प्रभु की अनन्त कृपाओं के संदर्भ में

God-is-one

प्रभु – कृपा नित बरसती,
दिखता नहीं है कोष।
ज्यों वारिद बिन रात में,
बरसती रहती ओस ॥
वारिद अर्थात बादल॥2735॥

भावार्थ :- जिस प्रकार साफ आसमान से रात में गिरती हुई ओस की बूँदें दृष्टिगोचर नहीं होती है, ठीक इसी प्रकार हम पर परम पिता परमात्मा की अनेक प्रकार की अनन्त कृपाएँ बरसती हुई नही दिखती हैं किन्त महसूस अवश्य होती है, जैसे हम भोजन करते हैं, उस भोजन को कौन पचाता है? उस भोजन से भोजन- कौन बनाता है? मांस मज्जा अस्थि रज, वीर्य और तेज कौन बनाता है, कार्य करने की ऊर्जा, उत्साह, धैर्य और साहस कौन देता है? नीर – क्षीर का विवेक कौन देता है? सोते समय हमारे सांसों की श्रृंखला को कौन नियमित रखता है ? विषम परिस्थिति में भी हमारे प्राणों की रक्षा कौन करता है? दुष्कर्मों से दूर रहने की तथा सत्कर्मों की प्रेरणा – कौन देता ? अनायाश ही बच्चे के जन्म लेने से पूर्व ही माँ के स्तन में दूध कौन बनाता है ? हमारे लिये नाना प्रकार की अन्न औषधि कौम उगाता है? अनायास ही हमारा धनवर्धन और यशवर्धन कौन करता है? जो हमारे कल्पना – लोक में भी नहीं होता है उसे मूर्त रूप में अनुभूत कौन कराता है? शोक में हमारे साहस को पुनर्जीवित कौन करता है?

हमारी कार्यक्षमता, दक्षता, कार्यकुशलता को कौन मुखरित करता है? हम से नयी-नयी खोज अथवा गवेषणाएँ तथा आविष्कार कौन कराता है? प्रकृति के गूढ़ रहस्य अथवा निसर्ग के नियमों का ज्ञान कौन देता है? इनका एक ही उत्तर है – ये सब परम पिता परमात्मा की अनन्त कृपा से होता है। सोचो ! कोई आपको एक कप चाय पिलादे अथवा थोडी मदद करदे तो आप उसके अहसानमन्द होते हैं, गुणगान करते हैं। क्या परम पिता परमात्मा की अनन्त कृपाओं के बावजूद भी आप उसका सिमरन करते हैं, सन्ध्या में आभार व्यक्त करते हैं ? इस पर गम्भीरता से चिन्तन कीजिए। परम पिता परमात्मा का तहे दिल से ध्यान कीजिए तथा मानव जीवन को सार्थक बनाइये।

क्रमशः

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