बंटेंगे तो कटेंगे पर इतनी चिल्लाहट क्यों
डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी
हमारे देश में किसी भी बात का बतंगड़ बनाना हमारी नियति में शामिल है। पिछले दिनों यूपी के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश के संदर्भ एक बात कहीं थी कि बटोगे तो कटोगे । चूँकि भारत में भी दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने थे तो इस बात को विधानसभा के चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा। इतिहास गवाह है कि चंद एक समुदाय के आक्रांताओं ने कैसे हमारे असंगठित होने के कारण इस देश पर कब्जा कर लिया और वर्षों तक हम उनकी दासता का उत्पीड़न झेलते रहे। शुक्रिया अदा कीजिए अंग्रेजों का जिसने इस आक्रांताओं के शासन से अपनी आजादी दिलाई और इस देश में फिर से हिन्दू समुदाय खुली हवा में सांस लेने लगे।
चंद्रगुप्त मौर्य के समय जिस बृहद भारतवर्ष की अवधारणा थी, वह कायम हो चुका था लेकिन दुर्भाग्यवश सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपनाने से आने वाले समय में भारतवर्ष पूरी तरह अपने वजूद में कायम नहीं रह सका। छोटे – छोटे राज्य अपने अस्तित्व में कायम हो गए। इन छोटे – छोटे राज्यों के उदय होने के कारण जिस बृहद देश की अवधारणा मौर्य वंश के शासनकाल में थी, उसका पूरी तरह लोप हो चुका था। अब किसी भी बाहरी आक्रांताओं के लिए भारत पर आक्रमण करना आसान हो गया और इसी का फायदा उठाकर आक्रान्ता इस देश में अपने पैर जमाने में सफल रहे। ये वाक्य उस समय बटेंगे तो कटेंगे पूरी तरह चरितार्थ हो गया था और यही बात आज भी प्रासंगिक है। आप जब तक एक नही रहेंगे तो दुश्मन को आप पर हमला करने का अवसर प्राप्त हो ही जायेगा।
आज हिंदुओं के लिए भारत के अलावा कोई और देश नहीं है जहाँ हिन्दू पूरी तरह सुरक्षित हों। बांग्लादेश में जहाँ 23 प्रतिशत हिन्दू थे, वहाँ घटकर सिर्फ सात से आठ प्रतिशत रह गए हैं। पाकिस्तान में हिन्दू नाम मात्र के रह गए हैं और वहाँ उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है। आज जब बात हिंदुओं की एकता की होने लगी तो खलबली मच गई है। आज पूरा विपक्ष हिंदुओं को जातियों में बाँटने में तुला हुआ है। आज उनकी दुकान हिंदुओं को जातियों में बाँटने पर ही टिकी हुई है । आज देश के बाहर की भारत विरोधी ताकतें विपक्षी दलों के माध्यम से भारत को अस्थिर करने में लगी हुई हैं। आज पूरा विश्व भारत की प्रगति से घबराया हुआ है। भारत की प्रगति से चीन और पाकिस्तान के कलेजे पर साँप लोट रहा है। कश्मीर में विधानसभा के सफल चुनाव के बाद पाकिस्तान में शोक का माहौल है इसलिए वहां सरकार बनने के बाद अचानक आतंकवादी घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। ये पाकिस्तान की बौखलाहट का असर है।
देश के बाहर के आतंकवादियों का सफाया करना आसान है लेकिन देश में रहने वाले देश विरोधियों से मुकाबला करना उतना आसान नहीं है। आज देश में जातीय जनगणना की बात उठ रही है जिससे समाज में और विद्वेष फैलने की संभावना है। मंडल कमीशन के लागू होने के बाद अगड़ों और पिछड़ों के बीच एक खाई उत्पन्न हो गई थी । ठीक उसी तरह की स्थिति पुनः निर्मित होने की संभावना है। महाराष्ट्र और झारखंड में जो चुनाव हुआ है वहाँ वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है। एक समुदाय का वोट एकतरफा बीजेपी के ख़िलाफ़ जाएगा लेकिन हिंदुओं का वोट एकतरफा कहीं से भी बीजेपी को नहीं मिलने वाला है क्योंकि हिंदुओं का वोट जातीय आधार पर ही तय होगा। बंटेंगे तो कटेंगे का असर हिंदुओं पर नहीं होने वाला है। हिंदू जातीय आधार पर अपना वोट करता है। जो मानसिकता सदियों से बनी हुई है वह इतना आसानी से नहीं मिटने वाली है। राजनीतिक दल केवल चुनाव के समय ही इन जुमलों का प्रयोग करते हैं। समाज में जागरूकता फैलाना इनका उद्देश्य नहीं है।
