‘आशिकों के शिष्य’ राजनीतिज्ञों की संस्कारहीन् राजनीतिक कार्यशैली को देश कब तक झेलेगा ?
देश में जब भी चुनावी मौसम आता है तो हमारे नेताओं की जुबान फिसलने में देर नहीं लगती । वह एक दूसरे पर हमला करते हुए कितने असंवैधानिक और निम्न स्तर पर उतर आते हैं ,इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता । इतना ही नहीं ,महिलाओं को लेकर भी इनकी जुबान इस स्तर तक फिसल जाती है कि कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । ऋषियों के इस पवित्र देश में जहां नारियों का पूजन करने का आदेश और उपदेश किया जाता रहा है उसमें नेताओं की जुबान से निकलने वाले अभद्र शब्दों को देखकर लगता है कि यहां पर नारियों का पूजन नहीं अपितु उत्पीड़न होता है ।
अब मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने एक चुनावी सभा में पूर्व मंत्री इमरती देवी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। जिस पर राजनीतिक क्षेत्रों में हंगामा खड़ा हो गया। कमलनाथ जैसे नेता के यह शब्द रहे कि ”सुरेश राजे जी हमारे उम्मीदवार हैं। सरल स्वभाव के सीधे-साधे हैं। ये उसके जैसे नहीं हैं। क्या है उसका नाम ?” इस पर भीड़ में से आवाज आई इमरती देवी। तब कमलनाथ ने कहा कि ”मैं क्या उसका नाम लूं, आप तो मेरे से ज्यादा उसको पहचानते हैं। आपको तो मुझे पहले ही सावधान कर देना चाहिए था…ये क्या आइटम है….ये क्या आइटम है।”
महिला को ‘आइटम’ बताना किसी राजनीतिक व्यक्ति के लिए शोभनीय नहीं है , परंतु क्या करें जब राजनीति को ‘वेश्या’ कहा जाता हो तो राजनीति के बाजार में ‘वेश्या सोच’ के लोगों का पहुंचना भी कोई अप्रत्याशित बात नहीं ।
अब से पूर्व भी ऐसे कई अवसर आए हैं जब हमारे बड़े राजनेताओं की जुबान फिसली है और उन्होंने महिलाओं पर ऐसे शब्द बोल दिए हैं ,जिनसे लज्जा को भी लज्जा आ जाती है । वर्ष 2018 में राजस्थान में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए शरद यादव ने कहा था कि, ‘वसुंधरा को आराम दो, बहुत थक गई हैं। बहुत मोटी हो गई है, पहले पतली थी। हमारे मध्य प्रदेश की बेटी है।’ शरद यादव के इस बयान पर वसंधुरा राजे ने अपनी ओर से कड़ी आपत्ति व्यक्त की थी और कहा था कि वह ऐसा सुनकर अपने आप को अपमानित अनुभव कर रही हैं । इसके उपरांत भी शरद यादव ने अपने कहे हुए शब्दों पर कोई पश्चाताप व्यक्त नहीं किया था।
हमें वह मंजर भी याद है जब पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल ने जया बच्चन को ‘फिल्मों में नाचने वाली’ कह दिया था। महिला सम्मान पर उनकी ओर से किए गए इस प्रकार के प्रहार को देखकर उस समय उनकी समाचार पत्रों में तीखी आलोचना हुई थी ,परंतु इस सब के उपरांत भी वह कतई भी लज्जित नहीं हुए थे और ना ही उन्होंने अपने शब्दों को वापस लेने की कोई बात कही थी। यह उस समय की घटना है जब जब 2018 में जया बच्चन को समाजवादी पार्टी की ओर से राज्यसभा में फिर से नामांकित किया गया था।
2012 में एक टीवी बहस के दौरान कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने बीजेपी की स्मृति ईरानी को कहा था, “कल तक आप पैसे के लिए ठुमके लगा रही थीं और आज आप राजनीति सिखा रही हैं।”
अब प्रश्न यह है कि राजनीति में ऐसे लोग कैसे पहुंच जाते हैं जिनके बयानों को सुनकर भी दुख होता है। यदि इस पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि हमारा संसदीय लोकतंत्र हमारे लिए गले की फांस बन चुका है। इसमें लोगों के चरित्र की परख करने की कोई ना तो व्यवस्था है और ना ही आवश्यकता अनुभव की गई है । यहां पर गधे घोड़े सब एक ही भाव बिकते हैं । चरित्रहीन और हर दृष्टि से निकृष्ट लोग धनबल और ‘गन’बल के आधार पर अपना अस्तित्व वर्चस्व बनाने में सफल हो जाते हैं राजनीति उनकी चेरी बनकर रहती है इस प्रकार राजनीति ,राज्य सत्ता और राजकीय शक्ति का अपहरण वे लोग कर लेते हैं जिनका समाज सेवा और राष्ट्रसेवा से दूर- दूर तक का भी कोई संबंध नहीं होता।
