गोलियों और गोलों के भय से भी जब विचलित नहीं हुए थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
बात उन दिनों की है जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और शत्रु नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके साथियों को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध था ।
हर पल उस समय नेताजी और आजाद हिंद फौज के लोगों के लिए बहुत ही सावधानी बरतने का था ।
उस समय भी नेता जी ने अपने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया । आज नेताजी बोस की जयंती के अवसर पर हम ऐसे ही दो संस्मरण यहां पर रख रहे हैं । जिससे से न केवल उनके अपने अदम्य साहस और शौर्य का पता चलता है बल्कि उनके क्रांतिकारी संगठन आजाद हिंद फौज के सैनिकों के भी अदम्य साहस , शौर्य और देशभक्ति का पता चलता है।
26 अप्रैल 1945 को आजाद हिंद फौज के एक मेजर जनरल ने अपने संस्मरण में अपनी डायरी में लिखा है :– ” 26 अप्रैल हमने नेताजी के लिए चाय बनाई। जब वह आए तो हमने उन्हें कहा कि कुछ देर आराम कर लें और एक प्याला चाय पी लें , लेकिन नेताजी को आराम कहाँ ? उन्होंने जल्दी से चाय खत्म की और खुद जाकर यह देखा कि सब लाठियां ठीक तरह से छिपा दी गई है , और उन पर आवरण डाल दिया गया है । नेता जी ने आप ही दस्तों के ठहरने का स्थान नियत किया । झांसी की रानी रेजीमेंट को एक छोटा सा गांव बताया गया है जहां दिन में उसे ठहरना है । यह गांव नदी के बिल्कुल पास है और यह बहुत ही खतरनाक जान पड़ता है । शत्रु के हवाई जहाज अवश्य ही उसको देखने के लिए आएंगे । गांव के सब लोग भाग गए हैं । जो भी हो हमें अपना बचाव करना है और सौभाग्य से गांव में पेड़ बहुत हैं । हम उनके नीचे ठहर सकते हैं और जब तक शत्रु के हवाई जहाज हमें देख न लें । तब तक अपनी रक्षा कर सकते हैं । लगभग 3 बजे शाम को शत्रु के छह लड़ाकू हवाई जहाज गाँव के ऊपर आ गए और चक्कर काटने लगे । हम सब पेड़ों के तनों के पीछे छुप गए । जनरल चटर्जी ने नेताजी को एक छोटे से गड्ढे में जो एक गोले से बन गया था छिपाने का प्रयास किया । इस पर वह बहुत क्रोधित हुए । उन्होंने जनरल चटर्जी से कहा जब लड़कियों के लिए कोई स्थान नहीं है तब मैं खाई में कैसे जा सकता हूं ? नेताजी खड़े ही रहे और सिगरेट पीते रहे । अत्यंत विपरीत अवस्था में नेताजी शांत और स्थिर रहते हैं। इससे हम सबको प्रेरणा मिलती है। शत्रु के हवाई जहाजों ने हमारे क्षेत्र पर आधे घंटे तक हमला किया। हमारी 5 लारिया जला दी गई । अब हमारे पास कोई सवारी नहीं है । आज हमारे ऊपर मशीनगनों से जो गोली वर्षा की गई वह बहुत ही गंभीर थी। गोलियां हमारे सिरों के ऊपर से सनसनाती हुई जा रही थी। नेताजी निडर होकर अपने स्थान पर खड़े रहे और जीवित बच गए, उनको एक खरोच तक नहीं आई । यह एक चमत्कार ही था। ”
नेताजी से मेरा जय हिंद कहना
इसी प्रकार हमारे महान क्रांतिकारी वीर स्वतंत्रता सेनानियों की स्वतंत्रता प्रेमी भावना कितनी ऊंची और महान थी इसका वर्णन करते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के एक प्रमुख साथी शाहनवाज़ खान ने लिखा है :– ” एक बार मैंने एक ऐसे सिपाही को देखा जो लड़ाई में घायल हो गया था । वह कई मील पैदल चल कर आया था और अब उसमें चलने की सामर्थ्य नहीं बची थी । वह सड़क के किनारे पड़ा सब दुखों से छुटकारा देने वाली मृत्यु की घड़ियां गिन रहा था। उसके घावों में सैकड़ों कीड़े पड़ गए थे और वह थोड़ी ही देर का मेहमान था। मैं उसके पास जाकर खड़ा हुआ । उसने आंखें खोलकर मेरी ओर देखा और उठने का प्रयास किया । पर उसकी सामर्थ्य ने उत्तर दे दिया । उसने मुझे पास बैठने के लिए संकेत किया और आंसू बहाते हुए नेताजी तक यह संदेश पहुंचाने के लिए कहा – ‘साहब ! आप लौटकर नेताजी को देखेंगे और मैं उनके दर्शन नहीं कर सकूंगा ।आप उनसे मेरा जय हिंद कहकर यह कहें कि मैंने उन्हें जो वचन दिया था जीते जी उसे पूर्ण किया । उनसे कहना कि कीड़ों ने मुझे जीवित खा लिया पर इस महान कष्ट में मुझे अजीब शांति और सुख मिला है। हां शांति और सुख क्योंकि मैं जानता हूं कि यह सब कष्ट हिंदुस्तान के लिए मातृभूमि के छुटकारे के लिए ही तो हैं। ”
कहां मिलेगी ऐसी देशभक्ति भूमंडल पर ? – केवल भारत में ।नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इस अद्भुत देशभक्ति को अपने क्रांतिकारी साथियों के भीतर घोट घोट कर भर दिया था । इसी क्रांतिकारी महानायक के कारण आज हम आजाद हैं। उसके इन अनेकों क्रांतिकारी साथियों को भी आज प्रणाम करने को मन करता है , जो देश की आजादी के लिए गंभीर रूप से घायल हुए और जिनके शरीरों में पड़े अनेकों कीड़े उन्हें जिंदा ही खा गए , परंतु इसके उपरांत भी वे मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते कष्टों को सहन करते रहे। भारत भूमंडल का पिता है। देश भक्ति और ईशभक्ति का खजाना केवल उसी के पास है और इन दोनों भक्तियों से ही जीवन और जगत का आधार , विचार और जीवन व्यापार चलता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन इसी के लिए समर्पित रहा। भारत सारे संसार की सारी व्यवस्था का श्रृंगार है और नेताजी उसके गले का हार हैं ।
देश को आजादी बिना खडग , बिना ढाल नहीं मिली , बल्कि खड़ग और ढाल बनकर या उनके बीच भी निर्भय खड़े रहकर ही आजादी के ये दिन हमको देखने को मिले हैं।
अपने इस महानायक को उसकी जयंती के अवसर पर समस्त उगता भारत परिवार की ओर से हृदय से कोटिश: नमन ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत