भारत में मूर्ति पूजा*!
विजय कुमार गोविंदराम हासानन्द प्रकाशन नई सड़क दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक को 76 वर्ष पूर्व वैदिक विद्वान पंडित राजेंद्र निवासी अतरौली अलीगढ़ ने लिखा था। 230 पृष्ठ की यह छोटी सी पुस्तक बहुत ही विचारोत्तेजक विश्लेषण मूर्ति पूजा के संबंध में प्रस्तुत करती है।
जैसा कि इस पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है ‘भारत में मूर्ति पूजा इसका शीर्षक है। इस पुस्तक में इन सभी प्रश्नों का तथ्य व शास्त्रीय प्रमाणों के साथ समाधान जवाब मिलता है ‘क्या मूर्ति पूजा भारत में बाहर से आयातित हुई या भारत से ही बाहर निर्यातित हुई? मूर्ति पूजा भारत में कब से प्रचलित है? क्या मूर्ति पूजा हिंदुओं की सनातन उपासना पद्धति है? क्या मूर्ति पूजा वेदोक्त है ?इसका हमारे धार्मिक सामाजिक राष्ट्रीय उत्थान या पतन से क्या कोई संबंध है? मूर्ति पूजा आध्यात्मिक सामाजिक रोगों की औषधि है या इन रोगो को बढ़ाने वाला भयानक रसायन है। क्या वैदिक काल में भारत में मूर्ति पूजा प्रचलित थी? क्या वैदिक काल के ऋषि महर्षि आदि मूर्ति पूजक थे? क्या हिंदुओं ने मूर्ति पूजा जैन व बौद्धों से ली? आदि शंकराचार्य को मूर्ति पूजा के विरुद्ध अभियान क्यों छोड़ना पड़ा? क्या आदि शंकराचार्य को मूर्ति पूजा के विरोध के कारण ही जैनियों के द्वारा जहर देकर मारा गया ?क्या केवल मूर्ति पूजा के कारण ही भारत पर विदेशियों के हमले हुए?पुराणों में मूर्ति पूजा का समर्थन व निषेध जैसा अंतर विरोध क्यों मिलता हैं? हजारों वर्ष पहले आचार्य चाणक्य ने मूर्ति पूजा को मूर्खों की उपासना पद्धति क्यों कहा? मूर्ति पूजा को हिंदुओं की पूजा पद्धति से निकाल दे तो क्या हिंदू धर्म मृत् हो जाएगा ?इन सभी ज्वलंत प्रथम दृष्टा आपत्तिजनक प्रतीत होते इन सभी प्रश्नों का जवाब इस लघु पुस्तक में विद्वान लेखक ने देने का सदप्रयास किया है। विद्वान लेखक ने अपनी पुस्तक को दशकों बौद्धिक परिश्रम से इस पुस्तक को लिखा था ।महाभारत काल से लेकर मुस्लिम आक्रांता काल तक मूर्ति पूजा का इतिहास को इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में प्रकरण अनुसार स्थान दिया गया है।
यह पुस्तक प्रत्येक स्वाध्याय शील व्यक्ति के बुक्शेल्फ में होनी चाहिए। पुस्तक का मूल्य महज ₹50 है।वेदऋषि ऑनलाइन पोर्टल या विजय कुमार गोविंदराम हासानन्द प्रशासन दिल्ली से आप इस पुस्तक को डाक आदि के माध्यम से मंगा सकते हैं।
इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ें।
आर्य सागर तिलपता