महाराणा कुंभा: एक ऐसा महायुद्ध था जिसने एक भी युद्ध नहीं हारा
महाराणा प्रताप हमारे इतिहास के एक ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र हैं , जिन पर आने वाली पीढियां युग युगांत तक गर्व करेंगी । 1572 में वह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे तो 4 वर्ष पश्चात ही उन्हें 1576 ई0 में तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर से हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध लड़ना पड़ा । इसी युद्ध के पश्चात उन्होंने आगे 21 युद्ध ऐसे लड़े जिनमें उन्होंने सदा मुगलिया सेना को परास्त किया । उन्होंने गोगुन्दा, चावण्ड, मोही, मदारिया, कुम्भलगढ़, ईडर, मांडल, दिवेर जैसे कुल 21 बड़े युद्ध जीते व 300 से अधिक मुगल छावनियों को 1576 से 1585 के बीच के काल में ध्वस्त कर दिया । इसके पश्चात अकबर उनकी ओर से अपनी सेनाओं को हटाने के लिए बाध्य हो गया । तब 1585 से 1597ई0 तक महाराणा प्रताप ने निष्कंटक चित्तौड़ में शासन किया। हमारे इस शौर्यसंपन्न वीर योद्धा को अकबर जैसा बादशाह कभी अपने सामने झुका नहीं पाया।
महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ में लगभग 50 दुर्ग थे, जिनमें से लगभग सभी पर मुगलों का अधिकार हो चुका था । 26 दुर्गों के नाम बदलकर मुस्लिम नाम रखे गए, जैसे उदयपुर बना मुहम्मदाबाद, चित्तौड़गढ़ बना अकबराबाद। यदि मुहम्मदाबाद और अकबराबाद अपने मूल नाम अर्थात उदयपुर और चित्तौड़गढ़ से आज भी जाने जाते हैं तो इसके पीछे महाराणा प्रताप का ही प्रताप है। यदि महाराणा नहीं होते तो हम इन दोनों शहरों को इन्हीं नामों से जानते ।
महाराणा प्रताप का पुण्यमय जीवन और अकबर का पाप पूर्ण जीवन रहा। इसका परिणाम यह है कि संपूर्ण भारतवर्ष में गौरव संपन्न राणा वंश के लोगों को आज भी सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं और उन्हें सम्मान के साथ लोग स्थान प्रदान करते हैं । उनकी बहुत बड़ी संपदा आज भी बची हुई है ।जबकि अकबर जैसे पापी के वंश के लोगों को ढूंढना ही कठिन है।
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन काल में ही उपरोक्त 50 दुर्गा में से 48 दुर्गों को मुगलों से फिर से प्राप्त कर लिया था।
हमें महाराणा प्रताप के साथ ही उनके सुपुत्र अमर सिंह की उस वीरता भरी कहानी को भी नहीं पढ़ाया जाता जिसमें उन्होंने दिवेर के युद्ध में अकबर के चाचा सुल्तान खान को भाले के प्रहार से समाप्त कर दिया था।
यदि इतिहास यह है कि अमर सिंह अपने पिता के समान पराक्रमी नहीं थे तो इतिहास यह भी है कि महाराणा अमरसिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर से 17 बड़े युद्ध लड़े व 100 से अधिक मुगल चौकियां ध्वस्त कीं, लेकिन हमें केवल ये पढ़ाया जाता है कि 1615 ई. में महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से संधि की । ये कोई नहीं बताएगा कि 1597 ई. से 1615 ई. के बीच क्या क्या हुआ ।
1597 ईस्वी से लेकर 1615 के बीच के 18 वर्षों में महाराणा अमर सिंह भी अपने पिता महाराणा प्रताप की भांति मुगलों से संघर्ष करते रहे । इसके उपरांत भी हमें उनके बारे में केवल यही पढ़ाया जाता है कि वह एक दुर्बल शासक थे और उन्होंने मुगलों के सामने घुटने टेक दिए थे । उनके बारे में ऐसा इतिहास पढ़ाए जाने से जहां हमारे भीतर हीनता का भाव उत्पन्न होता है वहीं शत्रु इतिहास लेखकों की शत्रुता पूर्ण कार्यवाही से शत्रु पक्ष को लाभ होता है। ओवैसी जैसे लोग छाती ठोक कर कहते हैं कि हमने यहां पर 700 वर्ष शासन किया है । जबकि हम यह भी नहीं कह पाते कि हमने भी 20 वर्ष में 100 – 100 लड़ाईयां लड़कर विजय पताका फहरायी हैं ।
इतिहास के एक महान योद्धा व शौर्य संपन्न महाराणा कुम्भा ने अपने जीवन काल में 32 दुर्ग बनवाए । जब हम उनके बारे में इस तथ्य को पढ़ते हैं तो हमें आश्चर्य नहीं होता परंतु हम किसी मुगल या तुर्क शासक के द्वारा 2 – 4 दुर्ग बनाने पर भी खुशी से फूले नहीं समाते । महाराणा कुंभा जैसे योद्धा के द्वारा ही कई ग्रंथ लिखे गये । उन्होंने चित्तौड़ के किले में स्थित विजय स्तंभ बनवाया, ये सब हमारे लिए गौरवप्रद हैं।
पर इन सबसे भी अधिक गौरवशाली इतिहास उनका उन विजयों में छिपा है , जिन्हें इतिहास से छुपा कर रखा गया है । महाराणा कुम्भा ने आबू, मांडलगढ़, खटकड़, जहांजपुर, गागरोन, मांडू, नराणा, मलारणा, अजमेर, मोडालगढ़, खाटू, जांगल प्रदेश, कांसली, नारदीयनगर, हमीरपुर, शोन्यानगरी, वायसपुर, धान्यनगर, सिंहपुर, बसन्तगढ़, वासा, पिण्डवाड़ा, शाकम्भरी, सांभर, चाटसू, खंडेला, आमेर, सीहारे, जोगिनीपुर, विशाल नगर, जानागढ़, हमीरनगर, कोटड़ा, मल्लारगढ़, रणथम्भौर, डूंगरपुर, बूंदी, नागौर, हाड़ौती समेत 100 से अधिक युद्ध लड़े व अपने पूरे जीवनकाल में किसी भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखा। जब उनके बारे में यह शब्द इतिहासकार या किसी समकालीन लेखक के मुंह से सुनते हैं तो सीना सचमुच गर्व से फैल जाता है। सचमुच यह कहने को मन करता है कि यदि आज हम जीवित हैं तो राणा कुंभा जैसे लोगों के कारण जीवित हैं । इन्हीं लोगों के बारे में यह कहा जा सकता है कि:–
तूफान से लाए हैं किश्ती निकाल के।
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग की बात आती है तो केवल 3 युद्धों की चर्चा होती है :-
1) अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को पराजित किया , यह घटना 1303 ईस्वी की है।
2) बहादुरशाह ने राणा विक्रमादित्य के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता , यह घटना 1534 ईस्वी की है।
3) अकबर ने महाराणा उदयसिंह को पराजित कर दुर्ग पर अधिकार किया, और यह घटना 1567 ईस्वी की है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या इन तीन युद्धों के अतिरिक्त चित्तौड़गढ़ पर कभी कोई हमले नहीं हुए ?
मित्रो ! अपने गौरवपूर्ण इतिहास को समझने ,पढ़ने , सीखने और सिखाने का समय आ चुका है । शत्रु अपने षड्यंत्र मे लगा हुआ है और हम प्रमाद की नींद सो रहे हैं । हमें पैरालाइसिस का इंजेक्शन लगाकर लुंज पुंज कर दिया गया है। मानसिक रूप से पक्षाघात को झेलते हुए हम लग रहा है कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं , परंतु इस सबके उपरांत भी हमें यह विश्वास है कि हिंदू का पुनरुज्जीवी पराक्रम फिर से उसे खड़े होने के लिए प्रेरित करेगा । हिन्दू इतिहास को लिखकर इतिहास रचने और इतिहास को नई करवट देने का युगांतरकारी कार्य करेगा ।
आप भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति के साथ जुड़ें और इतिहास के पुनर्लेखन के महान पुण्यदायी कार्य मैं अपनी सक्रिय भूमिका अदा कर राष्ट्र सेवा का सौभाग्य प्राप्त करें।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत