नज्म
मैं नये साल की आमद पर हंसू तो कैसे…..?
साल 2012 गुजरा तो कहर ढाकर गुजरा,
मासूम दामिनी की इज्जत खाकर गुजरा,
जल जले यौन हिंसा के, हत्या करके गुजरा,
देश मेरा अभी गम को उठाकर गुजरा,
मैं नये साल की आमद पे हंसू तो कैसे…….?
निर्भया के साथ छह बहसी दरिंदों ने यौन हिंसा कर डाली,
भारतीय सभ्यता संस्कृति की धज्जियां उड़ा डालीं।
दिल्ली के सभी फुटपाथों पर करोड़ों की तादाद में निकल पड़े तबाली,
ना किसी को सर्दी की परवाह, था उनका पेट भी खाली,
दुखी छात्र छात्राओं ने दुखी मन से अपनी डिग्रियां फाड़ डाली,
नये साल की आमद पर हंसू तो कैसे………?
चिरागे, नफरतें, वासना को, ऐ दरिंदों जरा करो धीमा
यह मुल्क है प्यार का घर, यही मेरा ईंमा,
अजीब शेख, ब्राह्मण ने खींच दी सीमा,
कहीं रोए वाह गुरू, ईसा तो खतरे में राम और रहीमा।।
नये साल की आमद पर हंसू तो कैसे………?
नयी साल की माद पर आर्य करता है विनम्र अपील,
छोड़ो हिंसा वाद, करो त्यग कुर्बानी, करे मातृ शक्ति पुरूषो पर यकीन,
रखो भारतीय संस्कृति की लाज, ना करो अपने पूर्वजों की व्यवस्था तब्दील।
मातृ शक्ति की भ्रूण हिंसा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, तो मातृ शक्ति बचे कैसे,
नये साल की आमद पर हंसू तो कैसे………………………?
हरवीर सिंह आर्य एडवोकेट
गढ़मुक्तेश्वर