आज का चिंतन-20/06/2013
संकल्प को ताकतवर बनाएँ
इच्छाओं को नहीं
डॉ. दीपक आचार्य
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मनुष्य इच्छाओं का दास है और पूरी जिन्दगी वह इच्छाओं के महासागर में भ्रमण करता रहता है। जीवन के हर क्षण में मनुष्य के साथ कोई न कोई इच्छा लगी ही रहती है। इसी कारण इंसान को इच्छाओं और ऐषणाओं का पुतला कहा जाता है।आजकल कोई भी इंसान अपनी वर्तमान दशा और दिशा से प्रसन्न नहीं है। हर इंसान चाहता है कि उसे कुछ न कुछ हर क्षण प्राप्त होता रहे और संसार भर का सब कुछ उसकी झोली में आ जाए।इन्हीं कारणों से हर इंसान रोजाना अनंत इच्छाओं को आकार देना चाहता है और उसके जेहन में इच्छाएं ही इच्छाएं लगी रहती हैं। अपनी इच्छाओं की पूर्त्ति के लिए इंसान उन सारी हरकतों, गोरखधंधों, करामातों को अपनाता है जो उसे कुछ दे या दिलवा सकती हैं।चमचागिरी से लेकर चापलुसी और अपने आपको समर्पित कर देने तक के लिए सदैव उतावला हो जाता है, कभी जयगान करता है, कभी परिक्रमा और कभी चरणस्पर्श से लेकर साक्षात दण्डवत करने लगता है।कई तो ऐसे गिर जाते हैं कि सामने वाले जो चाहे उसे सौंप कर भी अपने काम होने चाहिएं। अपनी इच्छाओं की पूर्त्ति के लिए सामने वालों की हर इच्छा पूरी कर देने के लिए तत्पर रहना कोई सीखे तो आज के इंसान से।कुछ बिरलों को छोड़ दिया जाए तो आजकल आदमी के नाम पर लोग क्या-क्या नहीं कर रहे हैं? अपनी वांछित अभिलाषा को पूरी करने के लिए आदमी वे सारे काम करने लग गया है जो न उसके पुरखों ने किए हैं न परंपराओं में रहे हैं।हमारे आस-पास ऐसे खूब लोगों की भरमार है जो वे सारे काम करने के आदी एवं सिद्धहस्त हो गए हैं जो एक आदमी के लिए नहीं बल्कि बहुरुपियों, वृहन्नाओं, गणिकाओं और बिगड़ेलों के लिए कहे गए हैं।अपने आपको ऊँचा उठाने के फेर में आदमी उतना ही ज्यादा नीचे गिरने लग गया है। आदमी शटर की तरह उठता और गिरता रहने लग गया हैै। हर व्यक्ति के जीवन में इच्छाओं की कोई कमी नहीं हुआ करती। यों कहें कि आदमी इच्छाओं के भरोसे ही जीने लगा है और इच्छाएं पूरी करने में जुटे रहना ही आदमी की जिन्दगी का अहम मकसद हो गया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा।इच्छाओं का होना आदमी के लिए जरूरी हो सकता है। हर आदमी अपने आपको दूसरों से अलग और समृद्ध दिखना और रहना चाहता है और इसके लिए अपनी इच्छाओं को आकार देने के लिए वह कुछ भी कर लेने को स्वतंत्र एवं स्वच्छंद है।आजकल के आदमी के लिए न कोई मर्यादाएं रहीं हैं, न वर्जनाएं, और न ही समाज का कोई अनुशासन। जो जी चाहता है, वह आदमी कर गुजरता है और ऐसा करने के लिए उसे किसी को पूछने या सलाह लेने की कोई जरूरत नहीं पड़ती।इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता। ये अविराम चलती ही रहती हैं और एक के बाद एक इच्छाओं की श्रृंखला पूरी जिन्दगी खत्म नहीं होती। अपनी इन इच्छाओं को लेकर लोग देवी-देवताओं, पितरों और सिद्ध संत-महात्माओं से लेकर इंसानों के सामने याचना करते नज़र आते हैं।एक इच्छा पूरी हो जाने पर दूसरी का जन्म अपने आप हो जाता है। और इसी प्रकार यह क्रम निरन्तर यों ही चलता रहता है जब तक आदमी की जान में जान है।इच्छाओं का पूर्ण होना कर्मयोग और भाग्य दोनों पर निर्भर है लेकिन एक-एक इच्छा की पूर्त्ति के लिए समय गुजारते रहने का फल यह होता है कि अंतिम समय तक भी ऐषणाओं का कोटा पूरा नहीं हो पाता है और यों ही चलता रहता है।इच्छाओं को पूरा करने और कराने में ही पूरी जिन्दगी निकल जाती है। इससे तो अच्छा यही है कि इच्छाओं के पीछे भागने की बजाय अपने मन के संकल्प को इतना घनीभूत और ताकतवर बनाएं कि अपने सारे काम संकल्प मात्र से पूर्ण होने की स्थिति में आ जाएं और ऐसा होने पर हमें इच्छाओं के पीछे भागने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि संकल्प को मजबूत बनाने के लिए ही मेहनत करनी होगी।इससे संकल्प के अनुसार अपनी सारी इच्छाएं अपने आप पूर्ण होती चली जाएंगी। अपने संकल्प को शक्तिसम्पन्न बनाना कठिन अवश्य है किन्तु असंभव बिल्कुल नहीं।जितनी शक्ति हम इच्छाओं को पूरा करने में लगा देते हैं उसका थोड़ा सा अंश भी हम इच्छाओं से मुक्त होकर संकल्प सिद्धि की ओर लगा दें तो यह काम आसानी से हो सकता है।फिर ज्यों-ज्यों हमारा संकल्प मजबूती पाता चला जाएगा अपनी इच्छाएं अपने आप पूरी होंगी। फिर किसी एक इच्छा के लिए अपनी शक्ति लगाने, औरों की शक्ति पाने या किसी के सामने गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।इसलिए जीवन को बेहतर बनाना चाहें तो अपने संकल्प को बली बनाएं। इससे जीवन के सारे रास्ते अपने आप खुलते चले जाएंगे और जीवन में जो कुछ करना है उसमें स्वतः सहायता पाने का अहसास होता रहेगा।