दिव्य भाव से करो मित्रता
जीवन में छल छद्मों से,
बचता चल – तू बचता चल।
मार्ग बना निष्कंटक अपना,
पाप-घात से बचता चल ।।
जितने भर भी दिव्य भाव हैं,
चुनता चल तू – चुनता चल।
जितने भर भी दुष्ट भाव हैं,
मन से दूर हटाता चल।।
भव्य भाव में जीना दुर्लभ ,
पर नहीं असंभव कुछ भी।
दिव्य भाव से करो मित्रता,
हो जाएगा संभव कुछ भी।।
आशा का परित्याग करो न,
मत थक कर बैठो जीवन में।
सब कुछ मेरे लिए संभव है,
यह भाव लिए चलो मन में।।
चलते जाना – चलते जाना,
लक्ष्य यही हो जीवन का।
रुक जाने का नाम है मृत्यु,
गमन नाम है – जीवन का।।
– डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)
मुख्य संपादक, उगता भारत