आज जरूरत इस बात की है कि हिन्दू सिर्फ हिन्दू ही रहे।आप जरा सोचिये कि बाबा साहेब अम्बेडकर को कितनी जातीय पीड़ा झेलनी पड़ी होगी । भारत में रहने वाले सब समुदायों के पूर्वज पहले हिंदू ही रहे हैं। अब हमें फिर से उस स्थिति में लौटने की जरूरत नहीं है लेकिन अगर हिंदुओं में जातीय व्यवस्था इसी तरह रही तो हिन्दू कभी भी एकजुट नहीं रह सकता है। इसके लिए सबसे पहले हमें अपना सरनेम हटाना होगा क्योंकि सरनेम के लगते ही आपकी जाति का पता चल जाता है। सरनेम को कानूनी तौर पर खत्म किये जाने की जरूरत है। हमारे पहचान का आधार सिर्फ धर्म होना चाहिए। धार्मिक आधार पर ही व्यक्ति की पहचान होनी चाहिए। इसके लिए अब समाज में युद्ध स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। केवल चुनाव के समय बरसाती मेढ़क की तरह टर्र – टर्राने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
इसके लिए हिंदुओं के धर्मगुरुओं को आगे आना चाहिए। आज जो कथावाचकों की सभाओं में जनसैलाब उमड़ता है, उनमें भी अगर जातीय भेदभाव मिटाया जाय तो उससे भी कुछ हद तक इस समस्या का समाधान हो सकता है लेकिन मुख्य तौर ये सामाजिक कार्य है और इसे समाज के स्तर पर जागरूकता लाकर इसे दूर किया जा सकता है। जाति प्रथा एक सामाजिक बुराई है, इसे अच्छी तरह समझना होगा। शहरों में थोड़ी बहुत इसमें सुधार हो रहा है लेकिन गाँव में स्थिति जस के तस बनी हुई है। दरअसल ग्रामीण स्तर पर ही इसको दूर करने की आवश्यकता है। हद तो तब हो जाती है कि जातीय आधार पर खाप पंचायतों का गठन हो जाता है। ये जातीय भेदभाव की पराकाष्ठा है। हिंदुओं में जातीय व्यवस्था दरअसल वर्ण व्यवस्था की देन है। वर्ण व्यवस्था नहीं होती तो कालांतर में जातीय व्यवस्था भी नहीं होती।
दरअसल हम अभी किये कार्यों का दुष्परिणाम भविष्य में क्या होगा, ये हम नहीं जानते हैं। हमें अपना वजूद बनाये रखना है तो हमें जातीय व्यवस्था किसी भी हाल में छोड़नी ही पड़ेगी। जातीय व्यवस्था के साथ साथ हिन्दू धर्म में उपजी कुरीतियों पर भी लगाम लगाने की आवश्यकता है। जबतक हम अपने धर्म की मूल भावना को नही समझेंगे तबतक हम जातीय व्यवस्था में उलझे रहेंगे। हिन्दू धर्म शुरुआत से ही प्रगतिशील रहा है। इस धर्म में कुरीतियां कहाँ से उपजी , ये पता नहीं है। दरअसल पुराणों की रचनाओं के बाद हिन्दू धर्म में कर्मकांड की अवधारणा उत्पन्न हुई और कर्मकांड ही मूल रूप से हिन्दू धर्म में कुरीतियों का जनक रहा है । वैदिक काल में हिन्दू धर्म मूल रूप से प्रगतिशील था लेकिन कालांतर में इसमें रूढ़िवादिता समाहित हो गई।
इसके लिए विशेष तौर एक वर्ग जिम्मेदार रहा। आज वह वर्ग राजनीतिक दलों के रूप में कार्य कर रहे हैं। देश के कुछ राजनीतिक दल जातीय व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं जिससे उनका वोट बैंक बना रहे। वोट की राजनीति के चलते उनको जातीय भेदभाव बनाये रखना जरूरी है। आज आम जनता को इनके चेहरे से नकाब हटाने की आवश्यकता है। जातीय व्यवस्था हिन्दू धर्म के लिए कोढ़ के समान है। आने वाले समय में हिन्दू धर्म के लिये अभिशाप का कारण बनेगी । इसलिए हम सभी को एकजुट होने की आवश्यकता है।
डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी