आज का चिंतन-02/11/2013
असली सौंदर्य चाहें तो
चित्त की शुद्धता पर ध्यान दें
– डॉ. दीपक आचार्य
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आज रूप चौदस है यानि की रूप-रंग निखारने का वार्षिक पर्व। दुनिया में आजकल हर कोई सबसे ज्यादा ध्यान ब्यूटी पर देने लगा है। इसके लिए अब खूब सारे आविष्कारों और प्रयोगों के साथ अनगिनत संसाधनों का भण्डार उपलब्ध है।
जमाने की मांग के अनुरूप ब्यूटी निखारने वाले पॉर्लरों का धंधा भी अव्वल दर्जे पर है। यों यह पर्व साल भर में एकाध बार ही आता है पर अपने यहाँ लोगों में हर सप्ताह, और कुछेक के लिए तो हर दो-तीन दिन में ही इस पर्व का करिश्मा किसी न किसी रूप में दृष्टिगोचर होता है।
हर कोई चाहता है कि वह आकर्षक व्यक्तित्व का धनी हो, देखने वाले लोग उसकी तारीफ करें, उसके शारीरिक सौष्ठव और चेहरे-मोहरे की सुन्दरता देखें और सराहें। औरों के लिए सजने-सँवरने और कृत्रिमता के साथ अपने आपको पेश करने का जो शगल पिछले दो-तीन दशकों में हमारे सामने आ चला है उसने ब्यूटी इण्डस्ट्री को महानगरों से लेकर गांव-ढांणियों और सरहदों तक पसरा दिया है।
हर कोई आजकल दूसरे सारे कामों को छोड़कर ब्यूटी पाने के लिए जी-तोड़ कोशिशों में जुटा हुआ है। सभी को लगता है कि जैसे अच्छा दिखना और सज-सँवर कर रहना ही जिन्दगी का अहम लक्ष्य है और इसके लिए जो कुछ करना पड़े, किया जाना चाहिए।
ईश्वरप्रदत्त ओज, अपनी क्षमताओं और नैसर्गिक सौंदर्य से अनजान अथवा अपने हाथों ही सौंदर्य पर कुल्हाड़ी चला रहे लोगाें की स्थिति यह हो गई है कि वे मौलिक सौंदर्य और प्राकृतिक संसाधनों की बजाय कृत्रिमता के आडम्बरों में रमने लगे हैं और जाने किस-किस किस्म के रसायनों और वज्र्य वस्तुओं से बने सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल करने लगे हैं। सौंदर्य का सीधा संबंध मन-मस्तिष्क की शुचिता, सकारात्मक चिंतन, चित्त की शुद्धता से लेकर अपने खान-पान, शुद्ध परिवेश से भी है।
अव्वल बात यह है कि प्रकृति के जिन पाँच तत्वों से हमारी रचना हुई, उन सभी तत्वों का पूरी शुद्धता से हमारे शरीर में रोजाना पुनर्भरण होने की प्रक्रिया अनवरत रूप से चलती रहनी चाहिए, तभी हमारे मन और तन शुद्ध रह सकते हैं।
शरीर की चमक-दमक और चेहरे का ओज निर्भर करता है हमारे चित्त की शुद्धता और मनः सौंदर्य पर। जिस अनुपात में हमारा चित्त शुद्ध और साफ-सुथरा होगा, उसी अनुपात में हमारा शरीर स्वस्थ और मस्त रहेगा तथा हमारे चेहरे पर उस शुद्धि का तेज-ओज सब कुछ मुँह बोलता रहेगा।
चेहरे का सौंदर्य और शरीर का सौंदर्य तभी संतुलित और ओजस्वी रह सकता है जब हमारा मन-मस्तिष्क शुद्ध विचारोें और साफ-सुथरी जिन्दगी का पर्याय बने। चित्त अशुद्ध होने, नकारात्मक चिंतन, व्यसनों, अनियमित जीवनचर्या होने तथा खान-पान दूषित होने पर न तो हमारा चेहरा चमक दे सकता है, न हमारा शरीर स्वस्थ रह सकता है।
शरीर पर बाहरी रसायनों और कॉस्मेटिक्स का लेप एक निश्चित अवधि तक ही सौंदर्य का मिथ्याभास और मिथ्याभिमान करा सकता है, इसके बाद का सच कुछ और ही प्रकार का घिनौना होता है। जिन तत्वों से शरीर बना है उन पांचों तत्वों के प्रति भरपूर आत्मीयता बनाए रखें, इनकी प्राप्ति के लिए प्रयास करें और किसी भी एक तत्व से परहेज न रखें, जैसा कि आजकल लोग सूरज से अपने आपको बचाने के लिए पूरे शरीर को बिना कारण के ढंक कर चलने लगे हैं।
असली सौंदर्य का राज यही है कि प्रकृति के करीब रहें, पंच तत्वों का आदर-सम्मान व आवाहन करें और अपने दिल और दिमाग दोनों को ही शुद्ध तथा साफ-सुथरा एवं दिव्य बनाए रखें। ऎसा हो जाने पर हमें न किसी ब्यूटी पॉर्लर में जाने की जरूरत होती है न औरों के दिखाने भर के लिए महंगे संसाधनों से कृत्रिम और अस्थायी सौंदर्य को पाने की। जो भीतर से जितना अधिक शुद्ध और पवित्र है वह उतना ही सौंदर्यशाली एवं ओजस्वी अपने आप रहता है।
सभी को रूप चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएँ …