इतिहास पर गांधीवाद की छाया अध्याय, 5 – क्या महात्मा गांधी वास्तव में महात्मा थे ?
गांधी जी के ‘सच’ को क्योंकि इतिहास ने छुपाने का ‘पाप’ किया है , इसलिए बहुत से लोग हैं जो गांधीजी के ‘सच’ पर लिखे गए किसी लेख पर बड़ी कठोर टिप्पणी किया करते हैं । इस विषय में उन्हें कुछ और अधिक जानकारी गांधीजी के विषय में लेनी चाहिए । गांधी जी अपने लिए स्वयं कहते थे कि ‘मैं महात्मा नहीं हूँ’ और वह महात्मा थे भी नहीं । क्योंकि महात्मा की जिस परिभाषा को हमारे वैदिक शास्त्रों में दिया गया है ,वह उनसे छू भी नहीं गई थी । वह महिलाओं के साथ नंगे सोने के आदी थे और यही कारण था कि उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी उनसे घोर घृणा करती थीं । जब वह गांधी की दुष्चरित्रता को प्रकट करने वाली इस प्रवृत्ति का विरोध करती थीं तो उन्हें कई बार अहिंसावादी गांधी की ‘हिंसा अर्थात मारपीट’ का भी शिकार होना पड़ा था ।
पिता की ऐसी अनुचित और अनैतिक प्रवृत्तियों को देखकर उनका एक बेटा मुसलमान बन गया था। बेटे के इस निर्णय से माँ कस्तूरबा गांधी को बहुत अधिक कष्ट हुआ था । उन्होंने अपने बेटे को फिर से हिन्दू बनाने के लिए आर्य समाज के नेताओं से संपर्क स्थापित किया । बाद में कस्तूरबा गांधी आर्य समाज के माध्यम से मुसलमान बने बेटे हीरा को पुनः हिन्दू बनाने में सफल हुई थीं। वर्तमान इतिहास के लिए यह एक गंभीर प्रश्न है कि गांधीजी के पुत्र ने मुसलमान बनने का निर्णय क्यों लिया और फिर उसके मुसलमान बनने के निर्णय से कस्तूरबा गांधी को कष्ट क्यों हुआ ? इसी प्रकार अंत में कस्तूरबा गांधी किस संगठन के सहयोग से उन्हें फिर से हिंदू बनाने में सफल हुईं ? दुर्भाग्य की बात है कि वर्तमान इतिहास ने इस विषय को अधिक गंभीरता से लिया ही नहीं है। उसने इसे अप्रासंगिक समझ कर छोड़ दिया है । जिससे ‘गांधी का सच’ सामने न आने पाए।
गांधीजी का ब्रह्मचर्य प्रयोग
देश के सबसे प्रतिष्ठित लाइब्रेरियन गिरिजा कुमार ने गहन अध्ययन और गांधी से जुड़े दस्तावेज़ों के रिसर्च के बाद 2006 में “ब्रह्मचर्य गांधी ऐंड हिज़ वीमेन असोसिएट्स” में डेढ़ दर्जन महिलाओं का ब्यौरा दिया है जो उनके ब्रह्मचर्य में सहयोगी थीं और गांधी के साथ निर्वस्त्र सोती-नहाती और उन्हें मसाज़ करती थीं. इनमें मनु, आभा गांधी, आभा की बहन बीना पटेल, सुशीला नायर, प्रभावती (जयप्रकाश नारायण की पत्नी), राजकुमारी अमृतकौर, बीवी अमुतुसलाम, लीलावती आसर, प्रेमाबहन कंटक, मिली ग्राहम पोलक, कंचन शाह, रेहाना तैयबजी सम्मिलित हैं। प्रभावती ने तो आश्रम में रहने के लिए पति जेपी को ही छोड़ दिया था । इससे जेपी का गांधी से बहुत अधिक विवाद हो गया था।
लगभग दो दशक तक महात्मा गांधी के व्यक्तिगत सहयोगी रहे निर्मल कुमार बोस ने अपनी अति चर्चित पुस्तक
