दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों की सामने आती सच्चाई : काफिरों का बहाना होगा खून, दो -चार पुलिसवालों को भी मारना होगा’

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार

जैसे-जैसे दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों की जाँच आगे बढ़ रही है, एक के बाद एक नए षड़यंत्र का खुलासा हो रहा है। जब दिल्ली में चले रहे थे, तब “गंगा-जमुनी तहजीब” और “हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई” के पाखंडी नारों का असली रूप शीर्षक “सेकुलरिज्म तब तक, जब तक भारत इस्लामिक नहीं बन जाता” में जो लिखा था कि हिन्दुओं की उपस्थिति में इन हिन्दू विरोधियों के बोल कुछ और होते थे और हिन्दुओं की गैर-हाजिरी में भारत को इस्लामिक बनाने पर चर्चा होती थी। जो अब पकडे गए आरोपी अपने-अपने बयानों में व्यक्त कर रहे हैं। अब इसे दोगलापन न कहा जाए तो और क्या नाम दिया जाए? “भाईचारे की बात करेंगे, सड़कों पर खून बहाएंगे” – गजब के शांतिप्रिय लोग । ये हैं गरीब, मजलूम और बिकाऊ। सरकार और कोर्ट को ऐसे बहशी लोगों पर सख्ती से पेश आना चाहिए। ये लोग दया के पात्र नहीं हो सकते, जो समस्त मुस्लिम समाज को कलंकित कर रहे हैं।
जब पैसे के लालच में महिलाएं अपने दूध पीते बच्चों को लेकर कड़कती ठंठ में बैठ रही थी, आम नागरिक के मन में केंद्र सरकार के प्रति ग्लानि होनी प्रारम्भ होने लगी थी, कि इस पाखंडी जमावड़े का जब फ्री में नाश्ता, कोरमा, बिरयानी और साथ में रूपए की बात सामने पर लोग झूठ समझते थे। अब वह सच्चाई भी सामने आ गयी।
दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों के मामले में एक हैरान करने वाले ख़बर सामने आई है। दिल्ली दंगों के संबंध में कुछ ऐसे सबूत मिले हैं, जिनमें बेहद साफ़ तौर पर कहा जा रहा है – “सड़कों पर उतरेंगे।” यानी एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन की आड़ में दंगे और हिंसा भड़काई गई।

इन दंगों को अंजाम देने के लिए मीटिंग भी हुई थी और उस मीटिंग में शामिल हुए एक चश्मदीद ने कई हैरान कर देने वाली बातें कही हैं। चश्मदीद की बात इस ओर इशारा करते हैं कि दिल्ली दंगे पूरी तरह सुनियोजित थे।

दिल्ली दंगों के मामले में एक चश्मदीद ने मजिस्ट्रेट के सामने गवाही दी है। उसने गवाही में कहा, “वो कहते थे कि हमें सड़कों पर उतरना पड़ेगा और खून बहाना पड़ेगा, प्रदर्शन से काम नहीं चलेगा। पूरे प्रदर्शन के दौरान भाईचारे, सहिष्णुता और मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार की बात करते हुए वो इसकी आड़ में जनजीवन ठप्प करना चाहते थे। हर योजना की तैयारी कर ली गई थी, जिसके परिणामस्वरूप भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी। ऐसी भीड़ जो पूरी तरह तैयार थी, और उनके पास हिंसा भड़काने के लिए हथियार तक मौजूद थे।”

मतलब लिबरल मीडिया ने दिल्ली दंगों को जो स्वतःस्फूर्त बताया, वो एक छलावा मात्र था। इस हिंसा की योजना बहुत पहले ही तैयार कर ली गई थी। हर एक दिन, हर एक कदम की प्लानिंग की गई थी। किसे मारना है, यह तक तय था। पुलिस वालों की हत्या तक करनी है, यह भी तय था और इसे अंजाम भी दिया गया।

सड़क जाम करना है। सरकार को झुकाना है। प्रशासन को उसकी औकात बतानी है। – यह सब ऊपरी बातें थीं, जहाँ भीड़ होती थी, वहाँ की बातें थीं, जहाँ मीडिया या वीडियो लिए जाते थे, वहाँ की बातें थीं। असली बात तो इनकी कोर मीटिंग में होती थी – काफिरों को मारने वाली बात। दिल्ली पुलिस को यह बात भी उस गवाह ने ही बताई है।

इसके अलावा चश्मदीद ने कहा, “दंगे भड़काने की योजना बनाने के दौरान यहाँ तक बात हुई कि हथियार जमा करने होंगे। सिर्फ बैठे रहने से और इंतज़ार करने से कुछ हासिल नहीं होगा। इस क़ानून (सीएए और एनआरसी) को रोकने के लिए सड़कों पर खून भी बहाना पड़ा, तो वह भी करेंगे।”

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