हमारे यहां राजनीतिज्ञों या शासन में बैठे लोगों के लिए चरित्र बल को परम आवश्यक माना गया है। जबकि आज चरित्रबल को आवश्यक मानने की कोई आवश्यकता अनुभव नहीं की गई है । यही कारण है कि सत्ता सुंदरी का अपहरण करने के लिए चोर उचक्के बाजार में इधर-उधर ताक झांक करते ही रहते हैं । वैसे भी यह लोग उन मुगलों के प्रशंसक, चाटुकार ,अनुचर और अनुयायी हैं जो ‘मीना बाजार’ लगाने के शौकीन रहे हैं । ऐसे में गौहरबानो का सम्मान करने वाले शिवाजी का सम्मान करने की इनसे अपेक्षा नहीं की जा सकती । मुगलों का इतिहास पढ़ने, समझने ,मानने और उनके गीत गाने वालों से महिला शक्ति के प्रति अच्छे भावों और अच्छे शब्दों की आशा करना निरर्थक है।
अब समय आ गया है जब राजनीतिज्ञों के चरित्र सुधार के लिए भी कदम उठाए जाएं। इसके लिए यह आवश्यक होना चाहिए कि जो व्यक्ति जनप्रतिनिधि बन रहा है वह चारित्रिक रूप से बहुत ऊंचा होना चाहिए। उसके भीतर न केवल मानवीय दृष्टिकोण समाविष्ट हो अपितु वह व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में बहुत ही शुचितापूर्ण जीवन व्यतीत करने का अभ्यासी हो । उसके भीतर लोक मर्यादा का निर्वाह करने और लोक सेवा का उत्तम भाव विद्यमान होना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी को इस दिशा में निश्चय ही समय रहते आदर्श आचार संहिता लागू करनी चाहिए क्योंकि जिस देश के जनप्रतिनिधि उद्दंडी, उच्छृंखल और निकृष्ट होते हैं, वहां की प्रजा भी इन्हीं अवगुणों को प्राप्त हो जाती है। देश का सामाजिक परिवेश आज इसलिए बिगड़ रहा है क्योंकि यहां का राजनीतिक परिवेश बिगड़ चुका है। इस सत्य को स्वीकार कर सारी राजनीति को अपना चेहरा स्वयं शीशे में देखना चाहिए और उसे ऐसा बनाना चाहिए जिसे देखकर जनता उन पर पत्थर बरसाने के लिए विवश न हो।
वैदिक चिंतन में संस्कृति को राष्ट्र की आत्मा कहा जाता है। इस संस्कृति का निर्माण लोगों के सुसंस्कृत आचरण से होता है। यह सुसंस्कृत आचरण कोई एक दिन में नहीं आता ।इसके लिए वर्षों की साधना की आवश्यकता होती है। भारतीय राजनीतिज्ञों ने अपनी सुविधा के लिए राजनीति को कुछ इस प्रकार हल्का करके लेने का प्रयास किया है कि इसके लिए किसी प्रकार के सुसंस्कृत आचरण को सीखने की आवश्यकता नहीं है। बात साफ है कि जिस देश के राजनीतिज्ञों की सोच यह हो कि उन्हें किसी प्रकार के सुसंस्कृत आचरण को सीखने की आवश्यकता नहीं है, उनसे आप राष्ट्र निर्माण की अपेक्षा नहीं कर सकते। राष्ट्र निर्माण वही कर सकता है जो संस्कृति का उपासक होता है और भारत की संस्कृति महिलाओं का सम्मान करने की रही है। यदि इसके उपरांत भी भारत की राजनीति आज उन लोगों के हाथों में है जो चरित्रहीन ,पथभ्रष्ट ,निकृष्ट और प्रत्येक प्रकार से निन्दनीय आचरण का निष्पादन करने वाले हैं तो निश्चय ही हम राष्ट्र निर्माण नहीं बल्कि राष्ट्र का विध्वंस कर रहे हैं। महिलाओं के आशिक रहे गांधी नेहरू के शिष्य दिग्विजय से किसी दूसरे की स्त्री को ‘टंच माल’ कहकर हड़पने की ही अपेक्षा की जा सकती है ,वे देवी रूप में महिला का सम्मान कर ही नहीं कर सकते। पता नहीं भारतवर्ष कब तक ‘आशिकों के शिष्य’ राजनीतिज्ञों की संस्कारहीन राजनीतिक कार्यशैली को झेलने के लिए अभिशप्त रहेगा ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत