एक मौलवी जिन्होंने इस्लाम छोड़कर आर्य समाज स्वीकार किया

मेरा जन्म कोलकाता में एक पढ़े लिखे परिवार में हुआ, इस परिवार ने कई डॉ० इंजीनियर से लेकर शिक्षाविद बोलपुर शांति निकेतन श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विश्वविद्यालय के अरबी फारसी के विभाग अध्यक्ष भी दिया।

मैं महेन्द्रपाल आर्य बचपन से घरेलू परम्परा अनुसार इस्लामिक शिक्षा विरासत में अपने पिता के नजदीक रह कर प्राप्त किया, छोटे में ही कुरान कंठस्थ कर लिया, उसके बाद मौलवियत की शिक्षा कोलकाता और दिल्ली में रह कर पूरी की।

1980 से लेकर 83 तक जिला बागपत, बावली बरवाला, या नसोली बरवाला जहाँ के डॉ० सत्यपाल सिंह जी mp बागपत हैं, उसी बरवाला कि बड़ी मस्जिद में इमामत की, ग्राम में सुबह शाम मानवता पर रोजाना दोनों समय तकरीर किया करता था, हिन्दू मुस्लिम दोनों को ईश्वर आराधना के लिए भोर में उठा दिया करता था।

उसी बरवाला के एक मास्टर कृष्णपाल सिंह जी, जो उन दिनों गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ में विज्ञान के अध्यापक थे, उन्होंने मुझे गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ आने का निमंत्रण दिया, एक दिन समय निकाल कर मैं गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ पहुंचा, यहाँ से मुझे उर्दू वाली सत्यार्थ प्रकाश मिली।

सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ने के बाद मैं विचलित हो उठा और, उसी से कुछ प्रश्न मैंने कई मदरसा के मुफ्तिओं को भेजा, कृपया जवाब देख मुझे कृतार्थ करें।

जवाब देने के बजाय मुझे किसी ने मूर्तिद कहा, किसी ने लिखा ईमान से हाथ धो बैठे हो, किसी ने लिखा, आप दीन से भटक गये आदि *…*..

फिर मैं गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ के स्वामी शक्तिवेश जी से सम्पर्क किया और 30 नवम्बर 1983 को उसी बरवाला ग्राम के इन्टर कालिज के प्रांगण में हजारों हिन्दू मुस्लिम नर नारियों के सामने स्वामी शक्ति वेश जी के नेतृत्व में सत्य सनातन वैदिक धर्म को स्वीकार किया, शुद्धि यज्ञ के पश्चात् स्वामी जी ने मुझे जनता को संबोधित करने को कहा, मैंने अपने पहले वक्तव्य में बोला कि मैं धर्म नहीं बदल रहा हूँ धर्म मनुष्य मात्र का एक ही है, धर्म का बदला जाना संभव नहीं *परमात्मा मानव मात्र के लिए एक ही धर्म दिया है, मैं समाज बदल रहा हूँ, एक अन्धविश्वासी समाज को छोड़ कर एक बुद्धिजीवी समाज में सम्मिलित हो रहा हूँ …*..

उसी दिन मैं अपने बच्चों के साथ गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ आ गया, और कुछ कार्य भार भी सँभालने लगा और अध्यायन भी करने लगा, स्वामी शक्तिवेश जी मुझे आर्य जगत के बड़े बड़े विद्वानों सन्यासियों से मिलाने लगे, मुख्य रूप से अमर स्वामी जी के सानिध्य में रहकर तुलनात्मक अध्यापन करने लगा, जानने और सीखने लगा वैदिक मान्यता वैदिक सिद्धांत क्या है ??…

मुझे इसी 1983 में सार्वदेशिक सभा ने अपना प्रचारक नियुक्त किया, श्री ओमप्रकाश त्यागी जी मंत्री सार्वदेशिक सभा के द्वारा मेरी नियुक्ति हुई।

1984 में अखिल भारत हिन्दू महासभा के उपाद्याक्ष श्री इन्द्रसेन शर्मा जी के नेतृत्व में दिल्ली मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने कुरान कि 24 आयातों पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक रिट दायर की गयी थी, जो मेरे द्वारा प्रमाण प्रस्तुत किया हुआ था।

मुझे 1985 के 10 जनवरी को दिल्ली से बंगाल आर्यप्रतिनिधि सभा में भेज दिया, 1985 के मार्च महीने में कोलकाता उच्चन्यालय में पद्मा खास्तगीर के इजलास में, चांदमल चोपड़ा, व श्री शीतल सिंह के माध्यम से कुरान पर रिट दायर कि गई, यहाँ भी सारा प्रमाण मेरे द्वारा ही प्रस्तुत किया गया था।

6 वर्ष मैं बंगाल सभा में रह कर विभिन्न हिन्दू संगठनों के माध्यम से प्रचार और परावर्तन का कार्य करता रहा, मैंने सभी शुद्धि सभा के माध्यम से किया 600 लड़कियों को घर वापसी कराया जो हिन्दू लड़कियां मुस्लिम बन चुकी थी उन्हें घर वापसी कराया, लगभग 200 मुस्लिम लडकियों को शुद्ध कर हिन्दू परिवार में शादी कराई, 15 हज़ार से ज्यादा परावर्तन इन 33 वर्षों में किया।

डॉ० जाकिर नाईक प्रचार करता रहा वेद में हज़रत मुहम्मद का नाम है, हिन्दुओं को वेद छोड़ मुसलमान बन कर कुरान को अपना लेना चाहिए।

इस कार्य का विरोध न किसी आर्य समाजी कार्यकर्ता अधिकारी सार्वदेशिक हो अथवा प्रांतीय सभा के आर्य कहलाने वालों का कोई विरोध नहीं था और ना तो उसका कोई विरोध किया; मैंने डॉ० जाकिर नाईक को चुनौती दी कहाँ हैं वेद में मुहम्मद का नाम उसे दिखाए *मेरे विरोध करने पर उसने 1 जनवरी 2004 को मुम्बई में अपने सम्मेलन में मुझे निमंत्रण देकर बुलाया*।

2004 के 1 अगस्त में खारी बावली आर्य समाज में मेरा उससे शास्त्रार्थ हुआ श्री धर्मपाल जी कि अध्यक्षता में, कुरान का हिंदी अनुवादक मौलाना फारुख खान के साथ, 2007 में डॉ० जाकिर नाईक का फिर निमंत्रण मुझे मिला, इसके बीच जाकिर नाईक के आफिस बेयरर जैश पटेल से वार्ता हुई जो youtube में लगा है, मुझे तीन बार समय देकर पीछे हटा, मैंने 11/4/2008 को सार्वदेशिक सभा के लेटरहेड में फिर डॉ० जाकिर नाईक को चुनौती एडवोकेट श्री विमल वधावन जी के हस्ताक्षर में दिया।

2007 के 27 मार्च को बुलन्दशहर डॉ० प्रकाश वीर जी के घर स्वामी शिवानन्द जी कि अध्यक्षता में मेरा शास्त्रार्थ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तारिक मुर्तुजा के साथ हुआ, पुनः 2008 के 8 फरवरी को शास्त्रार्थ अब्दुल्ला तारिक से धर्मपाल क्रांति साबुन के मालिक कि अध्यक्षता में हुई बड़ी भीड़ थी और अनेक सारे गणमान्य लोग मौजूद थे, हमारे साबुन वाले धर्मपाल जी ने कोई निर्णय नहीं दिया।

इस बीच सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबंध लगाने के लिए दिल्ली के 30 हजारी कोर्ट में, खलील खान, और उस्मान गनी नाम के दो व्यक्ति ने केस डाल दिया, किसी आर्य समाजी कहलाने वाले का कोई सहयोग नहीं मिला, मेरे और श्री विमल वधावन जी रामफल बंसल जी उनके और 4 जूनियर वकील छोड़ कर, कोई आर्य समाजी नाम का व्यक्ति नहीं दिखाई दिया ।. सत्यार्थ प्रकाश केस को दिल्ली उच्च न्यायालय से जीत दिलवाई .

2012 में मैंने प्रमाणित किया डॉ० जाकिर नाईक अलकायदा से जुड़ा है, भारत सरकार ने उनकी पीस tv पर प्रतिबंध लगाई, उसके बाद सुदर्शन न्यूज़ चेनल में जाकिर नाईक का पर्दाफाश मेरा प्रोग्राम आया, उन दिनों में भी जाकिर नाईक को लोग इतना नहीं जानते थे।

मेरे इस प्रकार के कार्य को देख कर मुम्बई आर्य प्रतिनिधि सभा प्रधान श्री मिठाई लाल जी ने दोबारा मुझे सम्मानित किया, अजमेर के परोपकारिणी सभा ने सत्यार्थ प्रकाश केस के जीतने पर, आर्य आक्षेप उत्तर दाता, लिखकर एक प्रशस्ति पत्र दिया है, दिल्ली के केन्द्रीय सभा ने स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस पर सम्मानित किया, मैंने यह थोड़ा सा अपना परिचय, सत्य सनातन वैदिक धर्म के लिए किये गये कार्य जो और भी अनेक छोड़ कर लिखा हूँ और समाज के लोगों ने कहाँ किस तरीके से मुझे सराहा यह सब छोटा कर के लिखा है ।

Comment: