष्ट्रवादी संगठन के रूप में स्वयं ही थपथपाता रहा है, परंतु वह भी मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए अपनी ओर से ऐसे प्रयास कई बार करता हुआ दिखाई देता है जिन्हें उचित नहीं कहा जा सकता।
यही कारण है कि ओवैसी जैसे लोग देश में खुले घूम रहे हैं। वे या तो देशद्रोही तत्वों को अपना खुला समर्थन और संरक्षण प्रदान करते हैं या फिर हिंदू देवी-देवताओं के अपमान में कुछ ना कुछ बोल जाते हैं। इतना ही नहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी पर भी असंवैधानिक और संसदीय भाषा में बातें करते हुए दिखाई देते हैं।
धारा 370 को हटाए जाने का दुख ओवैसी और उसकी जैसी खोपड़ी वाले लोगों को अधिक है। लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर यह कश्मीर का मुस्लिम बहुल स्वरूप बनाए रखने में ही भलाई देखते हैं और वहां से एक एक हिंदू को चुन-चुन कर भगा देना इनको अच्छा लगता है। यही कारण है कि कश्मीर से भगाए गए हिंदुओं को लेकर इनके मुंह से एक शब्द भी आज तक नहीं निकला। हमें भाजपा और आरएसएस आजादी के बाद से आज तक यह समझ आती आई हैं की 1947 से पहले जब राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव हुए थे तो उस समय देश के 93% मुस्लिमों ने मुस्लिम लीग के पक्ष में मतदान करके पाकिस्तान के समर्थन में अपना मत दिया था । उस समय उन्हें उम्मीद थी कि सारा उत्तर भारत मुगलिस्तान के नाम से एक नए देश के रूप में उभर कर आएगा । स्पष्ट है कि इन्हें पाकिस्तान तो मिला पर बहुत छोटा मिला। मनचाहा पाकिस्तान अर्थात सारा उत्तर भारत उनकी गोद में नहीं गया । इसलिए मन मसोसकर ये लोग भारत में रह गए । क्योंकि पाकिस्तान इनको ले नहीं सकता था और भारत में रहना इनकी मजबूरी हो गई थी । इसलिए ‘बाय चॉइस’ नहीं बल्कि मजबूरी में इन्हें भारत रहना पड़ा था । अपने सपने को साकार करने के लिए पहले दिन से ही मुस्लिम नेतृत्व ने फिर भारत में एक नया पाकिस्तान बनाने की तैयारियां आरंभ कर दीं। उन्हीं तैयारियों को सही स्वरूप देने में ओवैसी और जैसे लोग आज लगे हुए हैं। परंतु भाजपा और आरएसएस उनके सपनों को समझकर भी उधर से अनजान बनी हुई हैं।
अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की ओर से सीसीए को लेकर दिए गए बयान पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पलटवार किया है। ओवैसी ने कहा है कि हम बच्चे नहीं हैं, जिन्हें  जिन्हें नागरिकता संशोधन कानून को लेकर गुमराह किया जाए। जबकि देश के मुस्लिमों का बहुत बड़ा वर्ग अब इस बात को समझ चुका है कि नागरिकता संशोधन कानून की सच्चाई क्या है ? ओवैसी जैसे लोग इसे एक मुद्दा बनाए रखना चाहते हैं। उनकी सोच है कि मसायल हल नहीं होनी चाहिए बल्कि बनी रहनी चाहिए । जिससे कि उसकी राजनीति चमकती रहे।
ओवैसी ने अपने ट्वीट कर कहा है कि बीजेपी ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है कि सीएए+एनआरसी का करना क्या था ? अगर यह मुस्लिमों के बारे में नहीं है, तो इसमें धर्म संबंधी हर चीज को हटा दें। यह याद रखें कि हम तब तक विरोध करते रहेंगे जब तक ऐसा एक भी कानून रहेगा, जो हमें हमारी भारतीयता साबित करने को कहेगा।
ओवैसी ने आगे लिखा है कि मैं कांग्रेस, आरजेडी और उनके हमशक्लों से भी यह कहना चाहता हूँ कि हम आंदोलन के दौरान आपकी चुप्पी भूले नहीं है। जब बीजेपी नेता लोगों को सीमांचल घुसपैठिए कह रहे थे तो आरजेडी और कांग्रेस ने एक बार भी अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी।
संघ अपने आपको राष्ट्रवादी बौद्धिक चिंतन का धनी कहता है । यह भी सर्वमान्य सत्य है कि भाजपा की वर्तमान सरकार को पीछे से आरएसएस बौद्धिक मार्गदर्शन दे रहा है । ऐसे में आरएसएस का यह भी कर्तव्य है कि वह सरकार को ऐसे सभी राष्ट्रद्रोही तत्त्वों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य करे जो ओवैसी की मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं या उसका समर्थन करते हैं या टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थन करते पाए जाते हैं। लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश को सिर्फ 1947 की ओर ले जाने की अनुमति किसी को भी नहीं दी जा सकती ।सरकार को कड़ाई से यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि इस समय देश में संविधान के अनुसार शासन चल रहा है । संविधान यदि राष्ट्र विरोधी तत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही के लिए सरकार को अनुमति प्रदान करता है तो उसमें सरकार को संकोच नहीं दिखाना चाहिए बल्कि कड़ाई का प्रदर्शन करना चाहिए।
मोहन भागवत और उनकी आरएसएस जिस प्रकार मुस्लिम तुष्टीकरण को प्रोत्साहित कर रहे हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि वह भी गांधीवाद की चपेट में आ चुके हैं और देश में फिर एक ‘कायदे आजम’ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। वैसे हम आरएसएस और भाजपा दोनों को यह बताना चाहते हैं कि यदि वे वास्तव में चाणक्य को आज की राजनीति का आदर्श पुरुष मानते हैं तो चाणक्य की उस नीति को ही उन्हें पढ़ना चाहिए कि शत्रु को जड़ से समाप्त करने में ही भलाई है। निश्चय ही अब वह समय आ गया है जब ओवैसी जैसी मानसिकता के लोगों के विरुद्ध आर एस एस और भाजपा का मौन टूटना चाहिए। ओवैसी जैसे लोगों के प्रति भाजपा और आरएसएस के अप्रत्याशित मौन को देखकर अब लोग यह पूछने लगे हैं कि क्या ओवैसी को भी जिन्नाह की राह दिखाई जा रही है ?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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