15 अगस्त सन 1947 ई. और भारत का विभाजन
महाभारत काल में भारत के अंदर 101 प्रसिद्घ क्षत्रिय राजवंश थे। इनमें से 86 राजा मगध नरेश जरासंध ने पराजित कर जेल में डाल रखे थे। इन 101 राजवंशों के इतने ही महाजनपद (प्रांत या राज्य क्षेत्र) थे। इससे महाभारत (विशाल भारत) का निर्माण होता था। ये राजा किसी एक राजा से होने वाले दूसरे राजा के युद्घ की भांति कौरव पांडवों के युद्घ में सम्मिलित नही हुए थे अपितु सभी राजा एक दूसरे के पक्ष में सम्मिलित होकर लड़े थे। इसीलिए यह महाभारत का युद्घ कहलाया। आज इस तथ्य से बहुत कम लोग भारत में परिचित हैं कि यह युद्घ महाभारत का युद्घ क्यों कहा जाता है? महाभारत काल में एक वंश का नाम तर्जिका आता है। इनके प्रांत का नाम कालतोयक था। गुप्तों के काल में कालतोयकों पर मणिन्धान्मजों का राज्य था। वर्तमान अफरीदी (मूलपाठ अपरन्ध्र) पठानों के प्रांत का नाम अपरांत या अपरीत था। आज का समरकंद चर्मखण्डिक कहलाता था।
सम्राट द्रहयु के वंशज गांधार ने गांधार राज्य की स्थापना की। जो कि मांधाता से कुछ काल पश्चात हुआ था। महाराज दशरथ के पुत्र और श्रीराम के अनुज भरत के पुत्रों तक्ष और पुष्कार की नगरियां इसी गांधार देश की सीमा में थीं।
सम्राट मांधाता के काल से ही भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा पर यवन लोगों का एक समुदाय था। कालांतर में ये लोग यहां से आगे बढ़े और यूनान व ग्रीस देश की स्थापना की। यूनान और ग्रीस से भारत के युगों पुराने संबंध हैं। उसकी संस्कृति की प्राचीनता भारत की देन है। अल्बरूनी के अनुसार वर्तमान मुल्तान वह स्थान है जहां कभी प्राचीन राजवंश सैवीर के शासक राज्य करते थे। इसी प्रकार वर्तमान स्यालकोट कभी शाकल नगरी थी। जिसे अल्बेरूनी ने सालकोट लिखा है। वर्तमान बंगाल कभी का अंग देश है जिस पर कर्ण ने शासन किया था। बंग इसी से लगता हुआ प्रांत था। कालांतर में यह बंग ही बंगाल के रूप में रूढ़ हो गया।
इससे आगे का प्रांत प्राग्ज्योतिष (वर्तमान असम) था। इसे कामरूप भी कहा जाता है। कभी इसी का नाम चीन भी था। जबकि वर्तमान चीन का नाम महाचीन था। इसी प्रकार कौटिल्य ने भी चीन शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए किया है। जो विशाल भारत को दर्शित करता है। इसमें अरूणाचल ही नही पूर्व के सभी सात प्रांत तथा चीन का भी बहुत बड़ा भाग सम्मिलित था। यहां तक कि कम्बोडिया तक यह प्रांत था। जबकि वर्तमान नेपाल भारत के विद्रोह नामक प्रांत से जाना जाता रहा है। इसकी राजधानी मिथिला थी। जिसे आजकल जनकपुर कहा जाता है, जो नेपाल में स्थित है। वैदेह जनक इसी नगरी के राजा था। जो कि सीता जी के पिता था।
कभी मगध के अधीन तिब्बत और नेपाल भी रहे थे। त्रिविष्टप तो तिब्बत का प्राचीन नाम है जहां से उतरकर आर्य लोग शेष भारत में फैले थे। यह प्रदेश ही प्राचीन काल में मानव सृष्टि का उदगम स्थल माना गया है। ईरान कभी आर्यन प्रदेश था तो अफगानिस्तान उपगण-स्थान के नाम से जाना जाता था। ईरान के राजा तो अपने नाम के साथ सदा आर्य मेहर (सूर्यवंशी आर्य) शब्द का प्रयोग करते रहे हैं। वहां की हवाई उड़ानों का नाम आर्यन ही है। वहां आज तक हमें यही पढ़ाया जाता है कि आर्य लोग भारत से यहां आए। जबकि भारत में इसका विपरीत पढ़ाया जाता है। इस उल्टे को यहां सीधा नही किया जा सकता। क्योंकि कुछ लोगों को आपत्ति होती है कि ऐसा करने से भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
यह प्राचीन भारत अपने स्वरूप में सन 1876 ई. तक लगभग ज्यों का त्यों बना रहा । उस समय तक अफगानिस्तार पाकिस्तान श्री लंका, वर्मा, नेपाल, तिब्बत, भूटान, बांगलादेश इत्यादि देशों का कोई अस्तित्व नही था। ये सारा भूभाग भारत कहा जाता था। अंग्रेजों ने 26 मई सन 1876 ई. को रूस की साम्राज्यवादी नीति से बचने के लिए भारत को प्रथम बार विभाजित किया और अफगानिस्तान नाम के एक बफर स्टेट की स्थापना कर उसे स्वतंत्र देश की मान्यता दी। तब भारत के देश नरेश इतने दुर्बल और राष्ट्र भक्ति से हीन हो चुके थे कि उन्होंने इस विभाजन को विभाजन ही नही माना। बड़े सहज भाव से इस पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी।
इतिहास में इस घटना को विभाजन के रूप में दर्शित नही किया गया। आज तक हम वही पढ़ रहे हैं जो अंग्रेजों ने इस विषय में लिख दिया था। इसके पश्चात सन 1904 ई में नेपाल को तथा सन 1906 ई में भूटान और सिक्किम को भारत से अलग किया गया। बाद में सिक्किम ने सन 1976 ई में भारत में अपना विलय कर लिया, जबकि नेपाल के विलय प्रस्ताव को रूस के समर्थन के बाद भी नेहरू जी ने सन 1955 ई में अस्वीकार कर दिया। अंग्रेज शासक अपने साम्राज्य की सुरक्षार्थ निहित स्वार्थों में देश केा बांटता गया और नए नये देश इसके मानचित्र में स्थापित करता गया और हमने कुछ नही किया।
सन 1914 ई में अंग्रेजों व चीन के मध्य एक समझौता हुआ जिसके अनुसार तिब्बत को एक बफर स्टेट की मान्यता दी गयी मैकमोहन रेखा खींचकर हिमालय को विभाजित करने का अतार्किक प्रयास किया गया जो भूगोल के नियमों के विरूद्घ था। सन 1911 ई में अंग्रेजों ने श्रीलंका और सन 1935 ई में बर्मा को अलग देश की मान्यता दे दी। अंग्रेज शासक राष्ट्र को एकता और अखण्डता को निमर्मता से रौंदता रहा और हम असहाय होकर उसे देखते रहे। इनसे दर्दनाक और मर्मान्तक स्थिति और क्या हो सकती है?
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।