हरियाणा में रोड : मराठों के वंशज
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कल शौकिया डेरी फार्मिंग के सिलसिले में दुधारू पशुओं देसी गोवंश की खोज में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लगते हुए यमुनापार हरियाणा में अंगराज कर्ण के द्वारा स्थापित नगर करनाल इसके ग्रामीण क्षेत्रों में घूमने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | करनाल हरियाणा का जनपद नगर निगम दोनों है, बहुत ही संपन्न इलाका लगा जमीने सोना उगलती हैं… समान भौगोलिक परिस्थिति होते हुए पश्चिम उत्तर प्रदेश का कोई जिला इतना विकसित नहीं है…|
करनाल के गांव में हमने देखा सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक तौर पर बड़ी ही संपन्नता है| खेतों में बेहतर इरीगेशन आधुनिक कृषि मशीनरी का व्यापक प्रचलन है| दिल्ली एनसीआर में अधिकांश लोग जमीन बेचकर या मुआवजे के पैसे से कोठिया बनाते हैं वहां हमने देखा कृषि व पशुपालन से अर्जित आय से लोगों ने आलीशान कोठियां खड़ी की हैं| दहेज जैसी कुप्रथा का प्रचलन नहीं है… समाज के सभी तबकों में शिक्षा का प्रचलन है | दिल्ली एनसीआर में दहेज के दानव ने तांडव मचा रखा है| भाषा ठेठ हरियाणवी ना होकर पंजाबी मिश्रित है| करनाल के ग्रामीण क्षेत्र की भाषा पूरी तरह हरियाणवी है| दिल्ली एनसीआर के व्यक्ति की भाषा को भलीभांति समझ लेते हैं | इसका कारण शायद यह है करनाल से अधिकांश लोग दिल्ली के विभागों, दिल्ली पुलिस में तैनात हैं |
सिख समुदाय से प्रभावित होकर करनाल के ग्रामीण क्षेत्रों से बहुत से युवक कनाडा आदि देशों में जाकर आजीविका कमाने के शौकीन है प्रत्येक घर से कोई ना कोई युवक कनाडा आदि देशों में मिल जाएगा… मुझे तो करनाल ही कनाडा का भारतीय मॉडल लगा… करनाल में तरावड़ी कस्बा है धान की खान उसे हम कह सकते हैं धान का सबसे बड़ा बाजार है यूपी के किसान भी अपने ऊपर वही विक्रय करते हैं तरावड़ी रियासत भी रही है |
करनाल के ग्रामीण क्षेत्र में उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में किराए पर कंबाइन चलाने का व्यवसाय है प्रत्येक गांवों में सैकड़ों कंबाइनर खड़ी हुई दिखाई हमें दी लॉक डाउन कोरोना से यह कारोबार प्रभावित हुआ है…|
ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे की वजह से एनसीआर व करनाल अंबाला आदि की दूरी बहुत कम हो गई है लगभग ढाई घंटे में हम ग्रेटर नोएडा से करनाल पहुंच गए पहले रेल आदि माध्यम से ऐसा संभव नहीं था | दिल्ली से करनाल पहुंचने में बस आदि से सुबह से शाम हो जाती थी|
ईस्टर्न पेरिफेरल हाईवे का सर्वाधिक फायदा यमुनापार हरियाणा को ही हुआ है पश्चिमी उत्तर प्रदेश अपने पिछड़ेपन के कारण ज्यादा फायदा इसका उठा नहीं पाया है|
करनाल महानगर में लगभग दोपहर 11:00 बजे हम अपने परिचित करनाल सेक्टर चार निवासी रमेश लाल लाठर जी के आवास पर पहुंचे मेरे बड़े भाई सुबोध कपासिया जी के वे सहकर्मी रहे हैं ,वह भी मेरे साथ थे | लाठर जी दिल्ली पुलिस के भूतपूर्व जांबाज जवान रहे हैं, महानगर के पास ही उनका पैतृक गांव है शहर से ही गांव जाकर खेती करते हैं संपन्न भरा पूरा परिवार है.. 1 उच्च शिक्षित बेटे व दो उच्च शिक्षित बेटियों के पिता है… ऋषि दयानंद आर्य समाज की विचारधारा से प्रेरित है…|
उन्होंने हमारा अतिथि सत्कार किया हम उनके अतिथि सत्कार भाव को देखकर अभिभूत हो गए| हम उनसे विविध समसामयिक विषय पर चर्चा कर रहे थे अचानक मेरा ध्यान सोफे के पास मेज पर रखी हुई छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा पर गया… मैंने उत्सुकता से पूछ लिया कि मराठा साम्राज्य के महान योद्धा हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी सचमुच धन्य है जो हरियाणा में भी आदर सत्कार के साथ जिनकी प्रतिमा आपके घर में विराजमान है|
लाठर जी ने उत्साह में भरते हुए मुझसे तत्काल कहां खारी जी हमारा यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम अपने पूर्वज छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा को अपने घर में स्थापित करें, हम उनके वंशज हैं…|
यह सुनकर मुझे अपार आश्चर्य हुआ मुझे यह तो मालूम था कि मराठों की अहमद शाह अब्दाली अफगान लुटेरों के साथ पानीपत की प्रसिद्ध लड़ाई 1761 में पानीपत मैं हुई मुझे यह मालूम नहीं था कि मराठों के वंशज करनाल कुरुक्षेत्र पानीपत क्षेत्र में सैकड़ों गांवों में मौजूद है जैसा लाठर जी ने फिर मुझे बताया |
14 जनवरी 1761 को वीर मराठों का अफ़गानों से पानीपत के मैदान में सामना हुआ | जिसमें मराठा सेना के कमांडर महावीर सदाशिवराव के द्वारा अदम्य वीरता परिचय दिया अहमद शाह अब्दाली अफ़गानों ने मराठों की रसद पानी की आपूर्ति के रास्ते को रोक दिया मराठी खाली पेट लड़ने के लिए मजबूर हुए… अफ़गानों की संख्या अधिक थी मराठों के 28000 वीर सैनिक मारे गए जो बचे वह जान बचाने के लिए कुरुक्षेत्र के ढाक के जंगलों में छुप गए… बचे हुए स्वाभिमानी मराठों ने कोकन देश महाराष्ट्र लौटना उचित नहीं समझा… रोहिल्ला नवाब अफ़गानों की सेना से बचने के लिए उन्होंने मराठा संबोधन का त्याग कर दिया अपनी पहचान वेशभूषा खानपान को छुपाकर हरियाणा में ही बस गए|
मराठी रूद्र रूप धारण कर युद्ध में लड़े कालांतर में यह रूद्र शब्द ही रोड में तब्दील हो गया.. हरियाणा में आज मराठी मराठी के नाम से नहीं रोड के नाम से जाने जाते हैं… हालांकि रोड नामकरण को लेकर एक अन्य भी मत है वह मराठों के मूल को को उत्तर भारतीय सिद्ध करता है… हम यहां उसकी चर्चा नहीं करेंगे ना ही वह प्रसांगिक है|
निसंदेह तथ्य प्रमाणों से रोड मराठा ही हैं मराठों के वंशज हैं… 18 वीं शताब्दी से पहले हरियाणा की संस्कृति में उनका कोई उल्लेख नहीं मिलता ना ही मुगलों के जमीनी बंदोबस्त में उनका जिक्र है… आईने अकबरी में भारत की जातियों का वर्णन है वहां हरियाणा के परिपेक्ष में विशेषकर कैथल करनाल कुरुक्षेत्र पानीपत अंबाला में रोड का उल्लेख नहीं है |
रोड समाज की प्रथाएं आज भी मराठा संस्कृति से जुड़ी हुई है… रक्षाबंधन से अधिक भैया दूज का पर्व मनाया जाता है… खाने में रात को दाल चावल अवश्य शामिल होता है मराठी में भी ऐसा ही है| वैवाहिक कार्यक्रमों में लड़का या लड़की के मामा की विशेष भूमिका होती है मराठा कोकन संस्कृति में भी ऐसा ही है| रोड समाज के गोत्र मराठों की गोद से ही मिलते हैं जैसे बोदले चव्हाण पवार भोसले सातवपाल आदि आदि|
