आर्य वेद वसु यादव पत्रकार को एसपी सम्भल द्वारा फर्जी केस में फंसाए जाने का आरोप , शासन प्रशासन हुआ मौन , योगी शासन में पत्रकारिता के आए संकट के दिन
संभल। पत्रकारिता के लिए सचमुच यह एक बुरी खबर है कि योगी सरकार में पत्रकारों का उत्पीड़न निरंतर जारी है ब्यूरोक्रेसी का स्वर्णिम काल चल रहा है जहां पत्रकारिता का गला घोंटने के लिए ब्यूरोक्रेट्स किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । इसी का उदाहरण है एसपी सम्भल का दुराचरण। जिन्होंने स्वच्छ और निर्भीक पत्रकारिता करने वाले आर्य वेद वसु यादव को जबरन और गलत ढंग से अभी हाल ही में हुए एक हत्याकांड में अभियुक्त बनवाया है।
इस संबंध में जानकारी देते हुए पत्रकार की माता श्रीमती वीरावती आर्या द्वारा बताया गया कि उसके पति श्री दयाशंकर आर्य यादव गांव – भीकमपुर जैनी के गांव प्रधान रहे हैं , ग्रामीण उत्थान ,भारतीय संस्कृति, और राष्ट्रसेवा के कार्यों में अग्रणी रहे हैं । करीब एक माह से फालिश रोग से पीडित हैं । बड़ा पुत्र वेदवसु यादव अपने पिता के कार्यो में सहयोग करता है और पुलिस व प्रशासन के भ्रष्टाचार को भी अपनी पत्रकारिता के माध्यम से खोलता रहता है । इसके अतिरिक्त जनता को न्याय मिले इसके लिए भी प्रशासनिक अधिकारियों को मनमानी नहीं करने देता है।
श्रीमती आर्या का कहना है कि के गाँव व जाति और राजनीतिक लोग परिवार की अच्छी छवि को मिटाने की कुछ माह पहले धमकी दी गई थी दी । उसी का परिणाम हुआ कि जब विगत 1 जून को गाँव भीकमपुर जैनी के धर्मपाल पुत्र नत्थू को अज्ञात व्यक्ति ने चोटिल कर दिया और जब बाद में विलम्ब से मिले उपचार के कारण उसकी मृत्यु हो गई तो इस केस में प्रार्थिया के पति व पुत्र को फर्जी रूप से अमित के रूप में नामित करा दिया गया , जिसमें एसपी सम्भल का विशेष रूप से सहयोग रहा । जबकि श्री दयाशंकर आर्य पैरालाइसिस के कारण चल फिर भी नहीं सकते और वेदवसु आर्य उस घटना के समय गांव उपरोक्त में भी नहीं था।
श्रीमती वीरावती का आरोप है कि रंजिशन प्रार्थिया के पति और पुत्र व अन्य लोगों को नामित करते हुए थाना- रजपुरा , जिला -संभल (उ०प्र०) पर मुकदमा अपराध संख्या 288 सन् 2020 दर्ज करा दिया है।
घटना के दिनांक व समय पर प्रार्थिया के पति अपने घर में फालिश की बीमारी से पीड़ित होने पर चारपाई पर थे। पुत्र वेद वसु सगाई समारोह में उपस्थित था।.
गॉव-क्षेत्र के रंजिश मानने वाले लोगों ने प्रार्थिया के पुत्र वेदवसु को थर्ड डिग्री ट्रोचर कराकर गांव-समाज में बेईज्जत कराना चाहते हैं।
इलाका पुलिस और उच्चअधिकारियों पर कुछ राजनीतिक लोगों का दवाब- प्रभाव है। पुलिस एसपी के इस आचरण के चलते पूरा शासन प्रशासन मौन धारण किए हुए हैं। कोई भी इस घटना को सही ढंग से जांच कराने को तैयार नहीं है। जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके पत्रकारों पर आए दिन पुलिस प्रशासन के अत्याचार होते रहते हैं। एक-एक करके कई पत्रकारों के साथ ज्यादती की गई है परंतु सब चुप हो जाते हैं । ऐसा नहीं है कि इस पुलिस अधिकारी की जांच जानकारी उच्चाधिकारियों और शासन में बैठे लोगों को ना हो , बार-बार की शिकायतों के उपरांत हुए भी इस अधिकारी का कोई बाल बांका नहीं हुआ है। यह खुलेआम रिश्वत लेता है और लोगों को झूठे मामलों में फंसाकर मोटी रिश्वत लेकर छोड़ने का आदि रहा है।
ज्ञात रहे कि वेदवसु अपनी जान बचाने और निर्दोष होने के साक्ष्य हेतु करीब 34 शपथ पत्र प्रस्तुत किये गये है , किन्तु विवेचक एसपी श्री यमुना प्रसाद के दवाब में निष्पक्ष जांच न करके और कानून का उलघंन करके मनमानी कर रहे है । पुलिस घर पर जाकर औरतों के साथ अभद्र व्यवहार करती है। सामान की तोड़फोड़ करना और साथ ही लूटपाट कर पैसे छीन लेना तो वैसे भी पुलिस के लिए जगजाहिर है इस मामले में भी यही हो रहा है। इस संबंध में कुछ और जानकारी हम अलग से प्रस्तुत करेंगे।
कुछ भी हो अभी तो एक ही बात स्पष्ट हो रही है कि हम इस समय स्वतंत्र भारत में ना जीकर मुगलों के ही काल में जी रहे हैं । जहां पर प्रशासन अपनी मनमानी करते हुए आम आदमी पर झूठे इल्जाम लगाकर उन्हें झूठे केस में फंसा कर फांसी की ओर ले जाता है। देखते हैं मुख्यमंत्री योगी कब इस ओर देखते हैं और कब पुलिस प्रशासन के उच्चाधिकारी एक न्यायपूर्ण निर्णय इस प्रकरण में लेते हैं ? यदि पत्रकारिता का गला घोटने वाले ऐसे अधिकारियों को योगीराज में प्रोत्साहन मिलता रहा तो निश्चय ही पत्रकारिता के लिए समझ लीजिए कि काले दिन आ चुके हैं।