प्रयागराज, तीर्थराज और त्रिवेणी संगम की वास्तविकता, भाग – 1
इन दोनों प्रयागराज में सुप्रसिद्ध कुंभ का मेला आयोजित किया जा रहा है जिसकी भव्यतम तैयारी प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में संपन्न हुई है। निश्चित रूप से प्रयागराज का यह महाकुंभ इस बार अपने आप में कई अर्थों में निराला है। ऐसे में कई प्रश्न आपके मन मस्तिष्क में कौन रहे होंगे जैसे प्रयागराज किसे कहते हैं? तीर्थराज क्या होता है? क्या प्रयाग में गंगा , यमुना और सरस्वती का संगम है ? गंगा जमुना सरस्वती क्या होती है ? क्या गंगा, जमुना, सरस्वती का उल्लेख वेदों में है ? त्रिविद्या ज्ञान ,कर्म और उपासना क्या ये तीन नदियां हैं ? क्या ज्ञान, कर्म और उपासना के तीन नदियों में स्नान करने से मोक्ष संभव है ? क्या आस्था, परंपरा,धर्म ,दर्शन संस्कृति के संबंध में महाकुंभ में परिकल्पना मात्र हैं ? क्या कुंभ का उल्लेख वेदों, उपनिषदों में है अथवा पुराणों की आधारहीन बातें हैं ? हम सभी भली प्रकार जानते हैं कि वेद ईश्वर की वाणी तथा अपौरुषेय हैं और पुराण पुरुषों द्वारा रचे गये हैं, अर्थात पौरूषेय हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमको पुराणों की बात माननी चाहिए अथवा ईश्वरिय वाणी को अंगीकार करना चाहिए ?
कुंभ अथवा कलश क्या है ? क्या कलश के मुख में विष्णु है ? क्या सप्त सिंधु, सप्तदीप, ग्रह नक्षत्र और संपूर्ण ज्ञान भी कुंभ कलश में स्थापित है ? सागर मंथन क्या है ? क्या सागर मंथन के दौरान हरिद्वार ,प्रयाग, उज्जैन और नासिक में अमृत गिरा था ? क्या शिवजी ने वास्तव में विषपान किया था ? शिवजी जिसकी पूजा अर्चना बहुत से लोग करते हैं तथा विश्व का उत्पादक एवं संहारकर्ता मानते हैं वे काल की दृष्टि से कौन से युग में कब पैदा हुए थे ? कुंभ के संदर्भ में यह सारे प्रश्न भी बड़े प्रासंगिक हो गए हैं।
यह बात भी विचारणीय है कि इस समय सृष्टि संवत की यह कौन सी चतुर्युगी चल रही है ? इस चतुर्युगी से पहले जब शिवजी नहीं थे तो इस सृष्टि को कौन चला रहा था ? आदि शंकराचार्य जी द्वारा निर्धारित क्या इन चार स्थानों पर प्रकृति जन्म जड़ की पूजा करने तथा नदियों में जलस्नान करने से अमृत और अनंत काल का जीवन प्राप्त होता है ? सूर्य अमर है क्यमहाकुंभ क्या है ? महाकुंभ के अभ्यांतरकाल में गंगाजल के स्नान करने से क्या मोक्ष की प्राप्ति होती है ? जल प्रकृतिजन्य होने के कारण पंचमहाभूतों में से एक महाभूत प्रकृतिस्वरूप ही है! तो ऐसे में प्रकृति से क्या मुक्ति संभव है ? प्रकृति, जीवात्मा और परमात्मा इन तीनों में से मोक्ष किसको चाहिए ?
