महर्षि दयानंद आर्य गुरुकुल ब्रह्म आश्रम संस्कृत महाविद्यालय राजघाट नरोरा बुलंदशहर एवं राज आर्य सभा की ओर से अलीगढ़ का नाम परिवर्तित कर रामगढ़ रखने हेतु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के लिए पारित प्रस्ताव
प्रतिष्ठा में
योगी आदित्यनाथ जी माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ उत्तर प्रदेश
महोदय सादर प्रणाम ।
आपके यशस्वी नेतृत्व में उत्तर प्रदेश प्रगति और उन्नति के पथ पर अग्रसर है । आपने कई ऐसे ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं जिससे प्रदेश की जनता अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करती है । भारत की प्राचीन संस्कृति और ऐतिहासिक परंपराओं के प्रति आप का समर्पण बहुत ही स्तुत्य है । हम सभी आपके इन कार्यों का हृदय से अभिनंदन करते हैं । हम सभी आपसे इस प्रस्ताव के माध्यम से यह सादर अनुरोध करते हैं कि वैदिक संस्कृति के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अलीगढ़ (कोल) एक अत्यधिक प्राचीन स्थल है। कभी यह कौशांबी राज्य के अधीन हुआ करता था । जहां का शासक कौशरिव था । कौशरिव को पराजित कर कोल नामक एक दैत्यराज यहाँ का राजा बना और उसने अपने नाम के अनुकूल इस स्थल का नाम कोल रखा। इसी काल में पांडवों ने अपनी राजधानी हस्तिनापुर से स्थानांतरित कर बरन ( बुलंदशहर ) में स्थानांतरित की थी ।
यहाँ काफी दिन कोल का शासन रहा। एक बार रामघाट गंगा स्नान के लिए यहाँ श्री कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी होकर गुजरे तो उन्होंने स्थानीय खेरेश्वरधाम पर अपना पड़ाव डाला था । उन्होंने दैत्य सम्राट कोल का वध करके अपना हथियार हल जहाँ जाकर धोया था उस स्थान का नाम हल्दुआ हो गया।भगवान बलराम ने तब कोल का राज्य पांडवों को दे दिया था परन्तु काफी प्रचलित हो जाने के कारण इसका नाम नहीं बदला। महाभारत में जिन 12 वनों का उल्लेख किया गया है उनमें एक कोल वन भी है। स्पष्ट है कि महाभारत का यह कोल वन कोल अर्थात अलीगढ़ के प्राचीन नाम की ओर ही संकेत करता है।
वर्तमान अलीगढ़ जनपद में स्थित वेसवा नाम का कस्बा जहाँ प्राचीन ऐतिहासिक सरोवर धरणीधर है कभी के विश्वामित्र आश्रम का अवशेष स्मृति चिन्ह है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर जमाल मौहम्मद सिद्दीकी ने अपनी पुस्तक अलीगढ़ जनपद का ऐतिहासिक सर्वेक्षण में लगभग 200 पुरानी बस्तियों और टीलों का उल्लेख किया है जो अपनी गर्त में अनेकों हिन्दू राजवंशों के अवशेष छुपाये हुए हैं। अलीगढ़ गजैटियर के लेखक एस॰ आर॰ नेविल के अनुसार जब दिल्ली पर तौमर वंश के राजा अनंगपाल सिंह का राज्य था तभी बरन (बुलन्दशहर) में विक्रमसैन का शासन था। इसी वंश परम्परा में कालीसैन के पुत्र मुकुन्दसैन उसके बाद गोविन्दसैन और फिर विजयीराम के पुत्र श्री बुद्धसैन भी अलीगढ़ के एक प्रसिद्ध शासक रहे। उनके उत्तराधिकारी मंगलसैन थे जिन्होंने बालायेकिला पर एक मीनार गंगा दर्शन हेतु बनवाई थी, इससे विदित होता है कि तब गंगा कोल के निकट ही प्रवाह मान रही होगी। जैन-बौद्ध काल में भी इस जनपद का नाम कोल था। विभिन्न संग्राहलों में रखी गई महरावल, पंजुपुर, खेरेश्वर आदि से प्राप्त मूर्तियों को देखकर इसके बौद्ध और जैन काल के राजाओं का शासन होने की पुष्टि होती है।
1717 में इस ऐतिहासिक पवित्र स्थली का नाम कोल से परिवर्तित कर साबित खान नाम के एक मुस्लिम आक्रांता ने साबित गढ़ रखा । उसका यह कृत्य हमारे वीर जाट राजा सूरजमल को रुचिकर नहीं लगा । राजा सूरजमल ने इसे हिंदू अस्मिता पर किए गए एक कुठाराघात के रूप में देखा । मथुरा और भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने सन 1753 में कोल पर अपना अधिकार कर लिया। उसे बहुत ऊँची जगह पर अपना किला रुचिकर न आने के कारण एक भूमिगत किले का निर्माण कराया तथा सन 1760 में पूर्ण होने पर इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 6 नवम्बर 1768 में यहाँ एक सिया मुस्लिम सरदार मिर्जा साहब का आधिपत्य हो गया। 1775 में उनके सिपहसालार अफरसियाब खान ने मोहम्मद (पैगम्बर) के चचेरे भाई और दमाद अली के नाम पर कोल का नाम अलीगढ़ रखा ।
ऐसे में आपसे इस महा सम्मेलन में उपस्थित हम सभी जन गण यह सानुरोध प्रार्थना करते हैं कि आप इस पवित्र स्थली का पुराना नाम रामगढ़ रखकर प्रदेश की करोड़ों रामभक्त जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए हमें उपकृत करें । हम सभी आपके हृदय से आभारी होंगे ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
Mujhe apne bacche ka admition karana h uske liye kya karna hoga