“माई डेज़ विद गांधी” में राष्ट्रपिता का अपना संयम परखने के लिए आश्रम की महिलाओं के साथ निर्वस्त्र होकर सोने और मसाज़ करवाने का उल्लेख किया है । उनके इस उल्लेख से गांधी जी के वास्तविक जीवन का पता चलता है । वह अपने व्यक्तिगत जीवन में चरित्रहीनता की सभी सीमाओं को लांघ चुके थे ।
निर्मल बोस ने नोआखाली की एक विशेष घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है, “एक दिन सुबह-सुबह जब मैं गांधी के शयन कक्ष में पहुंचा तो देख रहा हूँ सुशीला नायर रो रही हैं और महात्मा दीवार में अपना सिर पटक रहे हैं। ” उसके बाद बोस गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग का खुला विरोध करने लगे । जब गांधी ने उनकी बात नहीं मानी तो बोस ने अपने आपको उनसे अलग कर लिया।
गांधी जी के उनकी महिला मित्रों से संबंधों को लेकर लोगों ने बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे हैं । जिन्हें कांग्रेसियों ने जानबूझकर लोगों के सामने नहीं आने दिया है ,लेकिन यह सारे ग्रंथ यदि बाजार में उपलब्ध हैं तो
लोगों को सच का सच के दृष्टिकोण से ही अनुशीलन परिशीलन करना चाहिए । गांधीजी के इस प्रकार के आचरण को भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों की तर्क तराजू पर भी तोलकर देखना चाहिए कि क्या वास्तव में उनकी ऐसी गतिविधियां भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुकूल थीं ? यदि नहीं तो फिर उन्हें महात्मा क्यों कहा जाए ?
गांधीजी का वाममार्ग
गांधी जी ने अपनी चरित्रहीनता को छुपाने के लिए इस पश्चिमी मान्यता को अपनाया कि व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन अलग है और सार्वजनिक जीवन अलग है । कहने का अभिप्राय है कि इस प्रकार के बचाव से उन्होंने अपने सच को लोगों के सामने नहीं आने दिया । लोगों ने भी ‘बाबा गांधी’ की बात को ‘ब्रह्मवाक्य’ मानकर स्वीकार कर लिया । गांधीजी के पश्चात उनके शिष्य नेहरू ने भी अपनी चरित्रहीनता को छुपाने के लिए ऐसा ही कार्य व्यवहार जारी रखा। धीरे धीरे हमारे नेताओं के भीतर गांधी जी का यह कुसंस्कार एक स्थाई भाव के रूप में व्याप्त हो गया। आज हम समाज पर गांधी – नेहरू के इस ‘काले सच’ की ‘काली छाया’ पड़ते हुए देख रहे हैं , जब देश के अधिकांश लोग इसी बात के समर्थक हो गए हैं कि ‘मैं शाम को सूर्यास्त के पश्चात सुबह सूर्य उदय होने तक क्या करता हूँ ? – यह मेरा व्यक्तिगत जीवन है। इसमें कोई झांके नहीं । सारे समाज की चाल उल्टी हो गई है। भीष्म पितामह के ब्रह्मचर्य और अनेकों ऋषियों के ज्ञान मार्ग पर चलने वाला भारत ‘वाममार्ग’ पर चल पड़ा है । इसे गांधीवाद की काली छाया न कहा जाए तो क्या कहेंगे ?
भीष्म पितामह का उदाहरण
हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह देश ब्रह्मचर्य के अश्लील प्रयोग करने वाले महात्मा गांधी का देश कभी नहीं हो सकता । हाँ , ब्रह्मचर्य के प्रयोग के संबंध में इसे उस भीष्म पितामह का देश अवश्य कहा जा सकता है , जिनके बारे में बताया जाता है कि एक दिन वह माता सत्यवती को उनके कक्ष में विशेष शास्त्रों का ज्ञान दे रहे थे । वह पढ़ते जा रहे थे और माता सत्यवती उसे सुनती जा रही थी । सुनते – सुनते माता को नींद आ गई । तब भीष्म ने वहाँ से प्रस्थान करना उचित समझा । पर उन्होंने देखा कि माता सत्यवती का एक पैर पलंग से कुछ नीचे लटका हुआ था । तब उन्होंने उस पैर को हाथ लगा कर ऊपर नहीं किया ,अपितु अपने सिर से सहारा देकर उस पैर को ससम्मान ऊपर कर दिया। इस दृश्य को कहीं से छुपकर चित्र वीर्य और विचित्रवीर्य भी देख रहे थे। उनके मन में यह संदेह था कि भीष्म अकेले में माता को कैसा ज्ञान कराते हैं ? जब उन्होंने अपने भाई भीष्म का माता सत्यवती के प्रति ऐसी श्रद्धा भावना देखी तो वह अपने आप पर बहुत लज्जित हुए। एक हमारे वह ‘राष्ट्रपिता’ भीष्म पितामह थे तो एक हमारा गांधी राष्ट्रपिता है, जो अकेले में निर्वस्त्र महिलाओं के साथ सोता था और उसके बाद क्या करता था ? यह सब समझा जा सकता है।
यह देश ब्रह्मचर्य की साधना का देश है ना कि ब्रह्मचर्य के मूर्खतापूर्ण प्रयोगों का देश , जिसमें परस्त्रियों का चीर हरण किया जाए और इसके उपरान्त भी अपने आपको महात्मा घोषित किया जाए।
महर्षि दयानंद का ब्रह्मचर्य
एक सभा में स्वामी दयानन्द जी का व्याख्यान चल रहा था। वह ब्रह्मचर्य विषय पर अपना व्याख्यान दे रहे थे और लोगों को इसका महत्व समझा रहे थे। वह लोगों को बता रहे थे कि ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति में न केवल शारीरिक अपितु बौद्धिक बल की भी वृद्धि होती है।
सभा में उपस्थित लोग स्वामी दयानंद सरस्वती की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे। सभा समाप्त हुई तो सब उठकर निकलने लगे। स्वामीजी मंच से उतरकर जैसे ही आगे बढ़े एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया। वह अपनी बैलगाड़ी लेकर आया था। वह स्वामीजी के सम्मुख आकर कहने लगा, ‘स्वामी जी! आप ब्रह्मचर्य विषय पर बड़े-बड़े व्याख्यान देते हैं। आपकी बातें प्रभावित भी करती हैं। आप ब्रह्मचारी हैं और मैं ठहरा पारिवारिक जीवन जीने वाला व्यक्ति। ऐसे में हमारी कोई तुलना ही नहीं। फिर भी मुझे आपमें और मुझमें कोई अंतर दिखाई नहीं दे रहा।’
बैलगाड़ी वाले व्यक्ति की बातें सुनकर स्वामी जी केवल मुस्करा दिए। उनसे कोई जवाब न पाकर वह व्यक्ति आगे बढ़ गया। बाहर निकल कर वह अपनी बैलगाड़ी पर बैठा और उसे हांकने लगा। लेकिन यह क्या? गाड़ी टस से मस नहीं हो रही थी। दोनों बैल भरपूर जोर लगा रहे थे, किंतु गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही थी। वह व्यक्ति परेशान हो गया। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने देखा- स्वामी जी बैलगाड़ी का पहिया पकड़े हुए हैं। उसे अपनी भूल और ब्रह्मचर्य की शक्ति का आभास हो चुका था। वह बैलगाड़ी से नीचे उतरा और स्वामी जी के चरणों पर गिर पड़ा।
सचमुच हमारे देश के इतिहास में और पाठ्य पुस्तकों में भीष्म पितामह और स्वामी दयानंद जी महाराज जैसे ब्रह्मचर्य साधकों की ब्रह्मचर्य साधना को ही बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए ना कि गांधीजी के अश्लील ब्रह्मचर्य प्रयोगों को बताकर बच्चों को उन्हीं जैसे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाए। इससे राष्ट्र का विनाश और ब्रह्मचर्य की शक्ति का सत्यानाश हो रहा है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत