चीन का अतिक्रमण और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
मनोज कुमार मिश्र
भारतीय समाचार पत्र चीन के सीमा पर अतिक्रमण को लेकर संवादों से भरे पड़े हैं। ये अतिक्रमण का क्षेत्र लद्दाख और सिक्किम मे बताया जा रहा है। भारत के जनमानस मे कई तरह की शंकाओं के बीज बोने का प्रयास हो रहा है। ऐसे वक्त में जब भारतीय मीडिया को सरकार के साथ होना चाहिए और विपक्ष को एक सुर में सरकार को समर्थन देना चाहिए, द वायर जैसे डिजिटल अखबार और राहुल गांधी जैसे विपक्ष के नेता चीनी बयानबाजी को लेकर आगे बढ़ा रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि भारत अपनी दूरंदेशी चीन नीति के आधार पर चीनी सीमाओं पर सड़कों का जाल बिछा रहा है। जब भारत ने पे पगोंग त्से क्षेत्र में एक सामरिक महत्व की सड़क बनानी शुरू की। यह चीन को नागवार गुजर रहा है।अपनी सामरिक ताकत का प्रदर्शन करते हुए उसने अपनी सीमा पर भारी वाहन और सैनिक भरने शुरू किए । भारत ने भी जबाब में अपनी सैनिक टुकड़ी को चीनी सेना को अतिक्रमण करने से रोकने के लिए भेजा। शुरू मे तो दोनों सेनाओं के सैनिक, पहला प्रहार हमारा नहीं, कि मुद्रा में लात घूंसों से ज़ोर आजमाइश करते नज़र आए यहाँ तक कि चीनी सेना के एक लेफ्टिनेंट कि भारतीय सैनिक ने नाक भी तोड़ दी पर बाद में मसला गंभीर हो गया तब दोनों ओर के सैनिक अधिकारियों कि बैठक चीन की सीमा मे हुई और चीन अपने सैनिक और साजो समान अपनी सीमा में 2.5 KM पीछे ले जाने को राजी हुआ। ज्ञात हो कि सन 2017 में भी इसी तरह की घुसपैठ की कोशिश की थी जिसे भारतीय सेना और सरकार ने नाकाम कर दिया था।
इतनी बड़ी सैनिक हलचल हो और भारतीय राजनेता चुप चाप बैठे रहें ये हो नहीं सकता था अतः कल ही राहुल गांधी ने सरकार और इसके रक्षा मंत्री को घेरते हुए ट्वीट किया कि क्या चीनी भारतीय क्षेत्र मे घुस आए हैं। इस ट्वीट का जबाब रक्षा मंत्री ने तो नहीं लेकिन लद्दाख के भाजपा संसद जमयांग नंग्याल ने जरूर दिया। उन्होने भी ट्वीट करके राहुल गांधी को बताया कि किस प्रकार यूपीए के शासन के दौरान चीनियों ने भारतीय क्षेत्र को हड़प लिया और मौनी बाबा रिमोट के इशारे पर इस पर कुछ भी कहने से बचते रहे। फिर जब बात चीनी अतिक्रमण कि आई तो सिर्फ 2020 तक बात कैसे रुकती। नंग्याल जी ने बताया कि किस प्रकार 1962 में नेहरू के समय 37244 किमी का इलाका भारत अकसाई चिन के रूप मे चीन के हाथों गंवा बैठा। जब 2008 में यूपीए-1 का शासन था उस समय भी भारत चुकुर क्षेत्र में 250 किमी का भूभाग तिया पंगनाक और चाबजी घाटी में गंवा बैठा था। 2008 मे ही जरा वार्ट किला चीनियों ने नष्ट कर दिया था जो भारतीय सीमा मे था। इसी जगह पर चीन ने अपना चौकी बना लिया था। पुनः इसी क्षेत्र में सन 2012 मे यूपीए 2 के दौरान भारत ने चीन की न्यू डिमजोक कॉलोनी को स्वीकार कर लिया जिसमे चीन द्वारा बनाए 13 कंक्रीट के घर भी थे। 2008-2009 मे ही भारत अपनी सीमा में दूम चेलेय नाम के महत्वपूर्ण इलाके को, जो डेंगूटी और डेमजेक के बीच था और प्राचीन भारत का व्यापार केंद्र था, खो चुका है। अब जाकर भारत अपने क्षेत्र की रक्षा कर रहा है तो लोगों को तकलीफ हो रही है। ये ट्वीट अभी भी अनुत्तरित है।
इसी क्रम में यह भी याद करना प्रासंगिक होगा कि 1962 के युद्ध के समय चीन के पास वायु सेना नहीं थी जबकि भारत के पास थी। फिर भी भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपनी वायु सेना का उपयोग करना उचित नहीं समझा। इस विषय मे बात करते हुए 2 बार के महावीर चक्र विजेता विंग कमांडर जग मोहन नाथ ने कहा था – अगर हमने अपने हवाई जहाज तिब्बत मे उतार दिये होते तो हम युद्ध आसानी से जीत लेते। इसी क्रम मे पूर्व संसद श्री महावीर त्यागी कि नेहरू पर कि गयी टिप्पणी भी गौरतलब है जो नेहरू जी के अकसाई चिन मे घास का एक टुकड़ा भी नहीं उगता के जबाब मे कही गयी थी। स्वर्गीय श्री त्यागी ने संसद मे चीन के करारी हार के बाद हुई बहस मे भाग लेते हुए कहा था कि नेहरुजी के सिर पर एक बाल भी नहीं उगता तो क्या हमें उनका सर काट कर चीन को दे देना चाहिए।
यह तो अब चीन के रक्षा विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है। हाल मे ही चीन के प्रमुख रक्षा विशेषज्ञ हुआंग जुओझी ने चीनी अखबार मे लिखा कि आज के दिन दुनिया कि सबसे बड़ी और अनुभवी पहाड़ी और पठारी क्षेत्र मे लड़ने वाली सेना न अमेरिका के पास है न चीन के पास, यह सम्मान भारत को हासिल है। शियाचिन और तिब्बत सिक्किम कि सीमा पर तैनात यह फौज सब प्रकार से सक्षम है। इसका प्रत्येक सैनिक पर्वतारोही है। ऐसे 2 लाख सैनिक सीमा पर तैनात हैं।
भारतीय सीमाएं हमारे जांबाज प्रहरियों के सौजन्य से पूर्ण रुपेन सुरक्षित हैं और देशवासियों को उन पर भरोसा होना चाहिए।