रोड समाज के गोत्र हालांकि जाट , गुर्जर समाज से भी समानता रखते हैं| हरियाणा में रोड समाज की लगभग 600000 आबादी है साथ ही यमुनापार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी मुजफ्फरनगर शामली आदि क्षेत्रों में 30,000 के लगभग रोडो की आबादी व दर्जन भर गांव है|
क्योंकि 18वीं शताब्दी से पहले यमुनापार हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश एक ही भूभाग थे एक ही केंद्र से शासित होते थे अंग्रेजों ने इन्हें अलग अलग कर दिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश को United province जो अब उत्तर प्रदेश के साथ जोड़ दिया, शेष हिस्सों को पंजाब दिल्ली के साथ जोड़ दिया|
उदाहरण के तौर पर 1915 से पहले यमुनापार दिल्ली के 65 गांव जिसमें गुर्जर जाट चौहान सहित सर्व समाज के भी गांव शामिल है गंगा व यमुना के बीच के सबसे बड़े जिले जिसकी सीमाएं दोनों नदियों को छूती थी बुलंदशहर जनपद का हिस्सा थे ,शाहदरा दिल्ली की जमीनों बंदोबस्त बुलंदशहर में ही होता था, बुलंदशहर से ही शासित था पूर्वी दिल्ली का पूरा हिस्सा|
आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन ने एक ही सांस्कृतिक भौगोलिक भूभाग को दिल्ली हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रूप में विभाजित कर घोर सांस्कृतिक सामाजिक अन्याय किया है|
मूल प्रसंग की ओर लौटते हैं रोड समाज अनूठा समाज है हरियाणा के अन्य समाज , नाम नहीं लूंगा राजनीतिक संरक्षण में फले फूले हैं वंशवाद की राजनीति से प्रभावित हैं… लेकिन वीर मराठों के स्वाभिमानी खुद्दार वंशज रोड समाज अपनी मेहनत के बल पर अंबाला कैथल कुरुक्षेत्र पानीपत करनाल में फला फूला है|
हरियाणा के स्थानीय मूल समाजों की संस्कृति को उन्होंने भली-भांति आत्मसात कर अपनी परंपराओं को भी जीवित कर रखा है….!
हालांकि रोड समाज को लेकर कुछ चिंता विमर्श भी हैं समाज में नशाखोरी की समस्या अन्य समाजों की अपेक्षा कम है लेकिन समाज नशाखोरी से आज का युवा वर्ग प्रभावित हुआ है… इसके लिए हरियाणा सरकार भी पूरी तरह जिम्मेदार है गांव-गांव गली-गली शहर नुक्कड़ कदम कदम पर शराब के ठेके खोल दिए हैं , रोड समाज शायद इस मामले में पंजाबी सिख समुदाय का अनुकरण कर रहा है… रोड समाज के बुद्धिजीवी इसको लेकर गंभीर है…|
प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को पानीपत की लड़ाई की स्मृति में शौर्य दिवस काला आम शहीद स्थल पर बनाया जाता है| मराठों के वंशज आज भी स्वीकार नहीं करते कि उस लड़ाई में मराठों की पराजय हुई थी बल्कि कहते हैं मराठा इतिहास में लड़ी गई भीषण लड़ाई से भी अधिक वीरता से उस युद्ध में लड़े ऐसे में वह दिन हमारे लिए शौक का नहीं उत्साह उमंग का दिवस है|
महाराष्ट्र से भी सभी प्रमुख राष्ट्रीय दलों के मराठे नेता इस उत्सव में आते हैं मराठा समाज का प्रतिनिधिमंडल इसमें हिस्सा लेता है|
आर्य सागर खारी ✍✍✍