भारतीय क्षत्रिय धर्म और अहिंसा ( है बलिदान इतिहास हमारा ) अध्याय- 13 ( क ) हिंदू वीरों ने ही किया था शेरशाह सूरी का अंत
जिनका महा ऋणी है यह देश
1530 ई0 में बाबर की मृत्यु हो गई तो उसके पश्चात उसका बेटा हुमायूँ गद्दी पर बैठा । हुमायूँ के साथ भी हिन्दुओं का परम्परागत दूरी बनाए रखने का संकल्प यथावत बना रहा । हुमायूँ अपने शासनकाल में कभी स्थिर रहकर शासन नहीं कर पाया । उसे शेरशाह सूरी ने भारत छोड़कर भागने के लिए विवश कर दिया था। देश , धर्म और संस्कृति के इस परम शत्रु के प्रति हिन्दू राजाओं के लिए यही उचित था कि वे इसे भागने देते। परन्तु जोधपुर के राजा मालदेव से जब भागते हुए हुमायूँ ने शरण लेने की प्रार्थना की तो राजा ‘सद्गुण विकृति’ का शिकार हो गया और उसने शरणागत को शरण देना धर्मानुकूल मान लिया । यदि राजा ऐसा न करके हुमायूँ को भारत का शत्रु मानते हुए भागना देता तो इतिहास ही दूसरा होता। यद्यपि हुमायूँ स्वयं यह सोच कर भाग चला कि कहीं यह राजा शेरशाह सूरी को उसका पता न बता दे ? इसके उपरान्त राजा मालदेव जैसी ही गलती अमरकोट के शासक राणा प्रसाद ने भी की , उसने भी इस मुगल को शरण दे दी।
राजा मालदेव के कुछ ऐसे हिन्दू योद्धा हुमायूँ से घृणा करते थे जो उसके पिता के द्वारा भारतवर्ष में हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों से खिन्न थे। इन शूरवीरों ने राजा मालदेव के पास से निकले हुमायूँ का पीछा करना आरम्भ कर दिया । ‘तबकात ए अकबरी’ के लेखक ने लिखा है :- “उसके पीछे पड़े हिन्दू गुप्तचर अचानक उसके हाथ पड़ गए और उसके सामने लाए गए । सही तथ्यों का पता लगाने के लिए आदेश दिया गया कि उनमें से एक को मृत्युदण्ड दिया जाए । दोनों बन्दी छूट गए तथा दो समीप खड़े हुए लोगों से चाकू तथा कटार लेकर उन लोगों पर टूट पड़े । उन्होंने 17 स्त्री पुरुष और घोड़ों की हत्या कर दी । तब कहीं वे पकड़ में आए और उनकी हत्या कर दी गई। सम्राट का घोड़ा भी मार दिया गया था । उसके पास दूसरा घोड़ा भी नहीं था।”
राजा पूरणमल की वीरता
जब हुमायूँ को सत्ता से हटाकर शेरशाह सूरी भारत का बादशाह बना तो रायसीन के हिन्दू शासक पूरणमल पर उसने आक्रमण किया । यह घटना 1543 ई0 की है । पूरणमल एक साहसी हिन्दू शासक था । उसने बड़ी वीरता के साथ शेरशाह सूरी की सेना का सामना किया । जब हुमायूँ ने देखा कि यह हिन्दू राजा और उसके वीर योद्धा उसको परास्त कर देंगे तो उसने चालाकी से काम लेते हुए उनके सामने प्रस्ताव रख दिया कि यदि वे उससे सन्धि कर लें तो वह उनसे कभी कुछ नहीं कहेगा । उन हिन्दू योद्धाओं और उनके राजा पूरनमल को इस झूठे बादशाह की बात पर विश्वास हो गया । अगले दिन जब शस्त्रविहीन हिन्दू किले से बाहर आए तो इस क्रूर बादशाह ने उन सब का नरसंहार करा दिया। यह सारे योद्धा असमय ही स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर अपने प्राण न्यौछावर कर गए।
अब्बास खान शेरवानी नामक लेखक ने इस विषय में लिखा है :- “अफगान ने चारों ओर से आक्रमण कर दिया और हिन्दूओं का वध करना आरम्भ कर दिया। पूरणमल और उसके साथी घबराई हुई भेड़ों और सूअरों की भांति वीरता और युद्ध कौशल दिखाने में सर्वथा असफल रहे और एक आंख के इशारे मात्र से ही कुछ ही समय में सब के सब ढेर हो गए। उनकी पत्नियां तथा परिवार बंदी बना लिए गए । पूरणमल की एक पुत्री और उसके बड़े भाई के तीन पुत्रों को जीवित ले जाया गया और शेष को मार दिया गया। शेरशाह ने पूरणमल की पुत्री को किसी घुमक्कड़ बाजीगर को दे दिया जो उसे बाजार में नचा सके और लड़कों को बधिया , खस्सी करा दिया। जिससे कि हिन्दुओं का वंश ना चल सके ।” संदर्भ : तारीखे शेरशाही , इलियट एंड डाउसन , खंड 4 , पेज – 403)
इसके बाद शेरशाह ने अपने शासनकाल में हिन्दुओं का शोषण व उत्पीड़न करने के लिए अपने घुड़सवारों को आदेश दिया : – “हिन्दू गांवों की जांच पड़ताल करें। उन्हें मार्ग में जो पुरुष मिलें , उनका वध कर दें ,उनकी स्त्रियों और बच्चों को बन्दी बना लें , पशुओं को भगा दें, किसी को भी खेती न करने दें । पहले से बोई फसलों को नष्ट कर दें और किसी को भी पड़ोस के भागों से कुछ भी न लाने दें ।” ( संदर्भ : तारीख – ए- शेरशाही , अब्बास खान शेरवानी , इलियट एंड डाउसन , खंड चार , पेज – 316 )
एक मुट्ठी बाजरे के लिए – – – –
जोधपुर नरेश मालदेव यद्यपि पहले हुमायूँ को शरण देने की गलती कर चुके थे। पर अब जब शेरशाह सूरी ने उनके राज्य पर आक्रमण किया तो उन्होंने इस मुस्लिम बादशाह का जमकर सामना किया । भीषण संग्राम में शेरशाह को बहुत भारी क्षति उठानी पड़ी। एक समय ऐसा भी आया जब शेरशाह को अपने प्राणों का संकट उत्पन्न हो गया । वह जीत तो गया परन्तु जीत कर भी बहुत अधिक निराश था । उसने कहा था :- “एक मुट्ठी बाजरे के लिए वह दिल्ली की सल्तनत से हाथ धो सकता था ।” उसके इसी कथन से अनुमान लगाया जा सकता है कि राजा मालदेव ने उसे कितना अधिक संकट में डाल दिया था ?
इस युद्ध के बारे में पीएन ओक ने अपनी पुस्तक ‘भारत में मुस्लिम सुल्तान’ , भाग – 2 के पृष्ठ 81 -82 पर लिखा है :- ” शेरशाह बहुत दिनों से रायसीन के हिन्दू सम्राट पूरणमल की सुग्रहिणी रत्नावली का सतीत्व भ्रष्ट करना चाहता था । अतः शेरशाह ने (अपने इस प्रयोजन की सिद्धि के लिए ) रायसीन को घेर लिया । पूरणमल की वीर हिन्दू सेना ने उन घेराव करने वाले अफगान लुटेरों को न केवल हराया बल्कि उनके गले काट डाले । जिससे वह बहुत भयभीत हो गए । दुर्ग पर अधिकार करने तथा हिन्दू दुर्ग रक्षकों को पराजित न कर सकने पर शेरशाह ने वही पुरानी म्लेच्छ युक्तियां अपनाईं – हिन्दू जनता को कष्ट देना , उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार करना , उनकी फसल तथा घरों को जला देना और बच्चों को बहुत कष्ट देना।”
इस प्रकार के आन्दोलनों से पता चलता है कि शेरशाह सूरी के समय में भी अनेकों अमानवीय कष्टों को सहन करने के उपरांत भी हमारे हिन्दू योद्धा अपनी स्वतन्त्रता के आन्दोलन को निरन्तर गतिशील बनाए रहे।
हिन्दू वीरों ने ही किया था शेरशाह का अन्त
इस प्रकार के अमानवीय अत्याचारों से दु:खी हिन्दू युवक किसी ऐसे अवसर की खोज में लगे रहते थे ,जब वे किसी भी प्रकार इस अत्याचारी बादशाह को समाप्त करने में सफल हो जाएं । अन्त में एक दिन ऐसा अवसर आ ही गया । जब शेरशाह निश्चिंत होकर गोले फेंकते अपने सैनिकों को देख रहा था, तभी दूसरी ओर से किसी हिन्दू वीर का फेंका हुआ गोला आया और शेरशाह के गोलों के ढेर पर आकर फट गया । इससे वहाँ बारूद में आग लग गई । भयंकर विस्फोट हुआ । इस विस्फोट में शेरशाह भयंकर रूप से झुलस गया। वह किसी प्रकार अपने शिविर तक तो पहुँच गया , परन्तु बच नहीं पाया। इस देशभक्ति भरे वीरतापूर्ण कृत्य को करने वाले हिन्दू योद्धाओं को इतिहास में स्थान नहीं दिया गया। उनकी वीरता धर्मनिरपेक्षता की भेंट चढ गई।
जब बाबर ने राम मन्दिर तोड़ दिया तो उस समय तक अनेकों ऐसे धर्मान्तरित मुसलमान थे जो पहले हिन्दू रहे थे । उन सबकी ‘घर वापसी’ का एक विशाल यज्ञ ( 1528 से 1550 ई0 के कालखंड में) राव लूणकरण भाटी ने रचा था । ‘जैसलमेर राज्य का इतिहास’ के लेखक मांगीलाल मयंक ने अपनी पुस्तक में इस तथ्य का उल्लेख किया है । सल्तनत काल में और मुगल बाबर के द्वारा जिन लोगों को जबरन हिन्दू से मुसलमान बना दिया गया था , उनको फिर वैदिक धर्म में लौटाने के लिए इस महान देशप्रेमी , राष्ट्रप्रेमी व संस्कृति प्रेमी राव लूणकरण भाटी ने ‘घर वापसी’ का आयोजन कर देश की अप्रतिम सेवा की थी।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष : इतिहास भारतीय इतिहास पुनरलेखन समिति