प्रकृति का भोग करने से जीवात्मा कर्मफल में फंसता है और अपनी जड़ता के कारण इसमें बन्धता है तो प्रकृति रूपी जल में स्नान करने से बिना परमात्मा की कृपा के , बिना तप, त्याग तथा बिना परमात्मा के मोक्ष दिलाए क्या मोक्ष संभव है? क्या बिना विवेकख्याति, बिना वैराग्य, बिना समाधि मोक्ष संभव है? संक्षिप्त में सभी प्रश्नों का उत्तर है कि मोक्ष जीवात्मा को चाहिए जो केवल परमात्मा से प्राप्त हो सकता है । मोक्ष प्रकृतिजन्य पंच महाभूतों से प्राप्त नहीं हो सकता। उन पंचमहाभूतों में जल, वायु ,आकाश, अग्नि और पृथ्वी हैं। सर्व विदित है कि महाकुंभ 2025 जनवरी 13 तदनुसार पौष मास की पूर्णमासी के दिन से प्रयागराज ,उत्तर प्रदेश, भारतवर्ष देश में प्रारंभ हो गया है। देश-विदेश से अनेक लोग इस महाकुंभ में सम्मिलित होकर इसके साक्षी बनेंगे। ऐसे अवसर पर पौराणिक साधु संतों ने प्रयागराज में गंगा – यमुना के संगम पर अपना डेरा जमा लिया है। ऐसे ही पौराणिक संतों में ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद एवं स्वामी अवधेशानंद ने आर्य समाज , बौद्ध तथा जैनियों को महाकुंभ में निमंत्रित करने से स्पष्ट इनकार किया है। इंकार हो भी क्यों नहीं! मैं व्यक्तिगत रूप से दोनों पौराणिक स्वामियों का सम्मान करता हूं। उन्होंने आर्य समाज को आमंत्रण नहीं देने का उचित कार्य किया है। मैं उनका समर्थन करता हूं। इन दोनों पौराणिक संन्यासियों को मेरे द्वारा समर्थन देने पर आर्य समाज के लोग स्तब्ध रह गए होंगे।
इस विषय में मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि जिस व्यक्ति को आशंका होती है कि अमुक व्यक्ति, समाज अथवा संस्था उससे बड़ा हो जाएगा तो ऐसे में बड़े व्यक्तित्व को अथवा बड़े समाज को श्रेय चला जाएगा और हम ऐसे व्यक्ति और संस्था के समक्ष अपने आप को निम्नतर कोटि का अनुभव करेंगे। यह उन पौराणिक साधुओं की आशंका एवं कुंठा थी जो बोल रही थी। ऐसी स्थिति से प्रत्येक व्यक्ति ,समाज व संस्था बचना चाहती है, जिसके पास तर्क हो, बौद्धिक शक्ति हो, जिसके पास सत्यानुसंधान और तत्व दर्शन की क्षमता हो, जिसकी बौद्धिक क्षमताओं में केवल और केवल सत्य का बोध छिपा हो, जो पाखंड , ढोंग और किसी भी प्रकार के छल छद्म का विरोधी हो। आर्य समाज अपनी इसी प्रकार की सत्य के अनुसंधान की प्रवृत्ति और तत्व दर्शन के प्रति अपने गहन श्रद्धाभाव के कारण ही प्रतिष्ठित हुआ। स्वामी दयानंद जी महाराज ने इन दोनों विशिष्ट गुणों को अपनी विशेष साधना के माध्यम से अपने भीतर स्थापित किया और फिर समाज के उन ढोंगी और पाखंडियों को शास्त्रार्थ की चुनौती दी जो सनातन का विनाश कर रहे थे। स्वामी जी महाराज ने तर्क की तलवार को मूठ की ओर से पकड़ा अर्थात अपने आप को सबसे पहले मजबूत किया। तलवार सदा अपनी ओर से अर्थात मूठ की ओर से ही पकड़ी जाती है। जो कोई उसे फलक की ओर से पकड़ने की मूर्खता करता है वह स्वयं अपने अंग कटवा लेता है। जो लोग बिना तर्क और बौद्धिक बल के दूसरों से शास्त्र चर्चा करने के लिए बैठते हैं, उनकी भी गति यही होती है।
प्रत्येक पौराणिक सनातनी और प्रत्येक ऐसा ढोंगी व्यक्ति यह भली प्रकार जानता है कि आर्य समाज के लोग तत्त्वज्ञ, मर्मज्ञ, तत्ववेत्ता,और सत्य विद्या के स्वामी होते हैं। इनके तत्व दर्शन के समक्ष उनकी एक भी नहीं चलेगी। महर्षि यास्क ने निरुक्त में आर्यों को ईश्वर की संतान बताया है।आर्य समाज के लोगों को आमंत्रित करके वे पौराणिक लोग जो अविद्या एवं अज्ञानांधकार में आकंठ डूबे हैं, अपने आप को निम्न कोटि का साधु एवं संत क्यों बना लें? जबकि वहां के प्रबंध तंत्र में ऐसे पौराणिक स्वामियों का प्रत्यक्ष प्रचुर मात्रा में हस्तक्षेप है। इसलिए समाज में अपने सम्मान को बचाने के लिए और अपने आपको बड़ा दिखाने के लिए दोनों पौराणिक स्वामियों ने समवेत स्वर में आर्य समाज का विरोध किया है।
