सीएए का समर्थन करने वाले राजनीतिक दल जमात पर खामोश क्यों ?
योगेंद्र योगी
ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों ने सत्ता में रहते हुए कभी मुसलमानों का भला किया हो। यदि ऐसा ही किया होता तो यह जमात आज जागरूक होती और धर्मांध होने की बजाए देश की मुख्यधारा में शामिल होती।
तबलीगी जमात के लोग देश भर की मुसलमानों की बस्तियों में जिस तरह बीमारी और मौत का पैगाम दे रहे हैं, उसके बाद यही कहा जा सकता है कि हे ईश्वर इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। लेकिन राजनीतिक दल माफी योग्य कदापि नहीं हैं। इनकी इस हालत के लिए असली कसूरवार तो राजनीतिक दल हैं। जिन्होंने इन्हें धर्म और रूढ़ता के अंधे कुएं से निकाल कर जागरूकता की रोशनी दिखाने की बजाए सिर्फ पशुओं की तरह वोट के लिए इस्तेमाल किया।
जिन राजनीतिक दलों ने सत्ता के फायदे के लिए अल्पसंख्यकों का वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया, उसका खामियाजा तबलीगी जमात के रूप में सामने आ रहा है। दिल्ली की निमाजुद्दीन में धर्मसभा में शामिल हुए लोग पूरे देश में कहर बरपा रहे हैं। इतना ही नहीं इनकी खोजबीन करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले किए जा रहे हैं। तेलंगाना में तो सारी हदें पार कर दी गईं। स्वास्थ्य सर्वे की टीम पर पालतू कुत्ते से हमला करवाया गया।
देश के कई हिस्सों में स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले हुए हैं। तबलीगी जमात के लोगों की तलाश करने गई पुलिस पर बिहार में मजिस्दों से हमले किए गए। यही स्थिति बंगलौर में भी रही। इन घटनाओं के बाद कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दलों के मुंह सिले हुए हैं। यही हाल असद्दुदीन ओवैसी का है। सीएए के मुद्दे पर देशभर में हंगामा मचाने वाले राजनीतिक दल और मुसलमानों के रहनुमाओं ने तबलीगी जमात के मामले में एक लाइन की प्रतिक्रिया तक जाहिर नहीं की।
इसकी विपरीत जिन राज्यों में गैरभाजपा की सरकारें हैं, वहां विधानसभाओं में सीएए को किसी भी सूरत में लागू नहीं करने के प्रस्ताव तक पारित कर दिए। अब यही राजनीतिक दल शतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन गढ़ाए हुए हैं। मुसलमानों की पैरवी के लिए देश की ईंट से ईंट बजा देने का दंभ भरने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी तमाशबीन बनी हुई हैं। घुसपैठियों को शरण देने के लिए देश के किसी भी कानून को नहीं मानने वाली ममता की ममता इनके लिए अब गायब हो गई।
मुसलमानों के वोट बैंक में लूटमार मचाने वाले ओवैसी और विपक्षी दलों ने पूरे देश में बीमारी बांट रहे इस जमात की हरकतों को देखते हुए मानो आंखों पर पट्टी बांध ली है। अब इन्हें कुछ नजर नहीं आ रहा कि कैसे एक समुदाय देश में धर्म के नाम पर किस तरह महामारी का संवाहक बना हुआ है। तबलीगी जमात में शामिल हुए लोग इतने जिम्मेदार नहीं हैं जितने कि इनके रहनुमा हैं। दरअसल इस पूरे समुदाय की परवरिश ही गलत हाथों में हुई है। इनकी गलतियों और कमजोरियों को दूर करने की बजाए कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने इनको ओर उकसा कर इनका दोहन करने में कसर बाकी नहीं रखी। मुद्दा चाहे तीन तलाक का हो या फिर सीएए का। विपक्षी दलों ने इन्हें देशहित में सही रास्ता दिखाने और जागरूक बनाने की बजाए वोट बटोरने के लालच में सदैव अंधे कुएं में ही रखा।
ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों ने सत्ता में रहते हुए कभी मुसलमानों का भला किया हो। यदि ऐसा ही किया होता तो यह जमात आज जागरूक होती और धर्मांध होने की बजाए देश की मुख्यधारा में शामिल होती। आजादी के बाद से इस जमात को देश की मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयासों की बजाए इन्हें अलग−थलग करके विकास की मुख्यधारा से दूर रखा गया। इनकी शिक्षा और स्तरीय जीवन की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया गया। इस जमात के लिए तीन तलाक जैसी मध्ययुगीन बर्बर परंपराओं को बाकायदा कानूनी जामा पहनाया गया। कांग्रेस ने तो तीन तलाक के खिलाफ दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को ही संसद में बदलवा दिया। इससे देश में इस जमात की तस्वीर अलग ही नजर आती है। अब जब इस कौम के लोग धर्म के नाम पर आपस में ही रोग बांट रहे हैं, तब हर मुद्दे पर आग उगलने वाले ओवैसी जैसे रहनुमाओं का अता−पता नहीं है।
यह इस कौम की राजनीतिक−सामाजिक मूढ़ता और लाचारी का ही परिणाम है कि इसके खैरख्वाह इन्हें रोकने−टोकने की बजाए बीमार होते और मरते हुए देख रहे हैं। इनकी धर्मान्धता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीमें इनके उपचार के लिए समझाइश कर रही हैं। उनकी समझाइश के विपरीत उन पर ही हमले किए जा रहे हैं। पुलिस और प्रशासन को इनको तलाशने मे पसीने छूट रहे हैं। तबलीगी जमात के लोगों के लिए देशभर की मस्जिदें शरणास्थली बनी हुई हैं। ये मस्जिदें ही अब बीमारी के फैलाव का संवाहक बन गई हैं।
मूढ़ता की हद तो यह है कि पुलिस की भनक लगते ही कोरोना संक्रमितों को बस्तियों−मौहल्लों में ले जाकर छिपाया जा रहा है। वहां पहुंचने पर पुलिस−स्वास्थ्यकर्मियों को हमले झेलने पड़ रहे हैं। इन्हें शायद इस बात इल्म तब तक नहीं है जिनका बचाव किया जा रहा है वे मौत के सौदागर हैं, और इनके दलाल बने राजनीतिक दल तमाशा देख रहे हैं। देश के कई हिस्सों से लगातार मुस्लिम रिहायशी इलाकों में कोरोना पीड़ितों की और मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।
इसके बावजूद भी इन्हें अपने अच्छे−बुरे का अंतर समझ में नहीं आ रहा है। देश के प्रधानमंत्री लगातार आगाह कर रहे हैं। इसके बावजूद मुस्लिम आबादी में मौत का यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। यह एक ऐसी बीमारी है जो अपनों द्वारा अपनों को ही लील रही है। इसमें हिन्दू−मुसलमान का झगड़ा नहीं है। इस समुदाय और इसके रहनुमाओं की भलाई इसी में है कि पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों का सहयोग करें, अन्यथा वे दिन अब ज्यादा दूर नहीं जब कब्रिस्तानों में जगह तक नसीब नहीं होगी। इंश अल्लाह।