परंतु यहां यह उल्लेख करना भी अति महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक हो जाता है कि पौराणिक साधुओं की इस प्रकार की टिप्पणी से आर्य जगत में क्षोभ है। आर्य जगत के बहुत से सन्यासियों, वैदिक विद्वानों, भजनोपदेशकों, इतिहासज्ञों ने पौराणिक स्वामियों का विरोध करते हुए उनको शास्त्रार्थ की खुली चुनौती दी है। ऐसे आर्य जगत के मूर्धन्य विद्वान स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज, आचार्य वेदार्थी जी, आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुद्ध नगर के यशस्वी प्रधान तथा उगता भारत समाचार पत्र के प्रमुख संपादक प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य एडवोकेट एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक भाई आर्य श्रेष्ठ कुलदीप विद्यार्थी जी आदि ने ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामी अवधेशानंद को कठोर शब्दों में चुनौती देते हुए शास्त्रार्थ का निमंत्रण दिया है। मैं व्यक्तिगत रूप से अपने आर्य जगत के विद्वानों से ससम्मान सहमत हूं तथा पौराणिक स्वामियों से विनम्र निवेदन करता हूं कि उनकी चुनौती को स्वीकार करें। साथ ही मेरे द्वारा जितने प्रश्न उठाए गए हैं शास्त्रार्थ में इन सब प्रश्नों का वैदिक दृष्टिकोण से उत्तर देने का कष्ट करें। यदि आर्य समाज के उद्भट विद्वानों से शास्त्रार्थ करने में किसी प्रकार का आपको भय अथवा शंका लगती है तो आपको खुली चुनौती मेरी भी है कि आप मुझसे भी शास्त्रार्थ कर सकते हैं।
यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि आर्य समाज महाकुंभ का विरोधी नहीं है आर्य समाज केवल और केवल पाखण्डियों (अर्थात जो जड़ की पूजा करते एवं कराते हैं, जड़ को ही परमात्मा बताते हैं )का विरोध करते हैं । कुंभ महाकुंभ ज्ञान, कर्म और उपासना को स्पष्ट करना चाहते हैं , क्योंकि वह विषय में जानते हैं। आर्य समाज अपने सभी समाज के लोगों को अज्ञानता के अंधकार रूपी कीचड़ में से निकाल कर साफ सफाई करना चाहते हैं। उचित ज्ञान देकर,उचित दिशा में ले जाकर अपने समाज की दशा बदलना चाहते हैं।
सनातन परिष्कार की अनुमति देता है बहिष्कार की नहीं। सनातन सुधारात्मक दृष्टिकोण को अपनाकर चलने वाली एक जीवन प्रणाली है। देश काल परिस्थिति के अनुसार यदि इसमें कहीं जंग लगता है तो उसका परिमार्जन करना प्रत्येक आर्य विद्वान का कर्तव्य है । प्रत्येक उस सनातनी का कर्तव्य है जो ईश्वरीय आज्ञा अर्थात वेद ज्ञान को यथावत हृदयंगम कर जीवन व्यवस्था में उसे ढाल देना अपने जीवन का लक्ष्य मानता है। बस , इसी दृष्टिकोण से मैं आर्य जगत की ओर से पौराणिक जगत के उन संन्यासियों को शास्त्रार्थ के लिए विनम्रता के साथ आमंत्रित कर रहा हूं जो सनातन में आई विकृतियों का उपचार करने के समर्थक न होकर उन विकृतियों को यथावत बनाए रखने के समर्थक दिखाई दे रहे हैं। साथ ही आर्य समाज को अनावश्यक ही अपनी घृणा का शिकार बना रहे हैं।
शेष अग्रिम किस्त में….
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट,
ग्रेटर नोएडा, गौतम बुध नगर, उत्तर प्रदेश,
चल भाष: 9811 838317 7827681439
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।